Pilibhit Fake Encounter : 10 सिखों को बस से उतार पुलिस ने कर दिया था एनकाउंटर, हाईकोर्ट ने 34 दोषियों को जमानत देने से किया इनकार

Pilibhit Fake Encounter : अभियोजन पक्ष के अनुसार कुछ सिख तीर्थयात्री 12 जुलाई 1991 को पीलीभीत से एक बस से तीर्थयात्रा के लिए जा रहे थे। इस बस में बच्चे और महिलाएं भी थीं। उत्तर प्रदेश की पीलीभीत जिले की एक पुलिस टीम ने सुबह करीब 9-10 बजे पीलीभीत के पास यात्रियों से भरी एक बस को रोका था...

Update: 2022-05-27 06:42 GMT

Pilibhit Fake Encounter : 10 सिखों की हत्या के आरोपित पुलिसकर्मी और इनसेट में मृतकों की फाइल फोटो।

Pilibhit Fake Encounter : इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने गुरुवार 26 मई को साल 1991 में पीलीभीत में दस सिखों के एनकाउंटर में हत्या करने के मामले में 2016 में दोषी करार दिये गये 34 पुलिसकर्मियों की जमानत याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट ने जमानत याचिका को खारिज करते हुए कहा है कि अपीलों के विचाराधीन रहने के दौरान उनको रिहा करने का कोई औचित्य नहीं है। कोर्ट ने उनकी अपीलों पर सुनवाई के लिए अगली सुनवाई 25 जुलाई तय की है। यह आदेश जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बृजराज सिंह की पीठ ने देवेंद्र पांडेय और अन्य की ओर से दायर की गयी अपीलों और उनके साथ जमानत प्रार्थना पत्रों को खारिज करते हुए पारित किया है।

21 साल पहले पीलीभीत में चलती बस से उतारकर 11 सिखों का पुलिस ने कर दिया था एनकाउंटर

अभियोजन पक्ष के अनुसार कुछ सिख तीर्थयात्री 12 जुलाई 1991 को पीलीभीत से एक बस से तीर्थयात्रा के लिए जा रहे थे। इस बस में बच्चे और महिलाएं भी थीं। उत्तर प्रदेश की पीलीभीत जिले की एक पुलिस टीम ने सुबह करीब 9-10 बजे पीलीभीत के पास यात्रियों से भरी एक बस को रोका था। उन्होंने तीर्थयात्रियों की बस से 10-11 सिख युवकों को उतारा और उन्हें अपनी नीली रंग की पुलिस बस में बिठाया। इसके साथ ही कुछ पुलिसकर्मी शेष यात्रियों/तीर्थयात्रियों के साथ बस में बैठ गए।

वे दिन भर तीर्थयात्रियों के साथ इधर-उधर घूमते रहे और उसके बाद रात में पुलिसकर्मी पीलीभीत के एक गुरुद्वारे में बस को छोड़ गए। जबकि तीर्थयात्रियों की बस से नीचे उतरे 10 सिख युवकों को पुलिसकर्मियों ने तीन भाग में बांटकर आतंकवादी बताकर मार डाला। बस को रोक कर 11 लोगों को उतारा गया था। इनमें से 10 की पीलीभीत के न्योरिया, बिलसांदा और पूरनपुर थानाक्षेत्रों के धमेला कुंआ, फगुनिया घाट व पट्टाभोजी इलाके में एनकाउंटर दिखाकर हत्या कर दी गई। इस मामले में पुलिसकर्मियों पर 10 युवकों की हत्या के आरोप में तीन अलग-अलग प्राथमिकी दर्ज की गयी थी। 11 बच्चा था, जिसके ठिकाने का पता नहीं चल सका और उसके माता-पिता को राज्य की ओर से मुआवजा दिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को सौंपी थी जांच

शुरुआत में घटना की जांच पीलीभीत की स्थानीय पुलिस ही कर रही थी। स्थानीय पुलिस ने मामले में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी थी। हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने तथाकथित मुठभेड़ से संंबंधित घटनाओं की जांच सीबीआई को सौंप दी थी। सीबीआई ने विवेचना के बाद 57 अभियुक्तों को आरोपित किया। विचारण के दौरान दस अभियुक्तों की मौत हो गई। सीबीआई की लखनऊ स्थित विशेष अदालत ने 4 अप्रैल 2016 को केस में 47 अभियुक्तों को घटना में दोषी करार दिया और उम्र कैद की सजा सुनाई। जिसके खिलाफ सभी ने हाईकोर्ट में अलग-अलग अपीलें दाखिल किया। अपीलों के साथ सभी ने जमानत की अर्जियां भी दी ताकि उन्हें अपीलों के विचाराधीन रहने के दौरान जमानत मिल जाये। सीबीआई की लखनऊ स्थित विशेष अदालत ने 4 अप्रैल 2016 को केस में 47 अभियुक्तों को घटना में दोषी ठहराया था और उम्र कैद की सजा सुनाई थी।

आरोपी पुलिसवालों का दावा- मारे गए लोग खालिस्तान लिब्रेशन फ्रंट के आतंकी

अपील करने वाले पुलिसवालों की ओर से दलील दी गई कि मारे गए दस सिखों में से बलजीत सिंह उर्फ पप्पू, जसवंत सिंह उर्फ ब्लिजी, हरमिंदर सिंह उर्फ मिंटा तथा सुरजान सिंह उर्फ बिट्टू खालिस्तान लिब्रेशन फ्रंट के आतंकी थे, इसके साथ ही उन पर हत्या, डकैती, अपहरण व पुलिस पर हमले जैसे जघन्य अपराध के मामले दर्ज थे। अपील करने वालों की ओर से आगे दलील दी गई थी कि मृतकों में कई का लम्बा आपराधिक इतिहास था। यही नहीं वे खालिस्तान लिब्रेशन फ्रंट नामक आतंकी संगठन के सदस्य थे।

कोर्ट ने कहा- इनमें से कुछ का कोई आपराधिक इतिहास नहीं

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि मृतकों में से कुछ का कोई आपराधिक इतिहास नहीं था, ऐसे में सभी को आतंकी मानकर उन्हें उनकी पत्नियों और बच्चों से अलग कर के मार देना किसी भी तरह से जायज नहीं ठहराया जा सकता। कोर्ट ने आगे कहा कि मृतकों में से कुछ यदि असमाजिक गतिविधियों में शामिल भी थे और उनका आपराधिक इतिहास था, तब भी विधि की प्रक्रिया को अपनाना चाहिए था। इस प्रकार के बर्बर और अमानवीय हत्याएं उन्हें आतंकी बताकर नहीं करनी चाहिए थी।

कोर्ट ने रमेश चंद्र भारती, वीरपाल सिंह, नत्थु सिंह, धनी राम, सुगम चंद, कलेक्टर सिंह, कुंवर पाल सिंह, श्याम बाबू, बनवारी लाल, दिनेश सिंह, सुनील कुमार दीक्षित, अरविंद सिंह, राम नगीना, विजय कुमार सिंह, उदय पाल सिंह, मुन्ना खान, दुर्विजय सिंह पुत्र टोडी लाल, महावीर सिंह, गयाराम, दुर्विजय सिंह पुत्र दिलाराम, हरपाल सिंह, रामचंद्र सिंह, राजेंद्र सिंह, ज्ञान गिरी, लखन सिंह, नाजिम खान, नारायन दास, कृष्णवीर, करन सिंह, राकेश सिंह, नेमचंद्र, शमशेर अहमद, सतिंदर सिंह और बदन सिंह के जमानत प्रार्थना पत्रों को खारिज किया है।

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