Sedition Law History : सबसे पहले एक पत्रकार पर लगा था राजद्रोह का आरोप, जानिए 152 साल पुराना राजद्रोह कानून हर दौर में कैसे सत्ता का हथियार बना रहा?
Sedition Law History : राजद्रोह कानून का उल्लेख भारतीय दंड संहिता की धारा 124A (IPC Section-124A) में है। इस कानून के मुताबिक, अगर कोई व्यक्ति सरकार के खिलाफ कुछ लिखता, बोलता है या फिर किसी अन्य सामग्री का इस्तेमाल करता है, जिससे देश और संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश की जाती है तो उसके खिलाफ IPC की धारा 124A की तहक केस दर्ज हो सकता है...
Sedition Law History : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (11 मई) को राजद्रोह कानून के तहत FIR दर्ज (Sedition Law History) करने से परहेज करने को कहा है। कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार को राजद्रोह कानून पर फिर से विचार करना चाहिए। कोर्ट ने कहा-राजद्रोह कानून फिलहाल निष्प्रभावी रहेगा। जो लोग पहले से इसके तहत जेल में बंद है, वो राहत के लिए कोर्ट का रुख कर सकेंगे। इस कानून को हटाने की लंबे समय से मांग चल रही थी। क्या आपको पता है राजद्रोह कानून का इस्तेमाल सबसे पहले एक पत्रकार के खिलाफ किया गया था। आइए जानते हैं इस कानून की पूरी कहानी है।
क्या है राजद्रोह कानून की असलियत?
आपको बता दें कि राजद्रोह कानून Sedition Law History) का उल्लेख भारतीय दंड संहिता की धारा 124A (IPC Section-124A) में है। इस कानून के मुताबिक, अगर कोई व्यक्ति सरकार के खिलाफ कुछ लिखता, बोलता है या फिर किसी अन्य सामग्री का इस्तेमाल करता है, जिससे देश और संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश की जाती है तो उसके खिलाफ IPC की धारा 124A की तहक केस दर्ज हो सकता है। इसके अलावा अन्य देश विरोधी गतिविधि में शामिल होने पर भी राजद्रोह के तहत मामला दर्ज किया जाता है।
अंग्रेजों के जमाने में बनाया गया था राजद्रोह कानून
इस कानून का लंबे वक्त से देश में विरोध हो रहा है। विरोध करने वाले लोग तर्क देते हैं कि ये कानून अंग्रेजों के जमाने में बना है। ये बात बिल्कुल ठीक भी है. ब्रिटिश शासन में ही साल 1870 में ये कानून बनाया गया था। तब इस कानून (Sedition Law History) का इस्तेमाल अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत करने और विरोध करने वाले लोगों पर किया जाता था। तब इस कानून के तहत कई लोगों को उम्रकैद की सजा दी गई थी। देश में पहली बार साल 1891 में बंगाल के एक पत्रकार जोगेंद्र चंद्र बोस पर राजद्रोह लगाया गया था। वो ब्रिटिश सरकार की आर्थिक नीतियों और बाल विवाह के खिलाफ बनाए गए कानून का विरोध कर रहे थे।
कई स्वतंत्रता सेनानियों पर भी लगा था राजद्रोह का आरोप
इसके बाद साल 1897 में महान स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक के खिलाफ भी इस कानून (Sedition Law History) का इस्तेमाल किया गया था। इसके अलावा आजादी के कई सेनानियों पर राजद्रोह के आरोप लगे और यह कानून थोपा गया। अंग्रेजी हुकूमत ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के खिलाफ भी इस कानून का इस्तेमाल किया था।
भारत के अलावा इन देशों में भी है राजद्रोह कानून
ऐसा नहीं है कि ये कानून केवल भारत में ही है। भारत के अलावा कई अन्य देशों में भी सरकारों के खिलाफ बोलने पर राजद्रोह लगता है। इन देशों में ईरान, अमेरिका, सऊदी अरब, ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया जैसे कई देश शामिल हैं. हालांकि इन देशों में इस कानून के तहत कम ही मामले सामने आते हैं।
भारत में तेजी से बढ़ रहे हैं राजद्रोह कानून के इस्तेमाल के मामले
भारत में सरकारें लोगों पर ये कानून लगाने में बड़ी फुर्ती दिखा रही हैं। ये बात इस कानून के आंकड़ों से पता चलती है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, साल 2014-17 के बीच चार साल में राजद्रोह के कुल 163 केस दर्ज किए थे। वहीं अगले तीन साल यानी 2018-2020 तक ये बढ़कर 236 पहुंच गए। केवल तीन सालों में ही राजद्रोह कानून में 70 फीसदी का इजाफा हुआ। बता दें कि 2014 से पहले देश में राजद्रोह से संबंधित मामलों का डेटा रिकॉर्ड नहीं किया जाता था। ये काम National Crime Records Bureau यानी NCRB ने साल 2014 से ही शुरू किया।
अबतक 2 फीसदी मामलों में ही दोष सिद्ध हुए
भारत में राजद्रोह कानून के आंकड़े बेहद चौंकाने वाले हैं। कई लोगों का मानना है कि सरकारें राजद्रोह कानून (Sedition Law History) का गलत इस्तेमाल करती हैं। इसे लेकर लोकसभा में रखे गए एक आंकड़े के मुताबिक, देश में साल 2014 से 2020 तक कुल 399 राजद्रोह के मामले लगाए गए। लेकिन चार्जशीट से जब तक कोर्ट तक आते-आते ये केवल 125 यानी करीब एक तिहाई रह गए। वहीं अपराध सिद्ध होने तक राजद्रोह के केवल 8 मामले ही बचे।