Popular Front of India (PFI) Kya Hai: 16 साल में 23 राज्यों तक फैल चुके PFI का इतिहास क्या है? क्यों बैन नहीं लगा पा रही है मोदी सरकार?
Popular Front of India (PFI) Kya Hai: उत्तरप्रदेश के कानपुर में शुक्रवार को जुम्मे की नमाज के बाद भड़की हिंसा के पीछे पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के साथ तार जोड़े जाने के प्रयास शुरू हो गए हैं।
Popular Front of India (PFI) Kya Hai: 16 साल में 23 राज्यों तक फैल चुके PFI का इतिहास क्या है? क्यों बैन नहीं लगा पा रही है मोदी सरकार?
Popular Front of India (PFI) Kya Hai: उत्तरप्रदेश के कानपुर में शुक्रवार को जुम्मे की नमाज के बाद भड़की हिंसा के पीछे पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के साथ तार जोड़े जाने के प्रयास शुरू हो गए हैं। हालांकि, हिंसा भड़कने के पीछे प्रमुख कारण भाजपा प्रवक्ता नुपुर शर्मा का एक न्यूज चैनल में बहस के दौरान पैगंबर मुहम्मद के खिलाफ आपत्तिजनक बयान था, लेकिन जैसा कि अमूमन भारत में होता रहा है, हर हिंसा, सांप्रदायिक दंगे या आतंकी घटना के पीछे सीमापार से तार जोड़े जाते हैं।
सवाल यह है कि क्या दिल्ली में सीएए (CAA) आंदोलन से लेकर मुजफ्फरनगर और शामली और इस साल मध्यप्रदेश के खरगोन में हुई सांप्रदायिक हिंसा में भी PFI के तार जोड़े जरूर गए, लेकिन जांच के बाद कुछ गिरफ्तारियां होती हैं, यूएपीए (UAPA) जैसी संगीन धाराएं होती हैं, लेकिन सरकार को विदेशी तार के पुख्ता सबूत नहीं मिल पाते। उमर खालिद, शरजील इमाम, पत्रकार सिद्दीक कप्पन और गौतम नवलखा, सामाजिक कार्यकर्ता रोना विल्सन और शोमा सेन जैसे नाम जेल में बंद उन 13000 लोगों में शामिल हैं, जिन पर राजद्रोह का आरोप लगा है। देश के 23 राज्यों में पैर पसार चुके PFI के साथ नाता जोड़ा गया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट खुद राजद्रोह कानून के उल्लंघन पर चिंतित है। इस कानून के उपयोग पर रोक लगा चुका है। जेलों में बंद लोगों की जमानत पर विचार करने को कह चुका है।
सरकार के पास PFI के खिलाफ क्या सबूत हैं?
पिछले महीने ही केरल हाईकोर्ट ने PFI और उसकी राजनीतिक शाखा सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी और इंडिया (SDPI) को लेकर महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा था कि दोनों आतंकी संगठन हैं, जो हिंसा की घटनाओं में शामिल रहे हैं। लेकिन इन पर पाबंदी नहीं लगाई गई है। इसी साल फरवरी में पुलिस ने सादिक बाचा को उसके 4 साथियों के साथ पकड़ा था। सादिक के पास से एक एयर पिस्टल बरामद हुई थी और इसके बाद पांचों को आर्म्स एक्ट और यूएपीए के तहत गिरफ्तार कर बाद में एनआईए (NIA) के द्वारा पूछताछ की गई। उसमें खिलाफा पार्टी ऑफ इंडिया, खिलाफा फ्रंट ऑफ इंडिया, स्टूडेंट्स फ्रंट ऑफ इंडिया, इंटेलेक्चुअल्स फ्रंट ऑफ इंडिया (ISI) जैसे कई नए संगठनों के नाम सामने आए। NIA के मुताबिक इन सभी के तार इस्लामिक स्टेट (IS) से जुड़़े हुए हैं। एक अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठन से भारत में इतने संगठनों के तार जुड़ने के बाद भी आगे कोई कार्रवाई नहीं हुई है। पिछले साल 28 अप्रैल को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि PFI पर देश के कई राज्यों में पाबंदी है और सरकार भी इसी की तैयारी कर रही है। इस पर भी आगे कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है। हालांकि, तार जोड़े जाने का सिलसिला बदस्तूर जारी है।
NIA के दस्तावेजों में क्या लिखा है ?
NIA ने PFI पर 19 पेज का एक दस्तावेज बनाया है। PFI से जुड़े सभी मामलों की जांच उसी दस्तावेज के इर्द-गिर्द घूमती रहती है। हिंदुस्तान टाइम्स के पास मौजूद दस्तावेज की कॉपी के अनुसार, केरल के कोझीकोड में कुछ मार्शल आर्ट्स के ट्रेनिंग सेंटर खोले गए हैं, जहां मुस्लिम युवाओं को केरल की परंपरागत युद्ध कला कलारी पयट्टू सिखाई जाती है। बाकी कराटे, कुंग फू की भी ट्रेनिंग होती है। दस्तावेज आगे कहता है कि PFI अपने राजनीतिक संगठन नेशनल डमोक्रेटिक फ्रंट (NDF) का हिस्सा है, जिसकी स्थापना 1989 में हुई थी और उसके बहुत से सदस्य प्रतिबंधित स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) के सदस्य रहे हैं। दस्तावेज में इसके अलावा PFI के सदस्यों द्वारा केरल में एक प्रोफेसर का हाथ काटने, आरएसएस कार्यकर्ता की हत्या, कन्नूर में एक ट्रेनिंग कैंप में मिले देशी बम और एक IS मॉड्यूल का मामला शामिल है। PFI इन सभी आरोपों को सदस्यों का व्यक्तिगत आपराधिक मामला बताकर हिंसा की घटनाओं से किनारा करती रही है।
PFI की फंडिंग का स्रोत क्या है ?
मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में गिरफ्तार किए गए PFI के सदस्य केए रऊफ शरीफ पर प्रवर्तन निदेशालय (ED) की चार्जशीट कहती है कि उसे चीन से आतंकी गतिविधियों के लिए फंडिंग मिलती है। ED का दावा है कि इसी फंडिंग की बदौलत CAA विरोधी प्रदर्शनों, सोशल मीडिया पर दिल्ली दंगों को बढ़ावा देने और बाबरी मस्जिद पर पोस्ट बनाकर लोगों को भड़काने का काम किया गया। ED के अनुसार, हाथरस गैंगरेप मामले में भी शरीफ का हाथ है। आप सोच रहे होंगे कि इन सभी घटनाओं में भागीदारी के लिए तो करोड़ों की रकम की जरूरत पड़ती होगी। लेकिन ED का कहना है कि रऊफ को चीन से मास्क के व्यापार के लिए एक करोड़ की मदद मिली। यह मदद ओमान के रेस इंटरनेशनल नाम के एक संगठन ने दी, जिसके दो निदेशक चीनी और एक केरल से हैं। एक और मामले में SDPI के कलीम पाशा के नाम पर एक चीनी कंपनी से 5 लाख रुपए का लोन लेने का आरोप लगाया गया है। सभी आरोप इस कदर हल्के हैं कि ED, NIA जैसी एजेंसियां भी आगे कोई ठोस कदम नहीं उठा पा रही हैं। मामले के तार अगर पाकिस्तान और चीन जैसे देशों से जुड़े हैं तो जांच एजेंसियों को ठोस सबूतों के साथ जाल बुनना होगा।
ऐसा है PFI का इतिहास
भारत में 2002 और 2003 के मुंबई बम धमाकों में सिमी के आतंकियों का हाथ रहा। सिमी पर पाबंदी के बाद उसके कई भूमिगत सदस्य एनडीएफ में चले गए। PFI का उदय 2006 में एनडीएफ, कर्नाटक फोरम ऑफ डिग्निटी, मनिथा नीति परासाई नाम के तीन संगठनों के विलीनीकरण के जरिए हुआ। PFI के सदस्य खुद को नव सामाजिक आंदोलन के झंडाबरदार बताते हैं, लेकिन देश की आला जांच एजेंसियां इस संगठन पर केरल में सोने की तस्करी, कर्नाटक में धर्म परिवर्तन और लव जिहाद फैलाने, दिल्ली में CAA के खिलाफ आंदोलन में उसकी भूमिका और उत्तरप्रदेश में सांप्रदायिक हिंसा भड़काने में संगठन का हाथ बताती रही हैं। PFI के अधिकांश सदस्यों और पदाधिकारियों का दावा है कि वे सिमी छोड़कर 1993 में बने NDF में शामिल हुए हैं, जो बाबरी ढांचे के विध्वंस के एक साल बाद वजूद में आया था।
बहरहाल, इस पूरे झोल-झमेले के बीच सबसे बड़ा सवाल यही खड़ा होता है कि सुप्रीम कोर्ट में PFI पर बैन लगाने के ऐलान के बाद केंद्र सरकार एक साल गुजरने के बाद भी अभी तक पाबंदी क्यों नहीं लगा पाई है ? इसी से जुड़ा दूसरा अहम सवाल यह है कि पाकिस्तान और चीन जैसे देशों से PFI के तार जोड़ रही जांच एजेंसियों के पास क्या इतने पुख्ता सबूत हैं कि वे इस संगठन को घेर सकें, जैसे उन्होंने मुंबई बम धमाकों के पीछे विदेशी हाथ के दस्तावेजी सबूत पाकिस्तान और अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को सौंपे थे। इन सवालों का जब तक हल नहीं ढूंढा जाएगा, देश में हर सांप्रदायिक हिंसा के पीछे PFI के तार जोड़े जाते रहेंगे।