Kailash Satyarthi: नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने फिर बढ़ाया देश का मान, बने UN के सतत विकास लक्ष्य के एडवोकेट

Kailash Satyarthi: 'एसडीजी एडवोकेट' (SDG Advocate) के रूप में सत्यार्थी संयुक्त राष्ट्र संघ के सतत विकास लक्ष्य (sustainable developement goals) को सन 2030 तक हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे....

Update: 2021-09-18 14:12 GMT

(संयुक्त राष्ट्र संघ के सतत विकास लक्ष्य को सन 2030 तक हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे कैलाश सत्यार्थी। फोटो ; कैलाश सत्यार्थी / फेसबुक )

नई दिल्ली। नोबेल शांति पुरस्‍कार सम्‍मानित कैलाश सत्‍यार्थी (Kailash Satyarthi) ने एक बार फिर भारत का मान बढ़ाया है। संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nation) ने उन्हें अपना सतत विकास लक्ष्य (SDG) एडवोकेट बनाया है। 'एसडीजी एडवोकेट' के रूप में सत्यार्थी संयुक्त राष्ट्र संघ के सतत विकास लक्ष्य (sustainable developement goals) को सन 2030 तक हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।

सत्‍यार्थी की बाल दासता को समाप्‍त करने और बच्‍चों के गुणवत्‍तापूर्ण शिक्षा के अधिकारों के लिए वैश्विक आंदोलन (Global Movement) के निर्माण में अग्रणी भूमिका रही है। उन्होंने बच्चों के खिलाफ हिंसा को समाप्त करने और एक ऐसी दुनिया के निर्माण के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है, जहां हर बच्‍चे को स्‍वतंत्र, स्‍वस्‍थ, शिक्षित और सुरक्षित जीवन जीने का प्राकृतिक अधिकार हासिल हो सके। इस खांटी भारतीय के प्रयास से ही बाल श्रम के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय कानून यानी आईएलओ कन्वेंशन-182 पारित हुआ। उनके इन योगदानों को देखते हुए उन्हें एसडीजी एडवोकेट बनाया गया है।

कैलाश सत्‍यार्थी की 'एसडीजी एडवोकेट' (SDG Advocate) के रूप में नियुक्ति ऐसे समय में हुई है, जब एक तरफ बाल श्रम उन्‍मूलन का अंतरराष्‍ट्रीय वर्ष चल रहा है, वहीं दूसरी तरफ पूरी दुनिया को दो दशकों में पहली बार बाल श्रम में अभूतपूर्व वृद्धि देखने को मिली है। बाल श्रमिकों की संख्‍या अब बढ़कर 16 करोड़ हो गई है। पहले यह संख्या तकरीबन 15.2 करोड़ थी। वहीं कोविड-19 के दुष्‍परिणामों ने लाखों बच्‍चों को खतरे में डाल दिया है। जबकि संयुक्त राष्ट्र संघ (UN) ने अपने सतत विकास लक्ष्य के एजेंडे में सन 2025 तक समूचे विश्वभर से बाल श्रम उन्मूलन का लक्ष्य रखा है। ऐसे में 2025 तक दुनिया से बाल श्रम को खत्‍म करने के संकल्‍प पर एक बड़ा सवाल उठ खड़ा होता है और संयुक्त राष्ट्र ने 2030 ने सतत विकास लक्ष्‍य हासिल करने की जो प्रतिबद्धता जताई है, वह भी चुनौतीपूर्ण लग रही है।

एक तरफ दुनियाभर में बाल श्रमिकों की संख्‍या बढ़कर रही है, तो वहीं दूसरी तरफ कोरोना महामारी (Covid Panedemic) के दुष्‍परिणामों ने लाखों बच्‍चों को और अधिक असुरक्षित बना दिया है। यह नियुक्ति वर्तमान संकट के मद्देनजर की गई है, जिसका हम सामना कर रहे हैं। सतत विकास लक्ष्‍यों पर भी इस संकट का दूरगामी असर पड़ रहा है, जिसे 2030 तक हासिल किया जाना है। यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक खांटी भारतीय को दुनिया के बच्चों को शोषण से बचाने के लिए चुना है।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस (Antonio Gutterres) ने नोबेल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित कैलाश सत्‍यार्थी को एसडीजी एडवोकेट नियुक्त करते हुए कहा, 'मैं दुनियाभर के बच्चों को आवाज देने के लिए सत्यार्थी की अटूट प्रतिबद्धता की सराहना करता हूं। यह समय की जरूरत है कि हम एक साथ आएं, सहयोग करें, साझेदारी बनाएं और एसडीजी की दिशा में वैश्विक कार्रवाई को तेज करने में एक दूसरे का समर्थन करें।'

सत्‍यार्थी की यह नियुक्ति उनकी नेतृत्‍व क्षमता और नैतिक बल की स्‍वीकारोक्ति है। यह उनके इन विचारों की वैश्विक मान्यता भी है कि बाल श्रम, दासता और ट्रैफिकिंग का उन्मूलन किए बगैर संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सकता है।

इस अवसर पर कैलाश सत्यार्थी ने कहा, ''दुनिया के बच्चों की ओर से मैं इस नियुक्ति को स्वीकार करते हुए सम्मानित महसूस कर रहा हूं। महामारी से पहले के चार वर्षों में 5 से 11 साल की उम्र के 10,000 अतिरिक्त बच्चे हर दिन बाल मजदूर बन गए। यह वृद्धि भी संयुक्त राष्ट्र एसडीजी के पहले चार वर्षों के दौरान हुई। यह एक अन्‍यायपूर्ण विकास है जो 2030 एजेंडा की संभावित विफलता की प्रारंभिक चेतावनी देता है। जो बच्चे बाल श्रम में हैं वे स्कूल में नहीं हैं। उनकी स्वास्थ्य की देखभाल, शुद्ध जल और स्वच्छता तक सीमित या कोई पहुंच नहीं है। वे घोर गरीबी के दुश्‍चक्र में रहते हैं और पीढ़ीगत नस्लीय और सामाजिक भेदभाव का सामना करते हैं।''

सत्यार्थी आगे कहते हैं, ''हमारे पास ज्ञान है। हमारे पास संसाधन हैं। लेकिन, हमें उस राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है जो बच्चों के शोषण को समाप्त करने के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधन, नीतियां और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित कर सके। वैश्विक विकास तभी समावेशी और टिकाऊ हो सकता है जब वर्तमान के साथ-साथ भविष्य की पीढ़ियां भी स्वतंत्र, सुरक्षित, स्वस्थ और शिक्षित हों।''

कैलाश सत्यार्थी देश में जन्में ऐसे पहले खांटी भारतीय हैं जिन्हें दुनिया के सर्वोच्च नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। वे चार दशकों से वैश्विक स्तर पर बच्चों के अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अपने संगठन बचपन बचाओ आंदोलन के माध्यम से उन्होंने एक लाख से अधिक बच्चों को बाल श्रम, दासता, ट्रैफिकिंग और अन्य प्रकार के शोषण से मुक्‍त कराया है।

उनके नेतृत्‍व में 1998 में बाल श्रम के खिलाफ आयोजित ऐतिहासिक वैश्विक यात्रा 'ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर' (Global March Against Child Labour) ने 103 देशों से गुजरते हुए अपार समर्थन और सहयोग प्राप्‍त किया था। जिसके परिणामस्वरूप अंतरराष्‍ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के बाल श्रम के बदतर प्रकारों को खत्‍म करने के लिए आईएलओ कन्‍वेंशन 182 को पारित किया था।

यह 2020 में आईएलओ के इतिहास में एकमात्र सार्वभौमिक रूप से समर्थन वाला कन्‍वेंशन बन गया, जब इसके सभी 187 सदस्य देशों ने इस पर हस्ताक्षर कर दिए। एक तरह से बाल श्रम के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय कानून है। सत्यार्थी दुनियाभर में शिक्षा का अधिकार दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले संगठन ग्लोबल कैंपेन फॉर एजूकेशन (Global Campaign For Education) के संस्थापक और अध्यक्ष रहे हैं। वे यूनेस्को के शिक्षा पर बनी हाईलेबल कमेटी के सदस्य भी रहे हैं।

सत्यार्थी कोरोना संकट में दिए गए आर्थिक अनुदानों में बच्चों को उचित हिस्सा मिले इसके लिए नोबेल पुरस्कार विजेताओं और वैश्विक नेताओं को एकजुट कर 'फेयर शेयर फॉर चिल्ड्रेन' नामक अभियान चला रहे हैं। वे दुनियाभर में 'हंड्रेड मिलियन फॉर हंड्रेड मिलियन' कैंपेन भी चला रहे हैं। जिसके तहत दुनिया के हंड्रेड मिलियन यानी 10 करोड़ वंचित और गरीब बच्चों की मदद के लिए 10 करोड़ युवाओं को तैयार किया जा रहा है।

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