Rajiv Gandhi Assassination Case : SC ने केंद्र से पूछा- 36 साल जेल में रहने के बाद भी राजीव गांधी के हत्यारे एजी पेरारिवलन को क्यों नहीं किया जा रहा रिहा?
Rajiv Gandhi Assassination Case : शीर्ष अदालत ने इस मामले में राज्यपाल के फैसले पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि राज्यपाल का फैसला गलत और संविधान के खिलाफ है क्योंकि वो राज्य मंत्रिमंडल के परामर्श से बंधे हैं...
Rajiv Gandhi Assassination Case : देश के पूर्व प्रधानमंत्री (Ex Prime Minister) राजीव गांधी (Rajeev Gandhi) की हत्या मामले में एक आरोपित को जेल से रिहा करने के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केन्द्र सरकार (Central Government) से जवाब मांगा है। सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र से पूछा है कि 36 साल की सजा काट चुके एजी पेरारिवलन को रिहा क्यों नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब जेल में कम अवधि की सजा काटने वाले लोग रिहा हो सकते हैं तो केंद्र एजी पेरारिवलन (AG Perarivalan) को रिहा करने के लिए क्यों तैयार नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के फैसले पर उठाए सवाल
शीर्ष अदालत ने इस मामले में राज्यपाल के फैसले पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि राज्यपाल (Governor) का फैसला गलत और संविधान (Constitution) के खिलाफ है क्योंकि वो राज्य मंत्रिमंडल (State Cabinet) के परामर्श से बंधे हैं। उन्होंने जो फैसला लिया है संविधान के संघीय ढांचे पर प्रहार करता है। जस्टिस एलएन राव (Justice LN Rao) और जस्टिस बीआर गवई (Justice BR Gawai) की पीठ ने केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (Solicitor Journal) केएम नटराज (KM Natraj) को निर्देश दें कि वो एक सप्ताह में इस मामले में सरकार का पक्ष रखें नहीं तो वो पेरारिवलन की दलील के स्वीकार कर इस अदालत के पहले के फैसले के अनरूप उसे रिहा कर दिया जाएगा।
दोषी 36 साल की सजा काट चुका है फिर उसे क्यों नहीं किया जा रहा रिहा?
इस मामले में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराजन ने कहा है कि कुछ स्थितियों में राष्ट्रपति सक्षम प्राधिकारी होते हैं न कि राज्यपाल, खासकर जब मौत की सजा को उम्रकैद में बदलना पड़ता है तब। वहीं इस मामले में सुनवाई के दौरान अदालत ने लॉ अधिकारी से कहा कि दोषी 36 साल की सजा काट चुका है और जब कम अवधि की सजा काटने वाले लोगों को रिहा किया जा रहा है तो केंद्र उसे रिहा करने के लिए क्यों राजी नहीं है।
इस मामले में टिप्पणी करते हुए कहा है कि हम आपको बचने का रास्ता दे रहे हैं। ये एक विचित्र तर्क है। आपका तर्क है कि राज्यपाल के पास संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत दया याचिका पर निर्णय लेने का अधिकार नहीं है, पर वास्तव में यह संघीय ढांचे पर प्रहार करता है। पीठ ने इस दौरान यह सवाल किया कि, राज्यपाल किस स्रोत या प्रावधान के तहत राज्य मंत्रिमंडल के फैसले को राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं? जस्टिस राव ने कहा कि अगर राज्यपाल राज्य मंत्रिमंडल के रिहा करने के फैसले पर असहमत हैं, तो इसे वापस मंत्रिमंडल के पास भेज सकते हैं लेकिन राष्ट्रपति को नहीं भेज सकते।
क्या है मामला?
21 मई 1991 को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर में हत्या कर दी गयी थी। इस मामले में 11 जून 1991 को पेरारिवलन को गिरफ्तार किया गया था। उस पर बम धमाके में काम आई 8 वोल्ट की बैटरी खरीद कर हमले के मास्टरमाइंड शिवरासन को देने का आरोप साबित हुआ था। घटना के समय 19 साल के रहे पेरारिवलन ने जेल में रहने के दौरान अपनी पढ़ाई जारी रखी। उसने अच्छे नंबरों से कई डिग्रियां हासिल की। कोर्ट ने उसे जमानत देते हुए इन बातों को भी आदेश में जगह दी है।