RSS पर लिखी गई 64 पन्नों की किताब में ऐसा क्या है, जिसके आते ही मचा गया बवाल
RSS : यह किताब आरएसएस पर लिखी गई है, जो संघ से सीधे भिड़ंत करती है, यह किताब आरएसएस के संस्थापक डॉ हेडगेवार और शक्तिशाली सर संघ संचालक रहे एमएस गोवलकर और वीर सावरकर के लेखों से प्रभावित है...
RSS : आरएसएस यानि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर सैकड़ों किताबें लिखी जा चुकी हैं लेकिन हाल ही में कर्नाटक में महज 64 पन्नों की एक किताब से सवाल खड़ा हो गया है। इसे लिखा है मशहूर कन्नड़ साहित्यकार देवानुर महादेवा ने। किताब का नाम है आरएसएस : आला मट्टू अगाला। यानी आरएसएस की गहराई और चौड़ाई। किताब में कथाओं और रूपकों के माध्यम से संघ की आलोचना की गई है। बताया जा रहा है कि यह किताब सांप्रदायिकता और नफरत की राजनीति को लेकर है।
देवानुर महादेवा सामाजिक आर्थिक अन्याय पर लिख दे रहे हैं। उनके तीसरे उपन्यास 'कुसुमाबल्ले' के लिए उन्हें साहित्यिक अकादमी अवार्ड मिल चुका है। वे बीजेपी और संघ के कट्टर आलोचक माने जाते हैं। इस किताब पर फिलहाल संघ ने तो कुछ नहीं कहा है लेकिन बीजेपी ने इसे कचरा बताया है। उनका आरोप है कि कांग्रेस ने से तैयार करवाया है और लोगों के बीच बांट रही है।
'बीबीसी हिंदी' की एक रिपोर्ट के अनुसार इस किताब इतनी मांग है कि इसकी प्रिंट प्रतियां प्रकाशित होते ही खत्म हो जा रही हैं। हालांकि इसका पीडीएफ भी खूब वायरल हो रहा है। हालात यह है कि इसका हिंदी, तमिल तेलुगू और अंग्रेजी में अनुवाद भी करवाया जा रहा है। यह किताब ऐसे फॉर्मेट में है कि कोई भी इसे प्रकाशित करवा ले रहा है और इस बात से लेखक को बहुत आपत्ति भी नहीं है।
इस किताब में आखिर क्या लिखा गया है?
यह किताब आरएसएस पर लिखी गई है, जो संघ से सीधे भिड़ंत करती है। यह किताब आरएसएस के संस्थापक डॉ हेडगेवार और शक्तिशाली सर संघ संचालक रहे एमएस गोवलकर और वीर सावरकर के लेखों से प्रभावित है। इस किताब में लेखक ने संघ की कड़ी आलोचना की है। लेखक देवानुर महादेवा के अनुसार बीजेपी एक गैर संवैधानिक राजनीतिक दल है, जिसका नियंत्रण संघ के हाथ में है। बीजेपी से जुड़े एक साहित्य शिक्षक कहते हैं कि किताब एक निष्कर्ष यह भी दिखाना चाहती है कि बीजेपी को खत्म करना है तो संघ के विचारों को खत्म करना होगा।
जादूगर से की गई आरएसएस की तुलना
देवानुर महादेवा को अपनी लेखनी में रूपकों के प्रयोग के लिए जाना जाता है। इस किताब में उन्होंने आरएसएस की तुलना एक ऐसे जादूगर से की है, जिसकी आत्मा एक चिड़िया में बसती है और यह चिड़िया सात समुंदर पार एक गुफा में रहती है, यानी इस जादूगर को तब तक नहीं मारा जा सकता जब तक उस चिड़िया को खोज कर ना मारा जाए। ऐसा ही जेके रॉलिंग की किताब हैरी पॉटर सीरीज में दिखाया गया है। उसमें एक विलन वॉल्टमोट को मारने के लिए हॉरक्रेसेस को मारना जरूरी है। इस सीरीज पर इसी नाम से कई पार्ट में फिल्में भी बन चुकी है।
अंग्रेजी और कन्नड़ साहित्य के अध्येता प्रोफेसर राजेंद्र चेन्नी से बातचीत के आधार पर योगेंद्र यादव अपने एक लेख में लिखते हैं कि देवानुर जनश्रुतिओं, मिथकों और रूपकों के सहारे कहानी बुनते हैं। अपनी किताब में दरअसल उन्होंने यही काम किया है। उनकी इस किताब में यह बातें कथाओं के सहारे कहीं गई हैंm उन्होंने ने नल्ले बा टोटके का सहारा लिया है, जिसका मतलब होता है - आज नहीं कल आना।
आरएसएस को मानने वालों की भी तीखी आलोचना
योगेंद्र लिखते हैं, लेखक आर्य मूल से उत्पत्ति का मिथक, जातीय प्रभुत्व का छिपा हुआ एजेंडा, संविधान-प्रदत्त अधिकारों, संस्थाओं और संघवाद पर कुठाराघात और चंद पूंजीपतियों के हित में चल रही आर्थिक नीति जैसे मुद्दों पर आलोचना करते हैं। यह सब वे रुपकों की सहायता से कहते हैं।
'बीबीसी हिंदी' में छपी एक खबर के अनुसार इस पुस्तक में आरएसएस को मानने वालों की भी तीखी आलोचना की गई है। आरएसएस समर्थक और बीजेपी इस किताब को कचरा बता रहे हैं। इस पर लेखक महादेवा का कहना है कि उन्होंने इस 64 पन्ने की पुस्तिका में सीधे तौर पर आरएसएस विचारक गोलवलकर और सावरकर के विचारों को शामिल किया है। वे पूछते हैं कि जो इसे कचरा बता रहे हैं तो क्या वो उन्हीं गोलवलकर और सावरकर के विचारों को भी कचरा बता रहे हैं।