सिंघु बॉर्डर पर एक और किसान हुआ शहीद, नेता बोले- सरकार नहीं निभा रही अपनी जिम्मेदारी
केंद्र की किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ जान देने वाले किसानों की संख्या करीब 700 हो गई। 16 नवंबर को एक और किसान के निधन पर किसान नेताओं ने गहरी संवेदना जताई है। साथ ही सरकार को संवेदनहीन करार दिया है।
नई दिल्ली। लगभग एक साल से कृषि कानूनों के खिलाफ देश के अलग—अलग हिस्सों में किसान आंदोलन जारी हैं। इस बीच सिंघु बॉर्डर पर धरनारत हरियाणा के एक और किसान के शहीद होने की सूचना सामने आई है। इसके साथ ही केंद्र की किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ जान देने वाले किसानों की संख्या करीब 700 हो गई। एक और किसान के निधन पर किसान नेताओं ने गहरी संवेदना जताई है। साथ ही सरकार को संवेदनहीन सरकार करार दिया है।
ताजा जानकारी के मुताबिक बीती रात तड़के तीन बजे सिंघु बॉर्डर से खबर आई की हरियाणा के भागल गांव के रहने वाले मेवाराम पुनिया अब इस दुनिया में नहीं रहे। उनकी मौत कैसे हुई इसकी सूचना अभी खुलकर नहीं आई है। बताया जा रहा है कि वह शुरू से ही किसान आंदोलन से जुड़े थे और पिछले कुछ दिनों से उनकी तबीयत टीक नहीं थी। बता दें कि 26 दिसंबर, 2021 को दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन के एक साल पूरे हो जाएंगे।
700 किसान अभी तक हो चुके हैं शहीद
संयुक्त किसान मोर्चा के मुताबिक अब तक 700 से ज्यादा किसान आंदोलन के दरम्यान शहीद हो चुके हैं। किसान आंदोलन में किसानों के मौत के कई कारण है। कुछ किसानों की स्वाभाविक मौत हुई तो कई किसानों ने खुदकुशी कर ली। पिछले साल दिसंबर में पंजाब के 48 और हरियाणा के करीब 10 किसानों की मौत हुई थी। जनवरी में 2021 में सबसे ज्यादा किसानों की मौतें हुई थी। ज्यादातर मौत शीत लहर के कारण हुई थी। ठंड में अकेले पंजाब के 108 किसानों सहित 120 किसानों की मौत हुई थी।
जनवरी से 26 मई तक 280 मौतें
अगर जनवरी 2021 से 26 मई तक 372 किसानों की मौत हुई है। जबकि पिछले साल जनवरी से मई तक राज्य में कृषि संकट के कारण आत्महत्या करने वाले केवल 70 किसानों की मौत हुई थी। एसकेएम की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल की तुलना में इस साल के पहले पांच माह में आत्महत्या की वजह से मृत्यु दर पांच गुना अधिक है। राज्य में किसानों की आत्महत्या का पूरा रिकॉर्ड रखने वाले बीकेयू (उगराहन) की लहर गागा इकाई के प्रखंड अध्यक्ष धर्मिंदर सिंह पशौर ने कहा कि पिछले साल जनवरी से मई तक करीब 70 किसानों ने अपनी जान ली थी, लेकिन इस साल इसी अवधि में किसानों की मृत्यु पांच गुना से अधिक है।
भारतीय किसान संघ (डकौंडा) के महासचिव ने जगमोहन सिंह ने बताया कि अब एक अस्थायी अस्पताल भी स्थापित नहीं किया गया। किसान सरकार पर निर्भर नहीं रह सकते। केंद्र सरकार किसानों के प्रति पूरी तरह से उदासीन है। मोदी सरकार ने किसानों को सड़कों पर मरने के लिए छोड़ दिया है। सरकार अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है।