Russian Ukraine War : गम में डूबे नवीन के पिता ने बताई आपबीती, कहा - जंग ने नहीं, जातिवादी एजुकेशन सिस्टम ने बेटे को मारा

Russian Ukraine War : नवीन शेखरप्पा एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए मजबूरी में यूक्रेन भेजा था, क्योंकि एसएसएलसी और पीयूसी एग्जाम में टॉपर होने के बावजूद उसे सरकारी मेडिकल कॉलेज में सीट नहीं मिली थी। समझ में नहीं आता कि ये कौन सी शिक्षा व्यवस्था है जो अपने टॉपर को रुचि के विषय में पढ़ने के लिए प्रवेश तक नहीं देता।

Update: 2022-03-02 08:08 GMT

सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहा है, नवीन को आरक्षण ने मारा! 

Russian Ukraine War : एक होनहार बेटे को खोने की पीड़ा की क्या होती है, इसे वही समझ सकता है, जिसने इसे झेला हो। दुर्भाग्यवश, यूक्रेन के खारकीव शहर में हुई रूसी गोलाबारी में भारत के छात्र नवीन शेखरप्पा ( Naveen Shekharappa ) की मौत के बाद से उनके पिता भी इसी पीड़ा को झेल रहे हैं। नवीन का परिवार घटना के बाद से गहरे सदमे में है। गम में डूबे नवीन के पिता शेखरप्पा ज्ञानगौदर ( Shekharappa Gyangaudar ) ने देश के एजेकुशन सिस्टम पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने बेटे को खोने की वेदना पर काबू पाते हुए सुबकते हुए कहा - टॉपर होने के बावजूद नवीन को सरकारी मेडिकल कॉलेज में सीट नहीं मिल पाई थी। मजबूरन उसे डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए यूक्रेन भेजना पड़ा।

यूक्रेन भेजने की मजबूरी यहीं तक सीमित नहीं है। शेखरप्पा ज्ञानगौदर ( Shekharappa Gyangaudar ) ने टाइम्स ऑफ इंडिया से नवीन को यूक्रेन भेजने का जिक्र करते हुए कहा कि हम अपने बेटे के लिए सपने देख रहे थे। अब वे सब टूट चुके हैं। मैंने अपने बेटे को एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए मजबूरी में यूक्रेन भेजा था, क्योंकि एसएसएलसी और पीयूसी एग्जाम में टॉपर होने के बावजूद उसे सरकारी मेडिकल कॉलेज में सीट नहीं मिली थी। समझ में नहीं आता कि ये कौन सी शिक्षा व्यवस्था है जो अपने टॉपर को अपने रुचि के विषय में पढ़ने के लिए प्रवेश तक नहीं देता।

इसलिए नवीन के पिता शेखरप्पा ज्ञानगौदर ( Shekharappa Gyangaudar ) ने उन्हें यूक्रेन भेजने के लिए अपने मित्रों और रिश्तेदारों से पैसे कर्ज लिए। उनका सपना था बेटे को डॉक्टर बनाना है। उन्होंने कहा कि एजुकेशन सिस्टम और जातिवाद की वजह से होनहार होने के बावजूद नवीन को एक सीट नहीं मिल सकी। मैं अपने राजनैतिक सिस्टम, शिक्षा व्यवस्था और जातिवाद से निराश हूं। सब कुछ प्राइवेट इंस्टिट्यूट्स के हाथों में है। शिक्षा व्यवस्था मेरिट से नहीं पैसों से संचालित है।

टाइम्स ऑफ इंडिया से उन्होंने बताया कि नवीन को प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में पढ़ाने के लिए मुझे 85 लाख से एक करोड़ रुपये खर्च करने पड़ते। तभी मैंने फैसला किया कि उसे पढ़ाई के लिए यूक्रेन भेजूंगा। लेकिन यह और ज्यादा महंगा साबित हुआ। इसके अलावा, नवीन के पिता ने कहा कि कर्नाटक के हावेरी जिले के मेडिकल छात्र नवीन के पास खाने-पीने का सामान खत्म हो चुका था। वह कुछ खरीदने के लिए बाहर निकले थे। अचानक खारकीव के फ्रीडम स्कवॉयर पर वह एक रूसी रॉकेट हमले का शिकार हो गए। उन्होंने बताया कि रूस और यूक्रेन के बीच 24 फरवरी से जारी जंग की वजह से नवीन ने एक बंकर में शरण ले रखी थी। परिवार के मुताबिक दिन भर में नवीन पांच से छह बार फोन करके अपना हाल बताते थे।

नवीन कुछ दोस्तों के साथ एक अपार्टमेंट में रहते थे। नवीन के दोस्त अमित का कहना है कि स्थानीय समय के मुताबिक सुबह छह बजे नवीन बंकर से निकलकर सिटी सेंटर पर गए। अमित उस दर्दनाक मंजर को बयां करते हुए कहते हैं कि सुबह सात बजकर 58 मिनट पर अपने एक दोस्त को नवीन ने फोन वॉलेट पर पैसा ट्रांसफर करने के लिए कहा। उसके बाद सुबह आठ बजकर 10 मिनट पर हमें एक कॉल आई, जिसमें कहा गया कि वह अब इस दुनिया में नहीं है। अमित ने आगे बताया कि हम चार दिन से पर्याप्त भोजन और पानी के बगैर बंकर में शरण लिए हुए थे।

बेंगलुरु में पीएचडी कर रहे नवीन के बड़े भाई हर्षा कहते हैं - जून में उसे आठवें सेमेस्टर का एग्जाम देना था। तुमकुरु जिले की रहने वाली एमबीबीएस सेकेंड सेमेस्टर की छात्रा नंदिनी ने बताया कि उन्हें कॉलेज के वॉट्सऐप ग्रुप पर नवीन की मौत के बारे में पता चला और वह पुराने दिनों की यादों में खो गईं। नंदिनी बताती हैं कि नए साल के जश्न के लिए हम फ्रीडम स्क्वॉयर पर गए थे। मंगलवार को यह बिल्डिंग ध्वस्त हो गई। नवीन की तरह यह भी हमसे दूर हो गई है।

Russian Ukraine War : नंदिनी बताती हैं कि नवीन की मौत के बाद यूक्रेन में रह रहे स्टूडेंट्स अपनी सुरक्षा को लेकर काफी चिंतित हैं। हर पल के साथ भारी गोलाबारी के बीच हम डरे हुए हैं। हमारे परिजन चिंतित हैं। हमें बंकर नहीं छोड़ने के लिए कहा गया है। यहां हमारे पास पीने के लिए पानी तक नहीं है। खारकीव से करीब 1200 किलोमीटर दूर पोलैंड जाना संभव नहीं है। हमें वहां जाने के लिए ट्रेन पकड़नी होगी। हमने भारतीत दूतावास को यहां से सुरक्षित निकालने के लिए कई ई-मेल भेजे हैं। हम रूस के बॉर्डर से सिर्फ 50 किलोमीटर दूर हैं।

Tags:    

Similar News