A N Sinha Institute News: पटना में ट्राइबल संस्थान की स्थापना के नाम पर एएन सिन्हा इंस्टीच्यूट को क्या उजाड़ना चाहती है नीतीश सरकार?

A N Sinha Institute News: नीतीश सरकार के एक फैसले के बाद बिहार की राजनीति में भूचाल आ गया है। देश के प्रतिष्ठित समाजिक शोध संस्थान में सुमार पटना के एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट के छात्रावास , मधु लिमये गेस्ट हाउस समेत अन्य भवनों को ध्वस्त करने के निर्णय का समाजवादी आंदोलन से जुड़े रहे प्रमुख राजनेता, जनप्रतिनिधि समेत समाजिक संस्थानों ने विरोध शुरू कर दिया है।

Update: 2022-06-29 14:15 GMT

A N Sinha Institute News: नीतीश सरकार के एक फैसले के बाद बिहार की राजनीति में भूचाल आ गया है। देश के प्रतिष्ठित सामाजिक शोध संस्थान में शुमार पटना के एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट के छात्रावास, मधु लिमये गेस्ट हाउस समेत अन्य भवनों को ध्वस्त करने के निर्णय का समाजवादी आंदोलन से जुड़े रहे प्रमुख राजनेता, जनप्रतिनिधि समेत सामाजिक संस्थानों ने विरोध शुरू कर दिया है।

सरकार के फैसले के मुताबिक इन भवनों को ध्वस्त कर ट्राइबल शोध संस्थान का निर्माण कराया जाएगा। बिहार की राजधानी पटना में मौजूद अन्य भूमि व भवनों में स्थापना के बजाए पहले से स्थापित प्रमुख सामाजिक शोध अध्ययन संस्थान को उजाड़ने की कोशिश पर विरोध के स्वर तेज हो जाने से सरकार के अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने की स्थिति उत्पन्न हो गई है। विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि जिस संस्थान के जयप्रकाश नारायण प्रथम अध्यक्ष रहे व राज्य के कई पूर्व मुख्यमंत्रियों का अध्यक्षीय कार्यकाल यहां रहा उसे विस्तार देने के बजाए समेटने की कोशिश जहां इस संस्थान के प्रति न्याय नहीं होगा वहीं ट्राइबल इंस्टीट्यूट को भी समय के अनुसार विस्तार देने की योजना पर अमल करना संभव नहीं हो पाएगा।.

बिहार में ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट के स्थापना का प्रकरण लंबे समय से अधर में है। पहले से रांची में स्थापित ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट झारखंड अलग राज्य गठन के बाद से बिहार से बाहर हो गया। ऐसे में 14 दिसंबर 2017 को बिहार में ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट स्थापित करने का निर्णय लिया गया। लेकिन इसके निर्माण को लेकर कोई पहल होते नहीं दिखी। इसके निर्माण के लिए केंद्र सरकार से अनुदान के रूप में संपूर्ण धनराशि मिलनी है। इस योजना पर समय के साथ अमल न होने की स्थिति में बिहार आदिवासी अधिकार फोरम ने पटना हाई कोर्ट में एक याचिका दायर पर स्थापना की मांग उठाई। इस पर कोर्ट ने 28 जून को सुनवाई की तिथि तय करते हुए सरकार से जवाब मांगा। बताया जाता है कि इसी दबाव में संबंधित अधिकारियों ने स्थापना को लेकर शहर के अन्य हिस्सों में मौजूद भूमि या भवनों में इसे चालू करने के बजाए एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट का ही नाम सुझा दिया है। इसके लिए शिक्षा विभाग ने अपनी सहमति प्रदान कर दी है। अनुसूचित जाति -जनजाति विभाग के सचिव दिवेश सेहरा ने इस संबंध में भवन निर्माण विभाग को निर्माण पर व्यय होनेवाली धनराशि का आकलन करने के लिए पत्र लिखा है।


सदन से लेकर सड़क तक हो रहा विरोध

एनएन सिन्हा इंस्टीट्यूट के भवनों को तोड़ने के फैसले के विरोध में बिहार विधान सभा व विधान परिषद में विपक्ष के सदस्यों ने जोरदार आवाज उठाई है। मंगलवार को सदन में राजद,कांग्रेस पार्टी व भाकपा माले के सदस्यों ने प्रमुखता से सरकार के फैसले का विरोध करते हुए अन्य स्थान पर ट्राइबल इंस्टीट्यूट की स्थापना की मांग की। एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट के पूर्व निदेशक डीएम दिवाकर कहते हैं कि सरकार की ट्राइबल इंस्टीट्यूट की स्थापना को लेकर ही मंशा साफ नहीं है। उसकी मौजूदा योजना के चलते एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट व प्रस्तावित ट्राइबल इंस्टीट्यूट के प्रति न्याय नहीं होगा। दोनों संस्थानों के विस्तार के लिए भविष्य में और भूमि की आवश्यकता होगी। जिसे पूरा नहीं किया जा सकेगा। जिसके चलते ऐसे संस्थानों की स्थापना के पीछे के प्रमुख उदद्ेश्य पूरा नहीं हो पाएंगे। ऐसे में सरकार को इस निर्णय पर पुनर्विचार करते हुए अन्य स्थानों पर ट्राइबल इंस्टीट्यूट की स्थापना का फैसला करना चाहिए।

सरकार के फैसले का विरोध कर रहे राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी व रामचंद्र पूर्वे कहते हैं कि बेहतर होगा कि सरकार एएन सिन्हा शोध संस्थान को बंद ही कर दे और उसकी जगह उस परिसर में ट्राइबल इंस्टीट्यूट बना दे। जानकारी मिल रही है कि ट्राइबल इंस्टीट्यूट के लिए परिसर में निर्मित जयप्रकाश नारायण छात्रावास तथा मधु लिमये गेस्ट हाउस को तोड़ने जा रही है। यह वर्ष महान समाजवादी नेता मधु लिमये का शताब्दी वर्ष भी है। यह भी इतिहास बनेगा कि मधु के शताब्दी वर्ष में अपने को समाजवादी मानने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने उनके नाम पर बने गेस्ट हाउस को तोड़वा दिया। जहां तहां से शोध करनेवाले गरीब परिवार के लड़के दो सौ ढाई सौ रूपये रोज वाले इन कमरों का लाभ उठा लेते हैं। अन्यथा इतने कम में राजधानी में कहां ठिकाना मिलता। नीतीश सरकार आधुनिक म्यूजियम निर्माण के लिए हड़ताली मोड़ के समीप कई एकड़ सोने की कीमत वाली भूमि का इंतजाम कर लेती है, बौद्ध साधना के लिए कई एकड़ में फैले व्यवसायिक भूमि निकाल लेती है। लेकिन समाज में सबसे उपेक्षित आदिवासी समाज की समस्याओं का अध्ययन के लिए तथा उनका समाधान ढुढने के लिए भूमि का इंतजाम नहीं कर पा रही है। इसके लिए आधूनिक बिहार के निर्माण के लिए संकल्पित रहे अनुग्रह बाबू के नाम पर बना संस्थान ही नजर आता है। क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि सरकार को सदबुद्धी जगेगी और ट्राइबल संस्थान के लिए कोई अन्य जगह तलाश लेगी और जय प्रकाश नारायण तथा मधु लिमये के नाम पर बने भवनों को बख्श देगी।

एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट परिसर में निर्माण का विरोध करनेवाले लोगों की अगुवाई करते हुए पूर्व सांसद राजनीति प्रसाद कहते हैं कि संस्थान के परिसर की जमीन पहले ही गंगा एक्सप्रेसवे हेतु ली जा चुकी है। अब जयप्रकाश नारायण छात्रावास, मधु लिमये अतिथि गृह,संकाय आवास, निदेशक आवास, गांधी शिविर व निर्माणाधीन अंतर्राष्टीय अतिथि गृह को समाप्त करने की योजना है। इस परिसर में ट्राइबल शोध संस्थान खोलने की स्थिति में प्रशासनिक भवन, ट्राइबल म्यूजियम व शहीद स्मारक, डिजिटल संग्रहालय व पुस्तकालय,ट्रेनिंग संेटर एवं छात्रावास, आर्टीजन काउंटर, आदि का निर्माण एवं इसका सर्वांगीण विकास करना संभव नहीं हो पायेगा। बिहार में आदिवासी समुदाय की आबादी 1.28 प्रतिशत है जो कैमूर जिले में ही अधिकांश हैं। ऐसे में संस्थान का निर्माण कैमूर जिले में किया जाना बेहतर होगा। इससे संस्थान स्थापना के निहित उददेश्यों की भी पूर्ति होगी। इसके अलावा सरकार अस्थायी तौर पर आर्यभटट ज्ञान विश्वविद्यालय में स्थापित विभिन्न केंद्रों के तर्ज पर ट्राइबल इंस्टीट्यूट भी स्थापित कर सकती है। इसके अलावा मजबूती से विरोध जतानेवालों में पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव, पूर्व वित मंत्री अब्दुल बारी सिद्दीकी, प्रोफेसर डीएम दिवाकर, विधायक संदीप सौरभ, सुदामा प्रसाद, अमरजीत कुशवाहा, राहुल तिवारी भी शामिल हैं।


जेपी के स्मृतियों से जुड़ा है एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट का इतिहास

अनंुग्रह नारायण सामाजिक अध्ययन संस्थान की स्थापना 31 जनवरी 1958 को डा. अनुग्रह नारायण सिन्हा की स्मृति में हुई थी। डा. सिन्हा चंपारण सत्याग्रह आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी के प्रमुख अनुयायीयों के साथ ही बिहार के पहले उप मुख्यमंत्री व वित मंत्री भी रहे। संस्थान की स्थापना प्रथम राष्टपति डा.राजेंद्र प्रसाद ने की थी। बाद में एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट आॅफ सोशल स्टडीज एक्ट 1964 के तहत 8 अक्टूबर 1964 को कानून के माध्यम से एक वैधानिक स्वायत्त निकाय बना दिया गया। संस्थान नियंत्रण बोर्ड द्वारा शासित है और यह शिक्षा विभाग व भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद द्वारा शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार के माध्यम से वित पोषित है। इसके प्रथम पदेन अध्यक्ष लोक नायक जयप्रकाश नारायण रहे हैं।

नौ पूर्व मुख्यमंत्री समेत अन्य राजनेता रहे पदेन अध्यक्ष

अनंुग्रह नारायण सामाजिक अध्ययन संस्थान की स्थापना के बाद प्रथम अध्यक्ष लोक नायक जयप्रकाश नारायण रहे। इसके बाद क्रमशः तत्कालीन शिक्षा मंत्री डा. रामराज सिंह, ठाकुर प्रसाद सिंह , मुख्यमंत्री रामसुंदर दास, शिक्षा मंत्री नसीरूद्दीन हैदर खान, मुख्यमंत्री डा. जगन्नाथ मिश्र, चंद्रशेखर सिंह, विन्देश्वरी दूबे, भागवत झा आजाद, सत्येन्द्र नारायण सिंह, डा. जगन्नाथ मिश्र, लालू प्रसाद यादव, श्रीमती राबड़ी देवी, प्रो. सच्चिदानंद, नीखिल कुमार, केंद्रीय मंत्री हरि किशोर सिंह, शिक्षा मंत्री पीके शाही, पूर्व राज्यपाल दिनेश नन्दन सहाय, शिक्षा मंत्री डा. अशोक चैधरी, कृष्ण नन्दन प्रसाद वर्मा व मौजूदा शिक्षा मंत्री विजय कुमार चैधरी अध्यक्ष हैंै।

Tags:    

Similar News