Special Status : नीति नहीं, राजनीति का शिकार है 'बिहार'

बिहार को स्पेशल स्टेटस मिलने का सवाल केवल "राष्ट्रीय नीति" और "आर्थिक विकास के नीति" भर नहीं है। यह सवाल राजनीति का भी है।

Update: 2022-03-22 08:37 GMT

नीति आयोग के मानदंडों के लिहाज से बिहार को स्पेशल स्टेशल जरूरी।

बिहार के लिए स्पेशल स्टेटस जरूरी क्यों, पर विद्यार्थी विकास की रिपोर्ट:

पटना। समावेशी विकास भारतीय संविधान एवं पंचवर्षीय योजनाओं का मूल घ्येय रहा है, लेकिन आजादी के 74 साल ​बाद भी आर्थिक समृद्धि एवं विकास का लाभ समान रूप से सभी राज्यों, जिलों, प्रखंडों, पंचायतों एवं सभी सामाजिक वर्गों तक समान रूप से नहीं पहुंच पाया है। हालिया विश्व असमानता रिपोर्ट से साफ है कि वैश्विक स्तर पर विभिन्न राष्ट्रों और भारत में 2021 में असमानता का स्तर एक बार फिर 1820 के स्तर पर पहुंच गया है। भारत में केवल 10 प्रतिशत आबादी के पास 65 संपत्ति है। निम्न 50 प्रतिशत लोगों के पास मात्र 6 प्रतिशत संपत्ति है। भारत में केवल व्यक्ति के स्तर पर ही नहीं बल्कि अंतरराज्यीय विषमता में काफी बढ़ोतरी हुई है।

अभी तक इन राज्यों को मिला Special Status 

असमानता को दूर करने के लिए 1969 में पांचवें वित्त आयोग के समय राज्यों के विशेष दर्जे की संकल्पना आई थी। तब से अब तक 11 राज्यों जम्मू और कश्मीर 1969, असम 1969, नागालैंड 1969, अरुणाचल प्रदेश 1987, हिमाचल प्रदेश 1971, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा और उत्तराखंड को विकास की गति को बढ़ाने के लिए स्पेशल स्टेटस ( Special Status ) वाले राज्य का दर्जा हासिल हुआ।

स्पेशल स्टेटस का मकसद

स्पेशल स्टेटस का मकसद का दर्जा देने के पीछे मुख्य मकसद इन राज्यों के विकास की गति को तेज करना था। यह माना गया कि चिन्हित राज्यों को "विकास" की दौड़ में खुद के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। इन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए विशेष अनुदार की जरूरत है। इस बात को ध्यान में रखते हुए इन राज्यों को राष्ट्रीय विकास परिषद एवं योजना आयोग की सिफारिश पर विशेष राज्य का दर्जा दिया गया।

अब सवाल उठता है कि क्या इन राज्यों को अभी भी विशेष राज्य का दर्जा ( Special Status ) बहाल रखने की जरूरत? उत्तर शायद "नहीं" होगा। ऐसा इसलिए कि ये सभी राज्य बिहार राज्य की अपेक्षा अधिक विकसित हो चुके हैं। हालिया नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक स्पष्ट होता है बहुआयामी गरीबी सूचकांक - MPI Index में बिहार 36वें पायदान पर है। यानि सबसे नीचे है और सबसे कम विकसित राज्य है।

क्या एनडीसी, पीसी और एनसी मकसद से भटक गया?

अब एक प्रश्न और उठता है कि क्या "नीति आयोग" का "कद" योजना आयोग की तरह नहीं है, जो समावेशी विकास हेतु "बिहार राज्य" ( Bihar ) के विशेष दर्जे की वकालत कर सकता है। बिहार के प्रति इन राष्ट्रीय एजेंसियों के उदासीन रवैये को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि राष्ट्रीय विकास परिषद्, योजना आयोग या नीति आयोग अपने उद्देश्यों एवं कर्तव्यों से भटक गया है।

बिहार के लिए स्पेशल स्टेटस जरूरी क्यों?

यह एक अहम सवाल है। सवाल इसलिए कि गरीबी और प्रति व्यक्ति आय सहित अन्य मामलों में भी बिहार नीचे के पायदान पर है। इसके बावजूद बिहार ( Bihar ) को स्पेशल स्टेटस ( Special Status ) के योग्य क्यों नहीं माना गया। कम से कम नीति आयोग की रिपोर्ट और राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक 2021 से स्पष्ट होता है कि भारत में अंतर्राज्यीय विषमता में बढ़ोतरी हुई है। नीति आयोग द्वारा जारी राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक 2021 से स्पष्ट होता है कि बिहार राज्य, बहुआयामी गरीबी सूचकांक में निचले पायदान पर है। भारत में बिहार ही एक मात्र एकमात्र ऐसा राज्य है जहां की आधी आबादी ( 51.91% ) गरीब है। यानि 52 फीसदी आबादी को जीने के लिए मूलभूत संसाधन मयस्सर नहीं हैं। नीति आयोगी की रिपोट्र 2021 के मुताबिक बिहार राज्य की आधी आबादी 51.88% कुपोषित है।

एक ओर जहां बिहार में 51.91 प्रतिशत लोग गरीब हैं, वहीं अरुणाचल प्रदेश में 24.27 प्रतिशत, असम में 32.67 प्रतिशत, हिमाचल प्रदेश में 7.62 प्रतिशत, जम्मू और कश्मीर में 12.58 प्रतिशत, मणिपुर में 17.89 प्रतिशत, मेघालय में 32.67 प्रतिशत, मिजोरम में 9.80 प्रतिशत, नागालैंड में 25.23 प्रतिशत, सिक्किम में 3.82 प्रतिशत, त्रिपुरा में 16.65 प्रतिशत, उत्तराखंड में 17.72 प्रतिशत, भारत में 25.01 प्रतिशत गरीबी है। जब विशेष दर्जा प्राप्त से बिहर में गरीबी का स्तर बहुत ज्यादा खराब तो उसे विशेष अनुदान से अभी तक दूर क्यों रखा गया है?

भारत सरकार आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2021-22 की बात करें तो चालू कीमतों पर 2019-20 में बिहार की प्रति व्यक्ति आय सभी राज्यों की अपेक्षा सबसे कम मात्र 45,071 रुपया थी। विशेष राज्यों यथा अरुणाचल प्रदेश में प्रति व्यक्ति आय 169742 रुपए, असम में प्रति व्यक्ति आय 86801 रुपए, हिमाचल प्रदेश में प्रति व्यक्ति आय 190407 रुपए, जम्मू और कश्मीर में प्रति व्यक्ति आय 105000, मणिपुर में प्रति व्यक्ति आय 84746, मेघालय में प्रति व्यक्ति आय 87170 रुपए, मिजोरम में प्रति व्यक्ति आय 187327, नागालैंड में प्रति व्यक्ति आय 120518, सिक्किम में प्रति व्यक्ति आय 403376 रुपए, त्रिपुरा में प्रति व्यक्ति आय 125675 रुपए, उत्तराखंड में प्रति व्यक्ति आय 202895 रुपए, भारत में प्रति व्यक्ति आय 145687 रुपए है।

अगर स्पेशल स्टेटस का दर्जा मिल जाए तो क्या होगा?

विशेष राज्य के दर्जा मिलने पर बिहार राज्य का अनुदान बढ़कर 90 प्रतिशत हो जाएगा। इसके अलावा केंद्र सरकार को "लुक ईस्ट पॉलिसी" की समीक्षा करनी चाहिए। आखिर बिहार कब तक उपेक्षित रहेगा? क्या कुछ समय के लिए इन राज्यों का "विशेष राज्य" का दर्जा रोककर बिहार एवं अन्य ऐसे राज्यों को नहीं देनी चाहिए जो "योजना एवं नीति आयोग" के काल में पिछड़ गए हैं? क्या बिहार के 40 सांसदों का यह कर्तव्य नहीं बनता है कि केंद्र सरकार से मिल बैठकर रास्ता निकालना चाहिए | क्योंकि यह सवाल केवल "राष्ट्रीय नीति" एवं "आर्थिक विकास के नीति" का नहीं रह गया है। यह भी प्रतीत होता है कि यह सवाल केवल "नीति" का नहीं बल्कि राजनीति का है?

हाल ही में यानि 17 दिसंबर 2021 को पाटलीपुत्र स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में आयोजित एक सेमिनार "नीति आयोग" के सदस्य "प्रोफ़ेसर रमेश चंद" ने कहा कि "बिहार के विशेष" राज्य के दर्जे हेतु "राजनीतिक स्तर" पर प्रयास करना अधिक प्रासांगिक होगा |

मानकों पर नये सिरे से विमर्श जरूरी

यहां पर यह कहना प्रासंगिक होगा कि वित्त आयोग द्वारा संसाधनों का वितरण किन-किन मानकों और विषयों को आधार बनाकर किया जाता है उन सभी मानकों पर समग्रता से विमर्श की जरुरत है, क्योंकि क्षेत्रीय विषमता भारत में लगातार बढ़ती ही जा रही है। वित्त आयोग का एक प्रमुख उद्देश्य क्षेत्रीय विषमता को दूर करना है। फाइनेंसियल एवम कॉपरेटिव फेडेरलीज्म को बढ़ावा देना है। पिछले 15-20 वर्षों से बिहार की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय आय की एक तिहाई रही है। केवल विशेष राज्य का दर्जा ही देना यहां पर्याप्त नहीं होगा बल्कि वित्त आयोग को अन्य मानक तलाशने होंगे। ताकि उचित फंड बिहार को मिल सके। एक योजनाबद्ध तरीके से काम करना होगा कि आखिर बिहार की आर्थिक वृद्धि दर कितनी हो कि अगले 15-20 वर्षों में बिहार की प्रति व्यक्ति की औसत आय राष्ट्रीय औसत आय के बराबर हो सके।

सांसद एकजुट होकर उठाएं आवाज

फिलहाल, प्रसिद्ध कहावत कि अगर "माला" की कोई श्रृंखला कमजोर है तो वह कभी भी टूट सकता है। इस लिहाज से "बिहार" को विशेष राज्य का दर्जा ​मिलना जरूरी है। इसके लिए केंद्र सरकार, नीति आयोग, राष्ट्रीय विकास परिषद् एवं वित्त आयोग को गहन समीक्षा एवं मनन करनी चाहिए। बिहार राज्य के सम्मानित 40 सांसदों को एक स्वर में केंद्र सरकार पर दबाब बनानी चाहिए।

( लेखक : अनुग्रह नारायण सिंह समाज अध्ययन संस्थान पटना में अर्थशास्त्र के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। )

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