Prashant Kishor News : क्या PK अपनी पॉलिटिकल पार्टी लांच कर बिहार में कोई कमाल कर पाएंगे? जानिए कैसे इसकी संभावना कम है?
Prashant Kishor News : सोमवार को किए गए ट्वीट में प्रशांत किशोर ने लिखा है कि वह बिहार में 'जन सुराज' की शुरुआत करने जा रहे हैं। यहां उन्होंने यह साफ-साफ नहीं लिखा कि 'जन सुराज' क्या मतलब है उन्होंने यह भी साफ नहीं किया कि वह कोई पॉलिटिकल पार्टी शुरू करने जा रहे हैं...
Prashant Kishor News : चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) रविवार (1st May) की दोपहर जब पटना पहुंंचे उसेी समय से बिहार के रानीतिक गलियारों में उनको लेकर तरह-तरह की चर्चाएं शुरू हो गयी। कोई कहने लगा प्रशांत किशोर दोबारा नीतीश कुमार के साथ जुड़ने जा रहे हैं। कोई कह रहा था कि वे नीतीश कुमार से मुलाकात करेंगे। हालांकि जैसे-जैसे समय बीतता गया इस तथ्य पर से परत हटने लगी। सोमवार की सुबह करीब 9:30 AM पर प्रशांत किशोर का एक ट्वीट आया, इस ट्वीट के बाद मीडिया में कयास लगने शुरू हो गए कि प्रशांत किशोर अपनी पार्टी बनाएंगे।
सोमवार को किए गए ट्वीट में प्रशांत किशोर ने लिखा है कि वह बिहार में 'जन सुराज' की शुरुआत करने जा रहे हैं। यहां उन्होंने यह साफ-साफ नहीं लिखा कि 'जन सुराज' क्या मतलब है उन्होंने यह भी साफ नहीं किया कि वह कोई पॉलिटिकल पार्टी शुरू करने जा रहे हैं। पर मीडिया में इस बात के कयास लगाए जाने लगे कि प्रशांत किशोर जल्द ही बिहार की जमीन पर अपनी राजनीति की पारी शुरू करने वाले हैं।
My quest to be a meaningful participant in democracy & help shape pro-people policy led to a 10yr rollercoaster ride!As I turn the page, time to go to the Real Masters, THE PEOPLE,to better understand the issues & the path to "जन सुराज"-Peoples Good Governanceशुरुआत #बिहार से— Prashant Kishor (@PrashantKishor) May 2, 2022
हालांकि प्रशांत किशोर ने जो कुछ लिखा है उसका यह मतलब है कि वह कोई ऐसा अभियान शुरू करने जा रहे हैं जिसमें वह बिहार की जनता के साथ सीधा संवाद स्थापित करेंगे। चुनावी रणनीतिकार के रूप में प्रशांत किशोर के कॅरिअर को देखें तो वह जन संवाद जैसे अभियान में खूब यकीन करते हैं। इसलिए उन्होंने 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी नीतीश कुमार को पूरे बिहार में घूमने और लोगों की समस्याएं जानने की सलाह दी थी।
पूरी उम्मीद है कि प्रशांत किशोर 5 मई को पटना में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर जन सुराज के नाम से बिहार की जनता से सीधे संवाद का कोई कैंपेन लॉन्च कर सकते हैं। चुनावी रणनीतिकार का रोल निभा चुके प्रशांत किशोर भली-भांति समझते हैं कि कोई भी पॉलिटिकल पार्टी तभी सफल होती है जब उसका जनता से सीधा जुड़ाव होता है। शायद इसलिए प्रशांत किशोर जन सुराज के जरिए बिहार के सभी 38 जिलों का दौरा करके जमीनी हकीकत को समझना चाहते हैं।
आपको बता दें कि प्रशांत किशोर ब्राह्मण जाति से आते हैं। वह मूल रूप से बक्सर जिले के रहने वाले हैं। बिहार में राजनीति करनी है तो जाति आधारित पॉलिटिक्स को नकारा नहीं जा सकता है। राज्य में महज पांच फीसदी ब्राह्मण वोटर हैं, जिनकी बदौलत कोई बड़ा राजनीतिक खेल करना संभव नहीं है। इसलिए प्रशांत किशोर भी चाहेंगे कि जिस तरह नीतीश कुमार ने कम संख्या वाले कुर्मी समाज के साथ दूसरी जातियों को साथ लेकर बिहार की राजनीति में डंटे हुए हैं, ठीक उसी तरह उन्हें ब्राह्मणों के साथ समाज के दूसरे वर्ग के लोगों का भी समर्थन हासिल हो।
किशोर ने 'जन स्वराज' की घोषणा ऐसे समय में की है जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सत्तारूढ़ गठबंधन के भीतर अस्तित्व के संकट का सामना कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी की आधिकारिक स्थिति यह है कि राज्य में मुख्यमंत्री पद के परिवर्तन का कोई सवाल ही नहीं है। 74 सीटों के साथ भाजपा विधायिका में सबसे बड़ी पार्टी है, जनता दल यूनाइटेड के पास 43 सीटें हैं। नीतीश को दिल्ली भेजने का ऑप्शन भी नहीं दिखता है।
भाजपा के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "प्रशांत किशोर बिहार में AAP बनने की कोशिश कर रहे हैं। वह जानते हैं कि लोग कुछ विकल्प चाहते हैं। जनता दल में 35% वोटशेयर है जबकि नीतीश कुमार के पास 15% और शेष 15% कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों जैसे अन्य दलों के पास है। बिहार में सत्ता में रहने के लिए दो समूहों का एक साथ होना जरूरी है।
किशोर अपने गृह राज्य में इस बदलाव के एजेंट बनने की उम्मीद कर रहे होंगे। हालांकि बिहार के जातिगत समीकरण और बिहार की राजनीति में जातीय वर्चव्स्व को देखते हुए इस बात के कम आसार हैं कि प्रशांत किशोर चुनावी रणनीतिकार से राजनीतिज्ञ बनने के अपने सफर में सफल हो पाएंगे। क्योंकि उनसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी, पूर्व सांसद पप्पू यादव और अभी हाल तक बिहार सरकार में मंत्री रहे मुकेश साहनी और पुष्पम प्रिया चौधरी अपनी पार्टी बनाकर भी कोई कमाल बिहार की राजनीति में नहीं कर पाएं हैंं। हालांकि प्रशांत किशोर का एक चुनावी रणनीतिकार के रूप में काम करने और सफलता हासिल करने का ट्रेक रिकॉर्ड है पर इसमें वो कितना सफल होंगे यह कह पाना कठिन है।
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