NWC की याचिका पर SC ने केंद्र से मांगा जवाब, पूछा - मुस्लिम नाबालिग लड़कियों की शादी करना कितना जायज?
केरल हाईकोर्ट ( Kerala High court ) ने वैवाहिक विवादों में पति-पत्नी के सामान्य कल्याण और भलाई के लिए केंद्र सरकार को भारत में समान विवाह संहिता पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
नई दिल्ली। पिछले कुछ माह के दौरान अलग-अलग हाईकोर्ट ( High court ) द्वारा धार्मिक नियमों ( religious rules ) का हवाला देकर नाबालिग मुस्लिम लड़कियों ( muslim girl ) के निकाह को वैध करार देने वाले फैसलों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी कर चार हफ्ते में जवाब मांगा है। अब इस मामले की अगली सुनवाई आठ जनवरी 2023 को होगी। केंद्र सरकार से यह जवाब सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और पीएस नरसिम्हा की पीठ ने मांगा है।
दरअसल, राष्ट्रीय महिला आयोग ने सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) में याचिका दखिल कर कर्नाटक, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट सहित कई और हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसलों पर रोक लगाने की मांग करते हुए इसके लिए विस्तृत दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की है। इन फैसलों में पर्सनल लॉ का हवाला देते हुए मुस्लिम लड़कियों की शादी उनके मासिक शुरू होने के बाद कभी भी किए जाने को जायज ठहराया गया है।
धर्म के सामने कानून को वरीयता देने के नियमों का क्या होगा?
एनडब्लूसी ( NWC ) ने सुप्रीम कोर्ट से पूछा है कि अलग-अलग हाईकोर्ट के इस तरह के फैसलों से पॉक्सो एक्ट के प्रावधानों का उल्लंघन हो रहा है। साथ ही किसी भी एक्ट और कानून के बीच अगर मतभेद हो तो कानून को ही वरीयता देने के नियम का क्या होगा। आयोग ने विवाह के लिए एक समान न्यूनतम आयु सीमा 18 वर्ष तय करने की गुहार के साथ हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी है जिसमें 15 साल की भी मुस्लिम लड़की के विवाह को जायज बताया गया है। महिला आयोग का कहना है कि यह आदेश पॉक्सो एक्ट और आईपीसी के रेप प्रावधानों का उल्लंघन करता है। 18 वर्ष से कम की आयु की महिला के साथ शारीरिक संबंध रेप है।
केंद्र समान विवाह संहिता पर करे गंभीरता से विचार
वहीं केरल हाईकोर्ट केरल हाईकोर्ट ने 9 दिसंबर को वैवाहिक विवादों में पति-पत्नी के सामान्य कल्याण और भलाई के लिए केंद्र सरकार को भारत में समान विवाह संहिता पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। वैवाहिक संबंधों की बात आने पर वर्तमान में कानून पक्षकारों को उनके धर्म के आधार पर अलग करता है।
फैमिली कोर्ट को युद्ध का मैदान बनने से रोकना जरूरी
जस्टिस ए मोहम्मद मुस्ताक और जस्टिस शोबा अन्नम्मा एपेन की खंडपीठ ने कहा कि परिवार न्यायालय एक और युद्ध का मैदान बन गया है, जो तलाक की मांग करने वाले पक्षकारों की पीड़ा को बढ़ा रहा है। यह इस कारण से स्पष्ट है कि पारिवारिक न्यायालय अधिनियम से पहले लागू किए गए पर्याप्त कानून को विरोधात्मक हितों पर निर्णय लेने के बजाय एक मंच पर बनाया गया था। एक समान मंच पर पार्टियों के लिए लागू कानून में बदलाव का समय आ गया है।