SBI Report : अर्थव्यवस्था में अनौपचारिक क्षेत्र का तेजी से घटा हिस्सा, कोरोना महामारी का अबतक भुगत रहा खामियाजा

SBI Report : रिपोर्ट के मुताबिक महामारी ने अर्थव्यस्था के सभी क्षेत्रों पर भारी विनाशकारी प्रभाव डाला है लेकिन अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा प्रभाव को अधिक महसूस किया गया है।

Update: 2021-11-01 10:14 GMT

(प्रतीकात्मक तस्वीर)

SBI Report। अर्थव्यवस्था को अनौपचारिक रूप देने की दिशा में एक बड़े बदलाव का संकेत देते हुए एसबीआई (SBI Research Report) ने अपनी एक रिसर्च रिपोर्ट में बताया है कि समग्र आर्थिक गतिविधि में बड़े असंगठित क्षेत्र की हिस्सेदारी 2020-21 में तेजी से घटी है जबकि असंगठित श्रमिकों (Informal Workers) को महामारी (Covid 19) के प्रतिकूल प्रभावों का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। 

यह निष्कर्ष निकालते हुए कि अनौपचारिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा 2017-18 में लगभग 52 प्रतिशत से 20 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता है, एसबीआई समहू के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष (Soumya Kanti Ghosh) ने इसे कोरोना महामारी के बीच एक 'पॉजिटिव डिवलेपमेंट' करार दिया। 

विभिन्न क्षेत्रों में औपचारिकता के स्तर में व्यापक भिन्नताएं हैं लेकिन एसबीआई ने अनुमान लगाया है कि अनौपचारिक अर्थव्यवस्था संभवत: 2020-21 में औपचारिक जीडीपी के अधिकतम 15 प्रतिशत से 20 प्रतिशत तक है, जिसमें हाल के वर्षों विभिन्न चैनलों के माध्यम से कम से कम 13 लाख करोड़ रुपये औपचारिक अर्थव्यवस्था में आ रहे हैं।

इस साल आईएमएफ के एक नीति पत्र में अनुमान लगाया गया था कि सकल मूल्य वृद्धि (GVA) में भारत की अनौपचारिक अर्थव्यवस्था की हिस्सेदारी 2011-12 में 53.9 प्रतिशत थी और 2017-18 में यह मामलू रूप से बढ़कर 52.4 प्रतिशत हो गई। 2014 के नेशनल सेंपल सर्वे के मुताबिक लगभग 93 प्रतिशत वर्कफोर्स ने अनौपचारिक श्रमिकों के रूप में अपनी आजीविका प्राप्त की।

अनौपचारिक क्षेत्र में 'स्वयं खाता' या असंगठित उद्यम शामिल होते हैं जो कॉन्ट्रैक्ट पर श्रमिकों को नियुक्त करते हैं। इस तरह की असंगठित गतिविधि का अधिकतम हिस्सा कृषि में है जहां जोतें छोटी और खंडित हैं।

एसबीआई के अनुमानों से पता चलता है कि अनौपचारिक कृषि क्षेत्र में सकल मूल्य वृद्धि 97.1 प्रतिशत थी जो 2020-21 में घटकर केवल 70-75 प्रतिशत रह गई है। रियल एस्टेट ने भी अनौपचारिक गतिविधि में भारी गिरावट देखी है। 2017-18 में यह 52.8 प्रतिशत थी जबकि 2019-20 में यह 20 प्रतिशत से 25 प्रतिशत रह गई। 

रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि कोरोना महामारी के बाद से लगभग 1.2 लाख करोड़ नकद कैश के इस्तेमाल को औपचारिक रूप दिया गया है। 2017-18 और 2020-21 के बीच औपचारिक कृषि ऋण प्रवाह में 4.6 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि हुई है, इसी अवधि में पेट्रोल और डीजल के लिए डिजिटल भुगतान में लगभग 1 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि हुई है।     

रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि उसके अनुमान इस धारणा पर आधारित हैं कि महामारी के बाद अर्थव्यवस्था में सिकुड़न ज्यादातर अनौपचारिक है। रिपोर्ट के मुताबिक महामारी ने अर्थव्यस्था के सभी क्षेत्रों पर भारी विनाशकारी प्रभाव डाला है लेकिन अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा प्रभाव को अधिक महसूस किया गया है। जबकि अनौपचारिक क्षेत्र अब अपने महामारी से पहले के स्तर पर आ गया है, अनौपचारिक क्षेत्र अभी भी इसका खामियाजा भुगत रहा है। 

रिपोर्ट में आईएमएफ के उस बयान का भी संदर्भ लिया गया है जिसमें भारत में जीएसटी को अपनाने, डिजिटलीकरण को बढ़ावा देने और और विमुद्रीकरण (नोटबंदी) से अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाने में तेजी आई है। इसमें सरकार को सलाह दी गई है कि अर्थव्यवस्था के औपचारिक होने के बावजूद, ईंधन पर प्रत्यक्ष कर और ईमानदार करदाताओं की मदद के लिए बेहतर ढांचा तैयार करना महत्वपूर्ण है।

कुछ अपवादों के साथ रिपोर्ट के अनुमान के मुताबिक 11.4 करोड़ करदाता परिवार या कुल आबादी के 8.5 प्रतिशत हिस्से ने निजी अंतिम खपत व्यय में 75 लाख करोड़ रुपये या 65 प्रतिशत का योगदान दिया है। वित्त वर्ष 2021 में 91.5 प्रतिशत आबादी की सब्सिडी की भरपाई की है। 

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