मानवाधिकार आयोग प्रमुख की कुर्सी पर बैठे अरुण मिश्रा वो जज जिसने जनता के हक में एक फैसला नहीं दिया - प्रशांत भूषण

पुलिस कस्टडी और फेक एनकाउंटर में जिनकी मौत होती है उनमें अधिकतर लोग गरीब, कमजोर और हाशिए पर रहने वाले होते हैंं। ऐसे लोग अन्याय होने के बाद भी अपनी आवाज नहीं उठा पाते। जय भीम के नायक को एक प्रगतिशील और जनता के हित में बोलने वाला प्रतिबद्ध अधिवक्ता मिल गया, पर ऐसा विरले होता है।

Update: 2021-11-13 10:32 GMT

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नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश सहित देशभर में जारी फेक एनकाउंटर  ( Fake  Encounter ) और पुलिस कस्टडी में निर्दोष लोगों की मौत पर देश के वरिष्ठ और प्रतिष्ठित वकील प्रशांत भूषण ( Prashant Bhushan ) ने जनज्वार से एक साक्षात्कार में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश और वर्तमान में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष अरुण मिश्रा ( NHRC Chairman Arun Mishra ) पर एक बार फिर तंज कसा है। इस बार उन्होंने फेक एनकाउंटर में होने वाली मौतों को लेकर अरुण मिश्रा की सोच पर हमला बोला हैं।

 न करें जनहित में पहल की अपेक्षा

वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने एक सवाल के जवाब में कहा कि कायदे से तो इन मुद्दों पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को संज्ञान लेना चाहिए था, लेनिक आज कल एचएचआरसी के अध्यक्ष पर जस्टिस अरुण मिश्रा विराजमान हैं, उनका तो स्टैंड ही फेक एनकाउंटर और पुलिस कस्टडी में मौत को लेकर अलग है। ऐसे में आप यह अपेक्षा नहीं कर सकते कि एचएचआरसी इस पर पहल करेगा।

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मानवाधिकार की राह में रोड़ा हैं जस्टिस मिश्रा

फिल्म जय भीम को ही आप देख लीजिए। लोग इस फिल्म को पसंद क्यों कर रहे हैं। केवल इसलिए कि फिल्म ने व्यवस्था की वास्तविक सच्चाईयों को सामने लाने का काम किया है। जय भीम में बताया गया कि पुलिस किस हद तक नीचे गिरकर बर्बरता का परिचय दे सकती है। इसके बावजूद आप जस्टिस अरुण मिश्रा से इसकी अपेक्षा नहीं कर सकते। बशर्ते अरुझा मिश्रा इस राह में रोड़ा बने हुए हैं।

सिस्टम के खिलाफ एक भी फैसला नहीं दिया

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस अरुण मिश्रा तो मानव अधिकारों को व्यवस्था के खिलाफ मानते हैं। वो तो इसके विरोध में सेमिनार करा रहे हैंं। आज तक उन्होंने जनता के हक में एक भी फैसला नहीं दिया। ऐसे में न तो वो इन घटनाओं के खिलाफ बयान दे सकते हैं न ही कोई ऐसा कदम उठाएंगे जो सिस्टम के खिलाफ हो।

सरकार की करते हैं बाहवाही

उन्होंने एक जज के रूप में एक भी केस में सरकार के खिलाफ जजमेंट नहीं दियां। वो तो सरकार की सरकार की बाहवाही करने में लगे रहते हैंं। वो तो कहते हैं कि पीएम मोदी वर्सटाइल व्यक्तित्व के धनी हैं। समय समय पर उनकी तारीफ करते रहते हैं। ऐसे मामलों को न्यायपालिका को संज्ञान में लेना चाहिए था।

जय भीम को तो वकील मिल गया

दरअसल, पुलिस कस्टडी ( Police custody death ) और फेक एनकाउंटर में जिनकी मौत होती है उनमें अधिकतर लोग गरीब, कमजोर और हाशिए पर रहने वाले लोग होते हैंं। ऐसे लोग अन्याय होने के बाद भी अपनी आवाज नहीं उठा पाते। जिनकी डेथ होती है वो दबे कुचले लोग होते हैं। जय भीम के नायक को तो एक प्रगतिशील और जनता के हित में बोलने वाला प्रतिबद्ध अधिवक्ता मिल गया। इसका नतीजा भी सबके सामने है। जय भीम के पीड़ित परिवार को देर से ही सही न्याय मिला और आज उसकी चर्चा भी हो रही है। बातचीत के दौरान उन्होंने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को भी उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से इस तरह की हत्याओं के लिए निशाने पर लिया।

प्रशांत भूषण पर लगाया था एक रुपये का जुर्माना

बता दें कि जस्टिस अरुण मिश्रा ने अपने कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण फैसले किए। प्रशांत भूषण को 31 अगस्त 2020 को कंटेप्ट मामले में दोषी करार देते हुए सजा के तौर पर एक रुपए का जुर्माना लगाया था। अपने फैसले में उन्होंने कहा था कि इसमें संदेह नहीं है कि सबको अभिव्यक्ति की आजादी मिली हुई है लेकिन वह संवैधानिक दायरे में होना चाहिए। किसी संस्थान को बदनाम करने की कानून में इजाजत नहीं है। अभिव्यक्ति की आजादी अहम है और स्वस्थ आलोचना की मनाही नहीं है लेकिन दूसरे की मर्यादा को संरक्षित करना जरूरी है। अभिव्यक्ति की आजादी की सीमाएं हैं।

प्रशांत भूषण पर लगाया था एक रुपये का जुर्माना

जस्टिस अरुण मिश्रा ने अपने कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण फैसले किए। प्रशांत भूषण को 31 अगस्त 2020 को कंटेप्ट मामले में दोषी करार देते हुए सजा के तौर पर एक रुपए का जुर्माना लगाया था। अपने फैसले में उन्होंने कहा था कि इसमें संदेह नहीं है कि सबको अभिव्यक्ति की आजादी मिली हुई है लेकिन वह संवैधानिक दायरे में होना चाहिए। किसी संस्थान को बदनाम करने की कानून में इजाजत नहीं है। अभिव्यक्ति की आजादी अहम है और स्वस्थ आलोचना की मनाही नहीं है लेकिन दूसरे की मर्यादा को संरक्षित करना जरूरी है। अभिव्यक्ति की आजादी की सीमाएं हैं।

पीएम की तारीफ का मुद्दा भी सुर्खियों में रहा था

जस्टिस अरुण मिश्रा ने इंटरनेशनल जूडिशल कॉन्फ्रेंस 2020 में धन्यवाद ज्ञापन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ की थी। उन्हें इंटरनेशनल लेवल का बहुमुखी प्रतिभा का धनी नेता बताया था। उन्होंने पीएम को विजनरी नेता बताया था। वह मानते हैं कि पीएम मोदी की सोच वैश्विक है। इसके बाद ये बयान भी मीडिया में काफी सुर्खियों में रहा था। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट बार असोसिएशन के प्रेजिडेंट दुष्यंत दवे ने जज द्वारा पीएम की तारीफ पर ऐतराज किया था।

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