विपक्ष की मजबूती का आलम : पहले अब्दुल्ला ने राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी नकारी, अब गोपालकृष्ण गांधी ने
2024 के लोकसभा चुनाव से पहले राष्ट्रपति चुनाव विपक्षी एकता के लिहाज से एक टेस्ट है। इस मुद्दे पर जो सवाल पहले थे वह अब भी है कि विपक्ष की अगुवाई कौन करेगा।
नई दिल्ली। एक माह के अंदर देश का अगला राष्ट्रपति कौन होगा ये तय हो जाएगा। इस बीच राष्ट्रपति पद के लिए नामांकन प्रक्रिया जारी है। अभी तक न तो सत्तापक्ष और न ही विपक्ष की ओर से उम्मीदवार ( President Candidate ) का नाम सामने आया है। विपक्ष की ओर एक के बाद एक संभावित नाम मैदान में उतरने से इनकार करते जा रहे हैं। पहले शरद पवार (Sharad Pawar), फिर फारूक अब्दुल्ला ( Farooq Abdullah ) और अब गोपाल कृष्ण गांधी ( Gopal Krishna Gandhi ) ने विपक्ष की ओर से संयुक्त उम्मीदवार बनने से इनकार कर दिया है। पूर्व पीएम एचडी देवेगौड़ा ( EX PM HD Deve Gowda ) का नाम भी सामने आया था, लेकिन उन्होंने भी इनकार कर दिया है। ये सब उस समय हो रहा जब मंगलवार को विपक्षी दलों ( Opposition Parties ) के नेताओं की इस मुद्दे पर बैठक भी प्रस्तावित है।
अब यशवंत सिन्हा का नाम चर्चा में
दरअसल, पिछले सप्ताह बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ( CM Mamata Banerjee ) की अगुवाई में 17 राजनीतिक दलों की दिल्ली में बैठक हुई थी। इस बैठक में शरद पवार का नाम सबसे पहले आया लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। उसके बाद तीन और नेता इनकार कर चुके हैं। अब विपक्ष की ओर से यशवंत सिन्हा ( Yashwant Sinha ) का नाम भी चर्चा में है। माना जा रहा है कि ममता बनर्जी सिन्हा का नाम आगे बढ़ा सकती हैं। सिन्हा को मोदी का विरोधी माना जाता है। वह वाजपेयी सरकार के विदेश मंत्री और वित्त मंत्री की जिम्मेदारी का निर्वहन कर चुके हैं।
राष्ट्रपति चुनाव में संभावित उम्मीदवार एक के बाद एक करके मना करने से विपक्ष के सामने सबसे बड़ा सवाल यह उठ खड़ा हुआ है कि राष्ट्रपति का उम्मीदवार किसे बनाएं। ऐसा इसलिए कि शरद पवार, फारूख अब्दुल्ला, एचडी देवेगौड़ा और अब गोपाल कृष्ण गांधी द्वारा प्रत्याशी बनने से इनकार करने से विपक्षी एकता का ममला गहरा गया है। एक तरफ 2024 लोकसभा चुनाव ( Lok Sabha Election 2024 ) में विपक्ष की ओर से कड़ी टक्कर देने की बात हो रही तो दूसरी तरफ संभावित नेता उम्मीदवार बनने से इनकार कर रहे हैं। इस विरोधाभासी स्थिति से विपक्षी एकता ( Opposition unity ) पर सवाल उठना भी लाजिमी है। ऐसा इसलिए कि इससे सत्ता पक्ष को सियासी माइलेज मिल सकता है।
मुझसे बेहतर उम्मीदवार पर करें विचार
राष्ट्रपति चुनाव ( Preident Election ) में महात्मा गांधी के पोते गोपालकृष्ण गांधी ने विपक्ष की ओर से राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनने से इनकार कर दिया है। उम्मीदवारी को लेकर उनकी ओर से जारी बयान में कहा गया है कि संयुक्त विपक्ष की ओर से नाम पेशकश किए जाने के लिए आभारी हूं। किसी और नाम पर विचार करें जो मुझसे बेहतर राष्ट्रपति हो सकता है। गोपालकृष्ण गांधी 2017 में उपराष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार थे। वह चुनाव में एम वेंकैया नायडू से हार गए थे। विपक्षी दलों के नेताओं ने गांधी से फोन पर बात की और उनसे राष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने के अनुरोध पर विचार करने का आग्रह किया था। उन्होंने तत्काल जवाब देने के लिए कुछ समय का वक्त मांगा और 20 जून को उन्होंने इनकार कर दिया।
विपक्ष का उम्मीदवार बनने से परहेज क्यों
आगामी राष्ट्रपति चुनाव ( President Election 2022 ) लड़ना किसी भी नेता के लिए सम्मान की बात होती है। बावजूद इसके विपक्ष की ओर से एक के बाद एक संभावित उम्मीदवार कदम आगे बढ़ाने की बजाय पीछे खींच रहे हैं। शरद पवार, फारूक अब्दुल्ला, देवेगौड़ा राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं। नंबर गेम के हिसाब से विपक्ष का उम्मीदवार बनने से उन्हें कोई लाभ नहीं मिलने वाला। जीत की संभावना कम है लेकिन उससे कहीं अधिक बड़ा सवाल विपक्षी एकता को लेकर है। विपक्ष में एकजुटता नहीं है लिहाजा नेता रिस्क लेने से कतरा रहे हैं।
अहम सवाल : 2024 में विपक्ष की कौन करेगा अगुवाई
सबसे अहम सवाल यह है कि यही स्थिति रही तो की विपक्षी की अगुवाई कौन करेगा। ममता बनर्जी की बुलाई बैठक से आप, बीजेडी, टीआरएस, वाईएसआर कांग्रेस पहले ही किनारा कर चुके हैं। आगामी लोकसभा चुनाव में यह नेता अपनी और अपनी पार्टी की अलग भूमिका देख रहे हैं। कांग्रेस की ओर से भी कई बार ममता बनर्जी के दावे पर कहा जा चुका है कि बिना उसके विपक्ष की कल्पना संभव नहीं। राष्ट्रपति पद के लिए संयुक्त उम्मीदवार बनने के लिए कोई तैयार नहीं है। यह 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष की एकता के लिहाज से एक टेस्ट है, जो सवाल पहले थे वह अब भी हैं।
शिवसेना ने क्यों कराया कड़वे सवाल से सामना
President Election 2024 : राष्ट्रपति चुनाव को लेकर शिवसेना की ओर से कहा गया है कि अगर विपक्ष राष्ट्रपति चुनाव के लिए मजबूत उम्मीदवार खड़ा नहीं कर सकता तो वह 2024 में समर्थ प्रधानमंत्री कैसे दे सकता है, यह सवाल लोगों के दिमाग में आएगा। अपने मुखपत्र सामना में पार्टी ने कहा कि इस सवाल का जवाब ढूंढने का काम छह महीने पहले किया गया होता, तो उससे इस चुनाव के प्रति विपक्ष की गंभीरता झलककर सामने आई होती। शिवसेना ने सवाल किया कि लोग पूछ सकते हैं कि अगर विपक्ष राष्ट्रपति चुनाव के लिए मजबूत प्रत्याशी खड़ा नहीं कर सकता, तो वह समर्थ प्रधानमंत्री कैसे दे पाएगा।