Russia Ukraine War impact on India : युद्ध और हम भारतीयों का अजीबोगरीब भोलापन

Russia Ukraine War: हम भारत के लोग बहुत ही भोले लोग हैं। भले होने की बात मैं नहीं कह सकता। दरअसल, हम भारत के लोग भोले लोग ही हैं, जो नाना प्रकार के संवेदनाओं में बह जाते हैं। यह बात मैं कोई मजाक में नहीं कर रहा।

Update: 2022-02-25 07:01 GMT

नवल किशोर कुमार की टिप्पणी

Russia Ukraine War: हम भारत के लोग बहुत ही भोले लोग हैं। भले होने की बात मैं नहीं कह सकता। दरअसल, हम भारत के लोग भोले लोग ही हैं, जो नाना प्रकार के संवेदनाओं में बह जाते हैं। यह बात मैं कोई मजाक में नहीं कर रहा। मैं वाकिफ हूं कि आज दुनिया तीसरे विश्वयुद्ध के मुहाने पर खड़ी है। नाटो और अमेरिका के रूख से अभी तक बहुत कुछ स्पष्ट नहीं हुआ है। उधर रूस के साथ चीन की बढ़ती दोस्ती निश्चित तौर पर पश्चिम के देशों के लिए एक चेतावनी है। रही बात हम भारत के लोग तो हम तो भोले लोग हैं। संवेदनाओं में बहे जा रहे हैं। और यह बेवजह नहीं है। हमारे देश की विदेश नीति का कबाड़ा कर दिया गया है। विश्व स्तर पर हमारी अपनी कोई स्पष्ट राय रही ही नहीं। यूक्रेन-रूस के बीच चल रही जंग तो खैर मसला ही अलग है।

मैं तो यह जानकर हैरान हूं कि हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन से फोन पर बात की और उनसे युद्ध खत्म करने का आग्रह किया। उधर नाटो देश रूस के खिलाफ बड़े हमले की तैयारी में लगे हैं। कल ही सीएनएन की एक खबर देख रहा था। अमेरिका ने भी अपने सैनिकों को अलर्ट पर रखा है। रूस तो खैर रूस ही है। उसने यूक्रेन को चारों तरफ से घेर लिया है। क्रीमिया के रास्ते उसके थल सैनिक अब यूक्रेन में प्रवेश कर चुके हैं। उसकी मदद में बेलारूस खड़ा है।

लेकिन हम भारत के लोग बड़े भोले लोग हैं। हम यह अपील कर रहे हैं कि युद्ध बंद हो। हम यह अपील इसलिए कर रहे हैं क्योंकि हम भोले लोग हैं। लेकिन हमारा भोलापन केवल और केवल तभी सामने आता है जब कोई पड़ोसी अपनी पत्नी के उपर हाथ उठाता है या अपने परिजनों के साथ मारपीट करता है। हमें लगता है कि हमारा पड़ोसी कितना क्रूर है कि अपने परिजनों पर हाथ उठा रहा है। लेकिन हम जब अपने परिजनों खासकर महिलाओं पर हाथ उठाते हैं और कोई हस्तक्षेप करना चाहता है तो हम कहते हैं कि यह हमारे घर का मामला है।

अब इसको दूसरे उदाहरण से समझिए। बहुत अधिक दिन नहीं हुआ जब एक मुकम्मिल राज्य को दो केंद्र शासित राज्य में बदल दिया गया। इसके पहले वहां की जनता द्वारा चुनी गयी सरकार को अपदस्थ किया गया और राष्ट्रपति शासन लगाया गया। फिर संसद में एक दिन घोषणा कर दी गयी कि उस राज्य के विशेष दर्जे को खत्म किया जा रहा है। वहां की जमीनें अब कोई भी खरीद सकता है। वहां जमीन क्या है, खूबसूरत पहाड़ और झील हैं।

खैर, इतना सब करने से पहले पूरे प्रदेश को कैद कर लिया गया। यह सब हमारी आंखों के सामने ही हुआ। ठीक वैसे ही जैसे आज रूस ने यूक्रेन पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। हमारे देश के हुक्मरान ने अपने ही एक प्रांत सेना की छावनी में बदल दिया। रास्तों पर कंटीले तार लगा दिए गए। लोगों के संपर्क के सारे माध्यम ठप्प कर दिए गए। उस प्रांत के नेताओं को जबरदस्ती कैद में डाल दिया गया। यह भी तो एक तरह का युद्ध ही था अपने ही देश के लोगों के खिलाफ। लेकिन हम भारत के लोग खुश थे। कुछ मेरे जैसे जो लोग खुश नहीं थे, लिखकर अथवा बोलकर अपनी नाराजगी जता रहे थे। हमें यह लग रहा था कि मानवता की रक्षा होनी चाहिए। वहीं बड़ी संख्या में वैसे भी लोग थे जो खुश थे कि अब वे उस प्रांत में जमीनें खरीद सकेंगे। भाजपा के एक नेता ने तो यहां तक कह दिया कि अब उस प्रांत में बाहरी लोग वहां की लड़कियों से शादी वगैरह भी कर सकेंगे।

तो हम भारत के लोग बड़े भोले लोग हैं। विदेशों में होनेवाली जरा-जरा सी बात पर संवेदनशील हो जाते हैं। करीब ढाई साल हो गए जब अमेरिका के मिनियापोलिस प्रांत में एक गोरे अमेरिकी सैनिक ने एक अश्वेत अमेरिकी नागरिक जार्ज फ्लॉयड की हत्या उसके गर्दन को अपने घुटने से दबाकर कर दी तब पूरे विश्व के साथ हम भारत के लोग भी संवेदनशील हो गए और कहने लगे– "ब्लैक लाइव्स मैटर"। लेकिन इसके पहले हम भारत के लोगों ने कभी नहीं कहा कि "दलित लाइव्स मैटर" या फिर "ओबीसी लाइव्स मैटर" या "आदिवासी लाइव्स मैटर"। जबकि आए दिन दलित, आदिवासी और ओबीसी उत्पीड़न की इतनी घटनाएं घटती हैं कि कायदे से रोज हमें संवेदनशील हो जाना चाहिए। मैं तो हाथरस में दलित युवती के साथ पहले बलात्कार, फिर उसकी रीढ़ की हड्डी तोड़ने, उसकी जीभ काटने और फिर रात के अंधेरे में पुलिस द्वारा उसकी लाश को आनन-फानन में जलाए जाने की घटना के बारे में सोच रहा हूं। तब क्या स्थिति थी। हमारे देश का शासक वर्ग ठहाके लगा रहा था। शासित वर्ग यह सोचकर परेशान था कि हाथरस जैसी घटना पड़ोसी के घर में हो तो ठीक, लेकिन हमारे घर में ना हो।

तो हम भारत के लोग बड़े भोले लोग हैं। हमारे भोलेपन का एक उदाहरण कल सुप्रीम कोर्ट में एक महिला जज ने पेश किया। उनका नाम है न्यायाधीश इंदिरा बनर्जी। दरअसल एक फिल्म आ रही है– "गंगूबाई काठिवाड़ी"। इसे लेकर ही सुप्रीम कोर्ट में एक मामला दर्ज कराया गया था। अच्छा इससे पहले कि मैं न्यायाधीश महोदया की संवेदनशीलता की दास्तान दर्ज करूं, पहले तो यह कि ये फिल्मों वाले मैटर सीधे सुप्रीम कोर्ट कैसे पहुंच जाते हैं? सामान्य मामलों में तो होता यह है कि कोई आदमी किसी थाने में मुकदमा दर्ज कराता है, फिर पुलिस अनुसंधान करती है। अनुसंधान के बाद पुलिस निचली अदालत में मामले को प्रस्तुत करती है। निचली अदालत में सुनवाई का लंबा दौर चलता है तब जाकर कोई फैसला आता है। दीवानी मामलों के केस में इतने में तीन से चार साल तो लगभग लग ही जाते हैं। लेकिन जो पक्ष फैसले से असंतुष्ट होता है, उसके पास हाई कोर्ट जाने का विकल्प होता है। फिर हाई कोर्ट में सुनवाई होती है। इसमें भी समय लगता है। फिर फैसला सुनाया जाता है और असंतुष्ट पक्ष सुप्रीम कोर्ट जाता है। लेकिन फिल्मों के मामले में यह प्रक्रिया कम ही होती है। सीधे सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होती है।

खैर, चूंकि हम भारत के लोग भोले लोग हैं तो हमें यह भी अच्छा लगता है कि फिल्मों पर सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के जज करते हैं। यह हमारी मानसिकता की बात है। तो कल सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश महोदया ने अदालत में कुछ ऐसा कहा कि सभी की आंखें नम हो गईं। ठीक वैसे ही जैसे हम भारतीयों की आंखें यूक्रेन में मारे जा रहे लोगों को लेकर नम हैं। न्यायाधीश महोदया ने कहानी सुनाते हुए कहा कि बहुत पहले उनके पास एक महिला आयी जिस जिस्मफरोशी के धंधे में झोंक दिया गया था। तब उसकी उम्र 14 साल की थी। जिस्मफरोशी का कारोबार चलानेवाली एक मौसी ने उसे लालच दिया था कि वह उसे भरपेट खाना देगी और इसके बदले उसे अच्छा काम करना होगा। वह लड़की उसके पास आयी उसने उसे जिस्मफरोशी के बाजार में झाेंक दिया। उसके साथ रोज बलात्कार किया जाता। मना करने पर उसे शारीरिक यातनाएं तो रोज की बात थी। एक दिन किसी ग्राहक को उसके उपर दया आयी और वह उसे वहां से निकालकर एक एनजीओ में ले गया। वहां जब उसकी जांच हुई तो वह एचआईवी पॉजिटिव थी। न्यायाधीश महोदया के मुताबिक, उस महिला ने उनका हाथ पकड़कर कहा था– इसमें मेरा कसूर क्या था?

सचमुच हम भारत के लोग बड़े भोले हैं। हमारा भोलापन हमारी विविधता के जैसे ही विविध प्रकार का है। लेकिन यही जीवन है और यही हमारा देश है। विश्व तो खैर है ही। रही बात मेरी तो मैं थोड़ा कम संवेदनीशील हूं यूक्रेन-रूस के मामले में। मैं तो अमेरिका की अकड़ को मिल रही रूसी चुनौती को देख रहा हूं। अब जब युद्ध शुरू ही हो गया है तो इसका कुछ ना कुछ परिणाम तो निकलेगा ही। मेरे यह लिखने से युद्ध थोड़े ना रूक जाएगा कि पुतिन साहब, युद्ध रोकिए क्योंकि लोग मारे जा रहे हैं। लिखने को तो मैंने जम्मू-कश्मीर के बारे में भी लिखा था। लेकिन हुआ क्या?

कुल मिलाकर बात केवल इतनी है कि हुक्मरान अपने मन की करते हैं। फिर चाहे वह हमारे हुक्मरान हों या फिर किसी और मुल्क के। बाकी जो रियाया यानी की जनता है, बड़ी भोली ही होती है। एक समझदार आदमी की तरह मैं भी चिंतित हूं कि यूक्रेन के लोग परेशान हैं। लोगों को अपना घर-बार छोड़ना पड़ रहा है। लोग मारे जा रहे हैं। यह गलत है और मानवता के खिलाफ है। यह बंद होना ही चाहिए।

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