बिजली का निजीकरण कल्याणकारी राज्य के खिलाफ, जनविरोधी प्राइवेटाइजेशन का फैसला वापस ले योगी सरकार !

बिजली का निजीकरण दरअसल संसद में लंबित विद्युत संशोधन अधिनियम 2022 का ही अंग है, जिसमें सरकार ने क्रॉस सब्सिडी और सब्सिडी की प्रक्रिया को ही खत्म कर दिया गया है...

Update: 2024-11-28 11:13 GMT

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लखनऊ। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का फैसला कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के खिलाफ है और आने वाले समय में इससे किसानों, मजदूरों, छोटे-मझोले व्यापारियों और आम नागरिकों को बेहद महंगी बिजली खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। इसलिए जन विरोधी इस फैसले को सरकार तत्काल वापस ले। यह मांग आज 28 नवंबर को ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट की प्रदेश कमेटी की तरफ से उठायी गयी है।

ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के प्रदेश संगठन महासचिव दिनकर कपूर ने कहा कि आजादी के बाद ग्रहण किए गए संविधान में राज्य की भूमिका कल्याणकारी राज्य के रूप में की गई थी, जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सड़क, बिजली, पानी जैसे बुनियादी क्षेत्र आम नागरिकों को उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेदारी थी। अब सरकार इससे पीछे हट रही है। बिजली जैसे क्षेत्र को निजी क्षेत्र में सौंपना महंगाई की मार से पहले से ही पीड़ित आम जनता पर कहर ढ़ाहना है।

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उन्होंने कहा कि पूरे देश में बिजली के निजीकरण के जितने भी प्रयोग थे, वह विफल साबित हुए हैं। उड़ीसा में बिजली के निजीकरण की नीति को सरकार को वापस लेना पड़ा। आगरा में टोरेंट पावर के निजीकरण में खुद सीएजी रिपोर्ट में करोड़ों रुपए के घोटाले होने की और प्रदेश सरकार को राजस्व हानि होने की बात सामने आई। महाराष्ट्र और मुख्यतः मुंबई में निजीकरण के कारण आम आदमी को बेहद महंगी बिजली खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है और उसका भी रेट विभिन्न समय के अनुसार भिन्न-भिन्न है।

वास्तविकता यह है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार जब-जब सत्ता में आती है, बिजली के निजीकरण को तेज किया जाता है। एनरान से बिजली समझौता, राज्य विद्युत बोर्ड का विभाजन, विद्युत कानून 2003 और विद्युत संशोधन अधिनियम 2022 भाजपा के राज में ही हुआ है। कुछ चंद कॉरपोरेट घरानों को पूरे देश और प्रदेश की बिजली व्यवस्था सौंपने में सरकारें लगीं हैं।

उन्होंने कहा कि दरअसल प्रदेश में बिजली विभाग को हो रहे घाटे के पीछे भी सरकार की नीतियां ही जिम्मेदार हैं। सस्ती बिजली पैदा करने वाले अपने उत्पादन गृहों से सरकार थर्मल बैंकिंग कराती है और उसी समय कॉर्पोरेट घरानों से बेहद महंगे दाम पर बिजली की खरीद की जाती है। बिजली के दुरुपयोग की हालत यह है कि यदि सचिवालय में ही लोग चले जाएं तो बहुत बड़ा बिजली का खर्चा वहां चलाए जा रहे एसी और तमाम संयंत्रों में दिखाई देगा। जो घाटा आज बताया जा रहा है उसका एक बड़ा हिस्सा सरकारी विभागों में बिजली बिल के बकाए का है। यदि उसे ही सरकार वापस कर दे तो बकाया की धनराशि काफी कम हो जाएगी।

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उन्होंने कहा कि सरकार का यह कहना कि निजीकरण के कारण कर्मचारी हित प्रभावित नहीं होंगे, पूर्णतया गलत है। साफ है कि निजीकरण के बाद बड़े पैमाने पर इंजीनियर से लेकर कर्मचारियों की छटंनी होगी और इस बात को जानते हुए ही सरकार ने वीआरएस जैसी बात की है। सबसे बड़ी मार तो इन वितरण निगमों में कार्यरत ठेका मजदूरों पर गिरेगी जिन्हें नौकरी से निकाल दिया जाएगा और उनकी कोई भी सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जाएगी।

उन्होंने कहा कि बिजली का निजीकरण दरअसल संसद में लंबित विद्युत संशोधन अधिनियम 2022 का ही अंग है, जिसमें सरकार ने क्रॉस सब्सिडी और सब्सिडी की प्रक्रिया को ही खत्म कर दिया गया है। इसके तहत किसानों को सिंचाई और कृषि कार्य के लिए मिल रही सस्ती बिजली का खत्म हो जाएगी। उन्होंने प्रदेश के तमाम विपक्षी दलों, किसान संगठनों, मजदूर और कर्मचारी संगठनों व गणमान्य नागरिकों से इस निजीकरण के विरुद्ध खड़े होने की अपील की है साथ ही निजीकरण के खिलाफ एआईपीएफ जन संवाद करेगा।

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