उत्तराखंड : SC/ST स्कॉलरशिप में करोड़ों के घोटाले को बेनकाब करने वाले शख्स से मिलिए, जानिए पूरा सच

चंद्रशेखर करगेती कहते हैं कि यह बहुत दुर्भाग्य का विषय है कि उत्तराखंड में सरकारी संस्थान तकरीबन खत्म हो चुके हैं, उसकी वजह यह है कि सरकारों ने ही उन्हें कमजोर किया है....

Update: 2021-07-25 07:55 GMT

जनज्वार। उत्तराखंड के 2019 के बहुचर्चित छात्रवृत्ति घोटाले में दर्जनों गिरफ्तारियां हो चुकी हैं। इस भ्रष्टाचार में जो अधिकारी शामिल थे उन सब पर कार्रवाई हुई है। लेकिन जिन लोगों की बदौलत यह कार्रवाई संभव हो पायी है उनमें से एक चंद्रशेखर करगेती भी हैं। करगेती उत्तराखंड हाईकोर्ट में वकील और आरटीआई एक्टिविस्ट हैं। उन्होंने 'जनज्वार' से खात बातचीत की।

सवाल- लगभग तीन साल का समय बीतने जा रहा है, अब तक जो कार्रवाई हुई है क्या आप उससे सहमत हैं?

जवाब- देखिए, ऐसा है इस मामले में एक राज्य की एजेंसी जितना कर पाती है, उसने उतना किया है और अभी उसमें बहुत कुछ होना उसमें बाकी है। लेकिन जब हम देखते हैं कि जब एक राज्य की पुलिस अपनी जांच को आगे बढ़ाती है तो उसमें कई रिस्ट्रिक्शंस होती हैं। रिस्ट्रिक्शंस यह होती हैं कि उसमें नीचे के जो छोटे अधिकारी हैं उनपर मुकदमा दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है लेकिन जहां बात बड़े अधिकारियों, नेताओं और सत्ता में बैठे लोगों पर हाथ डालने की आती है तो फिर उसके हाथ बंध जाते हैं क्योंकि उसकी पावर सीमित है। यह जो छात्रवृत्ति घोटाला हमारे राज्य में हुआ है, यह आज से नहीं हुआ, जब हमारे राज्य की स्थापना हुई थी तो हमें यह यूपी से मिला था। वह कल्चर वहां चलता रहा। छोटे लेवल का अधिकारी तब तक घोटाला नहीं करता है जब तक उसे शासन स्तर पर संरक्षण न हो।

सवाल : ये जो पूरा 2019 का छात्रवृत्ति घोटाला है, यह कितना बड़ा है?

जवाब: अगर बड़े लेवल पर हम देखें तो बीच का कदम हम 2004-05 से शुरू करते हैं। दरअसल उस समय यहां पर प्राइवेट संस्थान इतने नहीं थे। प्राइमरी स्कूल और मीडिल स्कूल में यह व्यापक स्तर पर था। खासतौर पर यह उधमपुर, हरिद्वार और देहरादून जिले में था। प्राइवेट संस्थान इन्हीं तीन राज्यों में थे। हमारे पहाड़ी जिलों में ये प्राइवेट संस्थान नहीं थे। नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बने तो प्राइवेट संस्थानों की बाढ़ जैसी आ गयी। प्राइवेट संस्थानों की बाढ़ आयी तो उनमें एडमिशन लेने वालों की भी संख्या बढ़ी।

'एडमिशन तो बढ़े लेकिन वह इतना नहीं था कि प्राइवेट संस्थानों का खर्चा और ढांचा जो उन्होंने खड़ा किया था फीस से उसकी रिकवरी हो पाए। यहां पर एक एससी, एसटी के लिए स्कॉलरशिप थी। कोर्स की फीस ज्यादा थी। तो वहां पर भारत सरकार की योजना थी कि एससी, एसटी का कोई छात्र होगा तो उसकी फीस तो हम देंगे ही देंगे, इसके अलावा एक स्कॉलरशिप का भी प्रावधान है। उन कोर्स में एक साल की जो फीस की छोटी से छोटी राशि 25 हजार रुपये होती थी और डेढ़ लाख तक जाती थी और जो स्कॉलशिप थी वह 5600-5700 रुपये सालाना होती थी।'

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'तो यहां पर स्कॉलरशिप तो डिस्मिस होती ही थी। एससी/एसटी के छात्रों के लिए जो प्रावधान था कि प्राइवेट संस्थान एससी/एसटी छात्रों से जो फीस चार्ज करते थे उसको भी सरकार देती थी। सरकारी संस्थाओं में तो एस/एसटी के लिए फीस माफ थी। लेकिन प्राइवेट संस्थान फर्जी तरीके से एडमिशन दिखाकर के सरकार से पैसा लेते थे। उत्तराखंड में 2014 से पहले जिला समाज कल्याण कार्यालयों से प्राइवेट संस्थाओं के खातों में पैसा डाल दिया गया और वहां पर क्या था कि जो बच्चे पढ़ने वाले थे, दलालों के मार्फत उनसे सीधे-सीधे फॉर्म भरवाए गए। फॉर्म के साथ ही बैंक अकाउंट भी साइन करवा लिए गए और बैंक अकाउंट में एड्रेस इंस्टीट्यूट का दिया गया और बैंक भी वहीं थे जिनमें इंस्टीट्यूट के खाते थे। तो उनकी पासबुक, चेकबुक और एटीएम, पिन भी इंस्टीट्यूट के एड्रेस पर आयी।'

सवाल : प्राइवेट संस्थान स्कॉलरशिप छात्रों को देने की बजाय खुद रख लेते थे, तो इसकी सुगबुगाहट कैसे हुई?

जवाब: इसकी शुरुआत हमारे एक पत्रकार और राज्य आंदोलकारी योगेश भट्ट हैं, मैं उन्हें मॉडरेटर मानता हूं। उन्हें मुझे दिशा दी कि मुझे भी इसपर काम करना चाहिए। मेरा उनसे उठना बैठना रहा। साल 2004-05 में उन्होंने एक अखबार के लिए हरिद्वार से स्टोरी की थी कि छात्रवृत्ति झोपड़ी वालों को नहीं पहुंची, महलों तक ही पहुंची। उस समय से मैं उनको पढ़ता था। वह हमारे लीडिंग जर्नलिस्ट्स में से एक माने जाते हैं। उन्होंने ही इसपर एक सीरीज की थी। उस दौरान मैं आईसीआईसीआई बैंक में काम किया करता था। तो जब मैंने इन चीजों को पढ़ा तो दिमाग में तो था ही कि हमारे में क्या-क्या चीजें गलत हो रही हैं। इसके बाद 2010 में जब मैं वकालत में आया तो अखबार में इस तरह की छिपपुट खबरें छप रहीं थीं। उसी दौरान एनएचआरएम घोटाला, सड़कों का घोटाला भी सामने आया तो मेरे दिमाग में यह भी था कि मुझे दबे-कुचले लोगों के लिए काम करना है। 

सवाल: प्राइवेट संस्थान किन लोगों के थे, इसका कुछ पता चला?

जवाब: यह बहुत दुर्भाग्य का विषय है कि उत्तराखंड में सरकारी संस्थान तकरीबन खत्म हो चुके हैं, उसकी वजह यह है कि सरकारों ने ही उन्हें कमजोर किया है। निजी क्षेत्र के संस्थान हैं, या तो वह बड़े-बड़े पूंजीपतियों के हैं, जिनके कुछ रिश्तेदार राजनीतिक पार्टियों से जुड़े हुए हैं, या कुछ नेताओं के संस्थान हैं जिनके भाई-भतीजे इन्हें चला रहे हैं। इसमें कांग्रेस-भाजपा दोनों के लोग शामिल हैं। दरअसल इनमें जो बच्चे पढ़ रहे थे उनका वेरीफिकेशन भी होना था। तो वेरीफिकेशन में भी सारी टीम मिली हुई थी। वह वेरीफिकेशन को समाज कल्याण विभाग ही करता था। तो जहां से कमीशन मिला तो उस संस्था को वेरीफिकेशन दे दिया जाता था।

सवाल: आप कह रहे थे छोटी मछलियों तक हाथ गया है, बड़ी मछलियां बाकी हैं..

जवाब : आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं, इसमें कुछ नेताओं की गिरफ्तारियां हुईं हैं। जैसे हमारे कैंट से विधायक हैं हरिवंश कपूर, उनके बेटे का इंस्टीट्यूट है, तो वो भी अरेस्ट स्टे लेने पहुंचे तो उनको कंडीशनल अरेस्ट का स्टे दिया गया कि आपका पास जितना पैसा डिस्मिस हुआ है उसे जमा कराइए, तो जमा कराकर उन्होंने जान बचाई। ऐसे ही कांग्रेस के काजी निजामुद्दीन के भाई थे। उनका भी इंस्टीट्यूट था। यहां पर आप देखेंगे कि राज्य निर्माण के बाद से नेताओं की संपत्तियां तरह से बढ़ी हैं। जिन लोगों को हमने टूटे-फूटे स्कूटरों और तल्ले लगे हुए पैंट को पहने हुए देखा वो अरबपति बने हुए हैं। आज मंत्री भी वहीं विधायक भी वही हैं तो वह पैसा आ कहां से रहा है। बैंकों में भी कुछ पर कार्रवाई हुई है। अब वह जांच का हिस्सा है कि जांच अधिकारी उनको जांच में लेता है या नहीं लेता है। लेकिन लूप होल्स जांच में बहुत रहे हैं। अब हम इसपर दोबारा से काम कर रहे हैं कि जांच अधिकारियों क्या कमियां छोड़ी, किन लोगों को पकड़ना था या नहीं पकड़ना था।

सवाल : अब आप किन कार्रवाईयों की मांग कर रहे हैं जिससे उन गरीब बच्चों को न्याय मिल सके जिनकी हकमारी हुई है?

जवाब: जितने इंस्टीट्यूट को चिह्नित करने का काम था वो एसआईटी कर रही है। मैं हरिद्वार और देहरादून की एसआईटी जांच से मुतमईन हूं लेकिन उधम सिंह नगर की एसआईटी है वह एक मैकेनिज्म वे में काम कर रही है कि इसका नाम है, इसको उठाकर धर दो, चाहे सबूत न हो। तो उधम सिंह नगर की एसआईटी प्रॉपर डॉक्यूमेंटेशन नहीं कर रही है। देहरादून और हरिद्वार की एसआईटी ने जहां तक छोटे अधिकारियों को पकड़ना था तो वहां तक पकड़ा। लेकिन जहां आईएएस और राजनेताओं का नाम आया तो वहां उसके कदम ठिठक गए हैं।

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