बिकरू कांड का एक साल : खौफ और दहशत की वो रात जब यूपी का नंबर वन बदमाश बन गया था डॉन विकास दुबे
बिकरू गांव में दो-तीन जुलाई की रात दबिश देने गई पुलिस टीम पर हमला बोलकर गैंगस्टर विकास दुबे व उसके साथियों ने सीओ सहित 8 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी। इसके बाद से विकास दुबे अपने गैंग के साथ फरार हो गया था...
जनज्वार, कानपुर। यूपी के कानपुर का बिकरू कांड। जिसे गैंग्स्टर विकास दुबे (Vikas Dubey) द्वारा 2020 की दो-तीन जुलाई की रात अंजाम दिया गया था। खौफ और दहशत का वो मंजर याद कर बिकरू सहित आस-पास के रहने वाले कांप जाते हैं। खुद पुलिस की कई महीनो तक हवा टाइट रही। उस रात को याद कर शरीर में कहीं ना कहीं झुरझुरी जरूर छूटती होगी।
कानपुर (Kanpur) के बिकरू गांव में दो-तीन जुलाई की रात दबिश देने गई पुलिस टीम पर हमला बोलकर गैंगस्टर विकास दुबे व उसके साथियों ने सीओ सहित 8 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी। इसके बाद से विकास दुबे अपने गैंग के साथ फरार हो गया था। विकास दुबे यहां से फरार होकर मध्यप्रदेश के उज्जैन जा पहुंचा था। यूपी पुलिस जब उसे यहां ला रही थी, उसी दौरान एनकाउंटर में विकास मारा गया था।
ऐसे मरा था विकास
सुबह 6.30 बजे यूपी एसटीएफ की टीम विकास को उज्जैन (Ujjain) से गिरफ्तार कर कानपुर ले जा रही थी। लेकिन, शहर से 17 किमी पहले काफिले की एक कार पलट गई। विकास उसी गाड़ी में बैठा था। पुलिस के मुताबिक हादसे के बाद उसने पुलिस टीम से पिस्टल छीनकर हमला करने की कोशिश की। जवाबी कार्रवाई में वह बुरी तरह जख्मी हो गया। उसे सीने और कमर में दो गोली लगीं। इसके बाद उसे अस्पताल ले जाया गया। जहां उसे सुबह 7 बजकर 55 मिनट पर मृत घोषित कर दिया।
बिकरू कांड की रात ये हुआ था
गांव में घुसते ही पुलिस कर्मियों को बीच सड़क पर एक जेसीबी रास्ते में खड़ी दिखती है। पुलिस जब तक इस माजरा समझ पाती, उससे पहले ही ऊपर छतों से विकास दुबे के गुर्गे अंधाधुंध फायरिंग करने लगे थे। इस घटना में सीओ देवेंद्र कुमार मिश्रा, एसओ महेश यादव, चौकी इंचार्ज अनूप कुमार, सब इंस्पेक्टर नेबुलाल, कॉन्स्टेबल सुल्तान सिंह, राहुल, जितेंद्र और बल्लू शहीद हो गये थे। अपराधी इन पुलिसकर्मियों से एके-47 राइफल, इंसास राइफल और पिस्टल समेत गोलियां भी छीनकर ले गये थे।
बसपा काल में पनपा था विकास
दशक था 1990 का। विकास दुबे छोटी-मोटी आपराधिक घटनाओं को अंजाम देकर लोगों की नजर में आने लगा था। प्रदेश में मायावती (Mayawati) की बसपा सरकार सत्ता में थी। विकास दुबे कानपुर के कुछ विधायकों के संपर्क में आया और उनके लिए छिनैती, लूटपाट, अवैध कब्जा जैसे छोटे-मोटे आपराधिक वारदातों को अंजाम देकर खास बनता गया। प्रदेश में कल्याण सिंह की सरकार बनी तो बीजेपी विधायकों के संपर्क में भी आया और अपने डर का कारोबार चलाता रहा। दरअसल, विकास कुछ काम नेताओं के कर देता था और उनके करीबी हासिल करता था। कानपुर फिर कानपुर से लखनऊ तक पहुंच बनी और कोई उसका बाल बांका नहीं कर पाता था। साल 2001 में विकास दुबे ने एक बड़ी वारदात को अंजाम दिया। जिसमें विकास दुबे ने शिवली थाना स्थित ताराचंद इंटर कॉलेज में असिस्टेंट मैनेजर पद पर तैनात सिद्धेश्वर पांडे की हत्या कर दी। इस घटना ने विकास दुबे को रातों-रात सबकी नजर में ला दिया। उसी साल विकास ने जेल में रहते हुए ही रामबाबू यादव नामक शख्स की हत्या करवा दी।
थाने में घुसकर भाजपा के मंत्री का हत्या की
साल 2001 में जब प्रदेश में राजनाथ सिंह के नेतृत्व में बीजेपी (BJP) सत्ता में थी तो विकास दुबे ने तत्कालीन मंत्री संतोष शुक्ला की थाने में घुसकर दिनदहाड़े हत्या कर दी। इस घटना में 2 पुलिसकर्मी भी शहीद हुए थे। इस हत्याकांड के बाद विकास दुबे पूरे प्रदेश में छा गया और उसका खौफ इतना बढ़ा कि उसकी तूती बोलने लगी। इस हत्याकांड में विकास को गिरफ्तार तो किया गया, लेकिन किसी भी पुलिसकर्मी या अन्य लोगों ने उसके खिलाफ बयान नहीं दिया, जिसकी वजह से उसे रिहा कर दिया गया। मंत्री स्तर के बीजेपी नेता की हत्या के बाद भी जब उसका कुछ नहीं हुआ तो मनोबल और बढ़ गया। इसके बाद विकास दुबे ने साल 2004 में कानपुर के केबल व्यवसायी दिनेश दुबे की हत्या करवा दी। प्रदेश में जिस भी पार्टी की सरकार हो, विकास दुबे के किसी न किसी बड़े नेता से संबंध रहे और इसकी वजह से वह हर कांड के बाद बचता गया। विकास दुबे ने बाद में बीएसपी से जुड़कर पंचायत स्तरीय चुनाव लड़ा और लंबे समय से वह या उसकी फैमिली में से कोई पंचायत चुनाव जीतता रहा।
ढह गया आतंक का साम्राज्य
विकास दुबे का उज्जैन में समर्पण और रास्ते में एनकाउंटर से पहले पुलिस ने कार्रवाई करते हुए उसके घर को गिरा दिया था। तमाम संपत्ति कुर्क कर दी गई। और तो विकास का अभी तक मृत्यू सर्टिफिकेट तक नहीं बन सका है। इसके अलावा विकास की मौत के बाद अन्य सक्रिय हुए दबंगों ने विकास की जमीन पर कब्जा करने का भी प्रयास किया। हालांकि बाद में पुलिस के हस्तक्षेप के बाद जमीन विकास की पत्नी रिचा के हैंडओवर कराई जा सकी। जवाबी कार्रवाई में पुलिस व एसटीएफ द्वारा विकास की कई सहयोगी मारे जा चुके हैं बाकि जेल में हैं।