'पा' फिल्म नहीं रियल दुनिया के ऑरो ने दुनिया को कहा अलविदा, सर्कस वाले 4 लाख में आए थे खरीदने

अपने 5 बेटों में उसकी मां सबसे ज्यादा देखभाल रूपेश की ही करती थी, उसके पिता बताते हैं कि एक सर्कस वाला 4 लाख रूपये देकर रूपेश को साथ ले जाना चाहता था, लेकिन मां ने रूपये के बदले अपने जिगर के टुकड़े को नहीं ले जाने दिया...

Update: 2021-06-11 11:22 GMT

दुर्लभ बीमारी प्रोजेरिया का शिकार किशोर रूपेश बुधवार रात दुनिया को अलविदा कह गया. photo - social media

जनज्वार, लखनऊ। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज से निकट गांव धनैचा मलखानपुर निवासी रिक्शा चालक रामपति भारतीय के 23 वर्षीय बेटे रूपेश ने बुधवार 9 जून ी देर शाम दुनिया को अलविदा कह दिया। रूपेश लाइलाज बीमारी प्रोजेरिया से ग्रसित था और दुनिया में दुर्लभ संख्या में जन्म लेने वाले बच्चों में शामिल था। गुरूवार 10 जून को लीलापुर घाट पर रूपेश को दफन कर दिया गया।

गौरतलब है कि रूपेश के जन्म से कुछ साल बाद ही उसके लक्षण सामान्य बच्चों से अलग दिखने लगे थे। रूपेश के शरीर में हो रहे परिवर्तनो को देखकर उसके माता-पिता परेशान रहते थे। रूपेश को कई डॉक्टरों को दिखाया गया था, मगर गरीब मां—बाप की औलाद रूपेश को एक कैंप में रूपेश की बीमारी लिखी तो गई लेकिन उसे सिर्फ उसके हाल पर छोड़ दिया गया। आर्थिक तंगी के चलते रूपेश को मां-बाप ने भगवान सहारे छोड़ दिया था।

रूपेश को देखकर मां की आँखों में जब भी आँसू आते तो रूपेश भी देखकर रोने लगता। वह हर समय मां के आसपास बना रहता। अपने 5 बेटों में उसकी मां सबसे ज्यादा देखभाल रूपेश की ही करती थी। रूपेश के पिता के मुताबिक, एक सर्कस वाला 4 लाख रुपये देकर रूपेश को साथ ले जाना चाहता था, लेकिन मां ने रुपये के बदले अपने जिगर के टुकड़े को नहीं ले जाने दिया। गांव के बच्चे रूपेश को देखकर डरते थे और बड़े लोग उसे लंगड़ कहकर चिढ़ाते थे।

अमिताभ बच्चन अभिनीत 'पा' फिल्म आने के बाद रूपेश के बारे में काफी खबरें प्रकाशित हुयीं, मगर सही मायनों में इलाज के लिए इनमें से एक भी काम न आई। आशुतोष मेमोरियल ट्रस्ट के डॉ. गिरीश पांडेय ने रूपेश को तब देखा जब 6 फरवरी 2017 को कंबल वितरण कर रहे थे। उन्होंने रूपेश के घर की माली हालत देखते हुए उसकी मदद करने का संकल्प लिया और पूरे परिवार को अमिताभ बच्चन अभिनीत फिल्म 'पा' दिखाते हुए रूपेश की बीमारी से अवगत कराया। डॉ. गिरीश की मदद से रूपेश के घर में मुफ्त बिजली, कोटे से राशन सहित एक कूलर की व्यवस्था कराई गई थी।

डॉ. गिरीश रूपेश को सरकारी मदद दिलाने के लिए डीएम, कमिश्नर, एसडीएम के यहां खुद चक्कर काटते रहे, लेकिन कहीं से मदद नहीं मिली। बाद में कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह की सिफारिश पर रूपेश के इलाज के लिए दो लाख रूपये का फण्ड मंजूर हुआ, लेकिन बीमारी लाइलाज होने के चलते वह भी वापस हो गया।

डॉ. गिरीश पांडेय के मुताबिक रूपेश की याददाश्त बेहद मजबूत थी, जिससे भी एक बार मिलता झट से उसे पहचान लेता। साथ ही रूपेश अचूक निशानेबाज भी था। सैंकड़ों कंचे जीतकर उसने अपने घर पर रखे थे। रूपेश वीडियो या आइने में खुद की शक्ल देखकर हंसता था। गाना सुनने की इच्छा पर गिरीश ने उसे एक मोबाईल दिया था। रूपेश की डाइट बहुत कम थी, यहां तक की वह रोटी तक नहीं खा पाता था। ह रोटी नहीं खा पाता था।

जिस बीमारी ने रूपेश को लील लिया उस बीमार का नाम प्रोजेरिया है। प्रोजेरिया एक ऐसा रोग है जिसमें कम उम्र के बच्चों में भी बुढ़ापे जैसे लक्षण दिखने लगते हैं। यह अत्यंत दुर्लभ तथा वंशानुगत रोग है। 1986 में डॉ. जोनावन हचिंसन और 1987 में डॉ.हटिंग्स गिलफोर्ड ने इस बीमारी की खोज की थी, जिसे हविंग्सन-गिल्फोर्ड प्रोजेरिया सिंड्रोम कहते हैं। यह लेमिन-ए-जीन में गड़बड़ी के कारण होता है। यह विरलतम बीमारी 80 लाख की संख्या में किसी एक में पाई जाती है।

इस बीमारी में रोगी की त्वचा, धमनी और मांसपेशियों पर बदलाव का खराब असर पड़ता है। बच्चे की वृद्धि रूक जाती है। बाल झड़ने सहित दांत भी खराब हो जाते हैं। त्वचा पतली होने सहित शरीर में असमय झुर्रियां पड़ जाती हैं। मोटे तौर में इस बीमारी के चलते हड्डियां और त्वचा ही बाकी रह जाती है। आँखों के आस-पास काले गड्ढे पड़ जाते हैं। इस बीमारी वाला बच्चा अधिकतम अपनी उम्र सिर्फ 20 वर्ष तक जीता है।   

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