पिंजरा तोड़ एक्टिविस्ट नताशा नरवाल और देवांगना कलिता की गिरफ्तारी का पूरा हुआ एक साल
नरवाल और कलिता को मई 2020 में सीएए के विरोध में उस साल फरवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा के पीछे एक पूर्व नियोजित साजिश का हिस्सा होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था....
जनज्वार डेस्क। 2020 के दिल्ली दंगों से जुड़े एक मामले में सख्त यूएपीए के तहत महिला संगठन 'पिंजरा तोड़' की सदस्य की गिरफ्तारी के एक साल पूरे होने के अवसर पर 8 जून को कार्यकर्ता और विभिन्न नागरिक समाज समूह एक साथ आए।
पिंजरा तोड़ ने एक बयान में कहा कि नरवाल और कलिता को इसलिए गिरफ्तार किया गया क्योंकि उन्होंने सभी के लिए समान और मौलिक नागरिकता की मांग को लेकर आवाज उठाई थीं।
बयान में कहा गया, "उन दोनों को उनके खिलाफ दर्ज हर मामले में जमानत दी गई थी, फिर भी वे एफआईआर 59 के तहत यूएपीए के कारण जेल में बंद हैं।"
गौरतलब है कि नरवाल और कलिता को मई 2020 में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) के विरोध में उस साल फरवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा के पीछे एक पूर्व नियोजित साजिश का हिस्सा होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
पिंजरा तोड़ द्वारा आयोजित एक वर्चुअल बैठक में, नरवाल, कलिता और जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद जैसे अन्य लोगों के बारे में कार्यकर्ता जिग्नेश मेवाणी ने कहा कि जिस तरह से उन्हें निशाना बनाया गया वह दुर्भाग्यपूर्ण है।
उन्होंने कहा कि गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) यह सुनिश्चित करता है कि किसी व्यक्ति को जमानत न मिले। उन्होंने कहा, "यह उन आवाजों को दबाने का असंवैधानिक तरीका है जो सरकार को पसंद नहीं है।"
मेवाणी ने कहा कि लोगों को 'झूठी कैदों को चुनौती' देने की जरूरत है। उन्होंने कहा, "न्यायपालिका को झूठे अपराध करने के लिए पुलिस, राजनेताओं और सरकारों को जवाबदेह ठहराने की जरूरत है।"
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ (जेएनयूएसयू) की पूर्व अध्यक्ष आइशी घोष ने कहा, "उन्हें (कलिता और नरवाल) न केवल इसलिए गिरफ्तार किया गया क्योंकि वे शिक्षित थीं, बल्कि इसलिए कि वे भाजपा, आरएसएस की सोच को चुनौती दे रही थीं और इसलिए कि वे जनता से जुड़ रही थीं।"
पिछले साल सांप्रदायिक हिंसा वाले मामले में मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट अजीत नारायण ने नताशा नरवाल और देवांगाना कालिता को जैसे ही ज़मानत देने का फ़ैसला सुनाया, दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के एक जांच अधिकारी ने अदालत में नई अर्जी दाखिल की जिसमें दंगों से जुड़े क़त्ल के एक दूसरे मामले में उनकी गिरफ़्तारी और पूछताछ के लिए मंज़ूरी मांगी गई थी।
दिल्ली पुलिस की शुरुआती एफ़आईआर के मुताबिक़ इन लड़कियों पर फ़रवरी 2020 में दिल्ली के जाफ़राबाद इलाक़े में नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन के दौरान ड्यूटी पर तैनात सरकारी अधिकारी को काम करने से रोकने, उनका आदेश न मानने, उन पर हमला करने, दूसरे लोगों का रास्ता रोकने और दंगा कराने का आरोप लगाया गया था।
मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट अजीत नारायण ने 20 हज़ार रुपए के मुचलके पर नताशा नरवाल और देवांगाना कालिता को इन आरोपों में ज़मानत दे दी थी। कोर्ट ने कहा, "केस के तथ्यों से ये पता चलता है कि अभियुक्त केवल नागरिकता संशोधन क़ानून और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर का विरोध कर रही थीं और किसी किस्म की हिंसा में शामिल नहीं थीं। ये इस समाज से गहरे रूप से जुड़ी हुई हैं और बहुत पढ़ी-लिखी भी हैं। सभी जांच को लेकर पुलिस के साथ सहयोग करने के लिए तैयार हैं।"
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार कोविड-19 की महामारी को देखते हुए कोर्ट अभियुक्तों को पुलिस रिमांड पर भेजने के हक़ में नहीं थी और कस्टडी के लिए पुलिस की अर्जी ख़ारिज कर दी गई।
हालांकि दोबारा हुई गिरफ़्तारी में दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने नताशा नरवाल और देवांगना कालिता पर पुलिस ने क़त्ल, क़त्ल की कोशिश, दंगा, आपराधिक साज़िश करने का आरोप लगाया और इसके लिए 14 दिनों की पुलिस रिमांड की मांग की थी।
सुनवाई के दौरान पुलिस ने कस्टडी की मांग करते हुए कोर्ट से कहा कि अभियुक्तों को पुलिस हिरासत में भेजा जाना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि वे राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल थे। इस पर अभियुक्तों की पैरवी कर रहे वकील ने कहा है कि ये आरोप बदनियती से लगाए गए हैं और इनमें कोई दम नहीं है।
नताशा नरवाल और देवांगना कालिता के वकील वे कहा कि 24 फ़रवरी 2020 को एफ़आईआर दर्ज की गई थी। नताशा और देवांगना पुलिस की जांच में सहयोग भी कर रही हैं। इसलिए उन्हें इस मामले में ज़मानत दी जाए।
इस मामले में जज अजीत नारायण ने जैसे ही ज़मानत देने का आदेश दिया, पुलिस ने एक दूसरी अर्जी दाखिल कर पूछताछ और गिरफ़्तारी की इजाज़त मांगी। पुलिस ने कोर्ट को बताया कि दोनों ही अभियुक्त एक दूसरे मामले में संदिग्ध हैं।
15 मिनट की पूछताछ के बाद पुलिस ने उन दोनों लड़कियों की 14 दिनों की पुलिस हिरासत की मांग की। इस बार मामला क़त्ल का था और पुलिस ने कहा कि आगे की तफ्तीश के लिए पुलिस हिरासत ज़रूरी है।
इस बार बचाव पक्ष के वकील के विरोध के बावजूद कोर्ट ने नताशा नरवाल और देवांगना कालिता को दो दिनों की पुलिस हिरासत में भेजने का फ़ैसला सुनाया। क़त्ल, क़त्ल की कोशिश, आपराधिक साज़िश के अलावा पुलिस ने इन पर आर्म्स एक्ट और सार्वजनिक संपत्ति को नुक़सान पहुंचाने का आरोप भी लगाया है।
उत्तर पूर्वी दिल्ली में 24 फ़रवरी 2020 को नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोधियों और समर्थकों के बीच हिंसा भड़क गई थी। इस हिंसा में 53 लोगों की मौत हुई थी और लगभग 200 लोग घायल हो गए थे।
पिछले साल अप्रैल महीने की शुरूआत में पुलिस ने कई छात्र कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियां दंगों की साजिश रचने के आरोप में की। ख़ास बात ये है कि ये वो छात्र हैं जो नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) के ख़िलाफ़ प्रदर्शनों में आगे-आगे थे। इन पर पुलिस ने सबसे कठोर क़ानून 'अनलॉफ़ुल एक्टिविटीज़ प्रिवेंशन एक्ट' यानी यूएपीए लगाया।