Sedition Law : राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर जवाब के लिए केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से और वक्त, कहा सक्षम अथॉरिटी से पुष्टि की प्रतीक्षा

Sedition Law : सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक आवेदन में केंद्र ने कहा कि हलफनामे का मसौदा तैयार है और वह सक्षम अथॉरिटी से पुष्टि की प्रतीक्षा कर रहा है....

Update: 2022-05-03 11:57 GMT

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Sedition Law : केंद्र सरकार ने राजद्रोह से जुड़े दंड कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से समय मांगा है। भारत के चीफ जस्टिस (CJI) एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने 27 अप्रैल को केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने का आदेश दिया था। पीठ ने कहा था कि वह पांच मई को मामले में अंतिम सुनवाई शुरू करेगी तथा स्थगन के लिए किसी भी अनुरोध पर विचार नहीं करेगी।

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court Of India) के समक्ष एक आवेदन में केंद्र ने कहा कि हलफनामे का मसौदा तैयार है और वह सक्षम अथॉरिटी से पुष्टि की प्रतीक्षा कर रहा है। कोर्ट ने अपने पिछले आदेश में कहा था कि वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल मामले में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124 ए राजद्रोह की वैधता के खिलाफ याचिकाकर्ता की ओर से दलील संबंधी नेतृत्व करेंगे।

राजद्रोह से संबंधित दंडात्मक कानून के दुरुपयोग से चिंतित सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल जुलाई में केंद्र सरकार से पूछा था कि वह उस प्रावधान को निरस्त क्यों नहीं कर रही जिसे स्वाधीनता आंदोलन को दबाने और महात्मा गांधी जैसे लोगों को चुप कराने के लिए अंग्रेजों के द्वारा इस्तेमाल किया गया।

भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए (राजद्रोह) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (Editors Guild Of India) और पूर्व मेजर जनरल एस.जी. वोम्बटकेरे की याचिकाओं की पड़ताल के लिए सहमत होते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उसकी मुख्य चिंता कानून का दुरुपयोग है जिसके कारण मामलों की संख्या में वृद्धि हो रही है।

पिछले साल जुलाई में याचिकाओं पर नोटिस जारी करते हुए कोर्ट ने प्रावधान के कथित दुरुपयोग का उल्लेख किया था और पूछा था कि क्या आजादी के 75 साल बाद भी औपनिवेशिक युग के कानून की आवश्यकता है? चीफ जस्टिस ने कहा था- यह एक औपनिवेशिक कानून है। यह स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए था। इसी कानून का इस्तेमाल अंग्रेजों ने महात्मा गांधी, तिलक आदि को चुप कराने के लिए किए था। क्या आजादी के 75 साल बाद भी यह जरूरी है?

अन्य याचिकाकर्ताओं में पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी और मणिपुर के पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेमचा तथा छत्तीसगढ़ से कन्हैया लाल शुक्ला शामिल हैं।

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