NLU Gujarat : टॉलरेंट होने का मतलब ये नहीं कि आप हेट स्पीच को भी बर्दाश्त करें : जस्टिस चंद्रचूड़
NLU Gujarat : देश के सर्वोच्च अदालत के न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम जो बहुत से काम करते हैं उसका दीर्घकालिक प्रभाव होता है।
NLU Gujarat : सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ( Justice DY Chandrachud ) ने गुजरात ( Gujrat ) के नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ( National Law University ) में आयोजित दीक्षांत समारोह में कहा कि दूसरों की राय को स्वीकार करने और सहिष्णु होने का मतलब यह नहीं है कि किसी की अभद्र भाषा भी स्वीकार करनी चाहिए। उन्होंने कानून के छात्रों से कहा कि हम जो बहुत से काम करते हैं उसका केवल दीर्घकालिक प्रभाव होगा इसलिए हमें रोजमर्रा की व्याकुलता के बारे में चिंतित नहीं होना चाहिए।
अभ्रद भाषा के खिलाफ खड़ा होना चाहिए
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ( Justice DY Chandrachud ) ने वोल्टेयर के प्रसिद्ध शब्द कि आप जो कहते हैं, मैं उसे अस्वीकार करता हूं लेकिन मैं इसे कहने के आपके अधिकार की रक्षा करूंगा। इस बात को हमें अपनी व्यवस्था और हर नागरिक को अपने स्वभाव में शामिल करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि गलतियां करना, दूसरों की राय को स्वीकार करना और सहिष्णु होना किसी भी तरह से अंधी अनुरूपता का अनुवाद नहीं करता है। इसका मतलब यह नहीं कि अभद्र भाषा के खिलाफ खड़ा न हों।
सोशल मीडिया को बताया सनसनी
उन्होंने छात्रों से कहा कि आपने बहुमत के राजनीतिक, सामाजिक और नैतिक संघर्षों के बढ़ते शोर और भ्रम के बीच बाहरी दुनिया में कदम रखा है। जरूरत इस बात की है कि आप सभी को विवेकपूर्ण और न्यायसंगत तरीकों से मार्ग से निर्देशित किया जाना चाहिए। या आप स्वयं को उसी के अनुरूप ढालें। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि दूसरी ओर हवा इस समय की ब्रेकिंग न्यूज है, जो नई सोशल मीडिया सनसनी है। जीवन में और राजनीतिक-सामाजिक तानेबाने में प्रचार की पतली परत हमें घेर लेती हैं। यह एक उपयोगी व्याकुलता हो सकती है लेकिन हमारा असली काम वर्तमान की इसी व्याकुलता पर काबू पाने या उसे बदलने में के लिए होना चाहिए।
न्याय खास वर्गों तक सीमित नहीं होना चाहिए
NLU Gujarat : हाल ही में जस्टिस चंद्रचूड़ ( Justice DY Chandrachud ) ने कहा था कि न्याय सामाजिक-आर्थिक रूप से मजबूत वर्गों तक सीमित नहीं रहना चाहिए। यह सरकार का कर्तव्य है कि वो एक न्यायोचित और समतावादी सामाजिक व्यवस्था सुनिश्चित करे। भारत जैसे विशाल देश में जहां जातिगत आधार पर असमानता मौजूद है, वहां प्रौद्योगिकी तक पहुंच का दायरा बढ़ाकर डिजिटल विभाजन को धीरे-धीरे कम किया जा सकता है। उन्होंने यह भी बताया कि उच्च न्यायालयों और जिला अदालतों ने 30 अप्रैल 2022 की तारीख तक 1.92 करोड़ मामलों की सुनवाई वीडियो कांफ्रेंस के जरिए की है।