सबसे मुश्किल दौर में चीन-भारत संबंध, लेकिन पीएम मोदी इस मुद्दे पर क्यों नहीं दिखाते राष्ट्रभक्ति

पीएम मोदी ने चीन के साथ संबंधों को लेकर अपनी बड़ी राजनीतिक पूंजी लगाई है। इसलिए चाहेंगे कि अगर कल भारत को चीन के साथ बातचीत के लिए मजबूर भी होना पड़े तो भी वह अपनी कूटनीतिक कुशलता साबित करने का ढिंढोरा पीट सकें।

Update: 2022-02-21 10:47 GMT

भारत-चीन संबंधों को लेकर पीएम मोदी क्यों नहीं दिखाते देशभक्ति। 

नई दिल्ली। डोकलाम और उसके बाद गलवान घाटी में हिंसक झड़प के बाद से चीन-भारत संबंध सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहा है। हालांकि, दोनों तनाव को कम करने के लिए हर स्तर पर प्रयास कर रहे हैं, लेकिन इस दिशा में अभी तक खास सफलता नहीं मिली है। ऐसे में चर्चा का विषय यह है कि राष्ट्रवाद ( Nationalism ) और देशभक्ति ( patriotism ) के मुद्दे के पर बढ़ चढ़कर बोलने वाले पीएम मोदी ( PM Narendra Modi ) करीब दो साल से भारत-चीन विवाद पर खुलकर क्यों नहीं बोलते?

इस मसले पर जानकारों का कहना है कि इस मुद्दे पर केवल मोदी ही नहीं शी जिनपिंग भी खामोश रहना ही बेहतर मानकर चल रहे हैं। चुप्पी को लेकर हैरान होने वाली बात भी नहीं है। ये भी हो सकता है कि उन्होंने चीन की आलोचना का जिम्मा उन्होंने जूनियर मंत्रियों पर छोड़ रखा हो। उनकी चुप्पी को कूटनीति की बारीक नजरिए से समझा जा सकता है। ऐसा इसलिए कि पीएम मोदी ( PM narendra Modi ) ने चीन के साथ संबंधों को लेकर अपनी इतनी राजनीतिक पूंजी लगाई है कि कल अगर भारत को चीन के साथ बातचीत के लिए मजबूर होना पड़े तो भी उनके पास अपनी कूटनीतिक कुशलता साबित करने लिए के लिए स्पेस हो।

कुछ जानकारों का कहना है कि भारत सरकार का वर्तमान में ध्यान वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन के साथ मौजूदा तनाव कम करने में पर है। इस मामले में यह देखना भी जरूरी है कि शी जिनपिंग ( President Xi Jinping ) ने भी सीधे तौर पर भारत के खिलाफ अब तक कोई बयान नहीं दिया है।

यह सवाल प्रासंगिक इसलिए भी है कि विदेश मंत्री एस जयशंकर ( Jaishankar ) ने म्यूनिख में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भारत और चीन के रिश्तों को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि भारत और चीन के रिश्ते फिलहाल बेहद मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं। 1975 से लेकर 2020 तक के 45 वर्षों के दौरान हालात ऐसे नहीं थे। 2020 से पहले के 45 सालों में दोनों देशों की सीमाओं पर शांति बनी रही और सेनाओं को कोई नुकसान भी नहीं उठाना पड़ा।

जयशंकर का कहना है कि चीन ने एलएसी ( LAC ) पर सेनाओं की तैनाती नहीं करने के आपसी समझौते को तोड़कर दोनों देशों के रिश्ते बिगाड़ने का काम किया है। अब भारत-चीन के आपसी रिश्ते कैसे रहेंगे, यह दोनों देशों की सीमाओं के हालात से तय होगा।

इससे पहले विदेश मंत्री जयशंकर पिछले हफ्ते ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में भी कह चुके हैं कि चीन ने 2020 में LAC पर सेनाओं का जमावड़ा नहीं करने के लिखित समझौते को तोड़ दिया, जिस वजह से हालात बिगड़ गए। साथ ही कहा था कि एक बड़ा देश जब लिखित समझौतों का पालन नहीं करता, तो यह पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए चिंता का कारण बन जाता है।

बता दें कि 15 जून, 2020 को गलवान वैली में भारतीय सैनिकों पर चीन के हमले के बाद दोनों पक्षों में हुए भीषण टकराव के बाद से रिश्ते काफी बिगड़े हुए हैं। पूर्वी लद्दाख के सीमा से सटे इलाकों में भारत और चीन की सेनाओं के बीच तनाव बरकरार है। यही वजह है कि पैंगोंग लेक इलाके में दोनों पक्षों की तरफ से बड़े पैमाने पर सुरक्षा बलों और हथियारों की तैनाती भी जारी है।

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