Supreme Court : भारतीय संविधान की प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद शब्द हटाने की मांग, सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर

Supreme Court : भारत के संविधान की प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्षता और समाजवादी शब्द को हटाने की मांग भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, सुब्रमण्यम स्वामी ने केशवानंद भारती केस 1973 का हवाला देते हुए कहा प्रस्तावना संविधान का अंग है इसने बदलाव नहीं किया जा सकता है....

Update: 2022-09-02 09:48 GMT

Supreme Court : भारतीय संविधान की प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद शब्द हटाने की मांग, सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर

Supreme Court : भारत के संविधान की प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्षता और समाजवादी शब्द को हटाने की मांग भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। उन्होंने अपनी याचिका में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के शासन काल का जिक्र करते हुए कहा की वर्ष 1976 में 42वें संविधान संशोधन के समय संविधान के प्रस्तावना में 2 नए शब्द जोड़े गए थे "धर्मनिरपेक्षता और समाजवादी"। स्वामी ने केशवानंद भारती केस 1973 का हवाला देते हुए कहा प्रस्तावना संविधान का अंग है इसने बदलाव नहीं किया जा सकता है।

23 सितंबर को होगी सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट संविधान की प्रस्तावना "धर्मनिरपेक्षता और समाजवादी "याचिका पर 23 सितंबर को सुनवाई करेगा।जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने डॉ स्वामी की याचिका को इसी तरह की याचिका के साथ पोस्ट किया जो 23 सितंबर को भारत के मुख्य न्यायाधीश की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध हैं।

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2020 में की गई थी पहली याचिका दायर

शीर्ष अदालत मामले में कोर्ट नई याचिका के साथ ही, पहले से दायर दूसरी याचिकाओं पर भी सुनवाई करेगा। भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में यह नई याचिका दाखिल की गई है।इससे पहले भी 2020 में याचिका दायर की गई थी।इस मामले में दूसरे याचिकाकर्ता एडवोकेट सत्य सभरवाल हैं।इससे पहले भी स्वामी सुब्रमण्यम की ओर से 2020 में शंकर जैन के द्वारा याचिका दायर की गई थी।

सुब्रमण्यम स्वामी के पहले वकील विष्णु शंकर जैन ने जुलाई, 2020 में संविधान की प्रस्तावना में 42वें संशोधन के जरिए जोड़े गए "धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी" शब्दों को हटाने की मांग की थी। उन्होंने अपनी याचिका में कहा था कि 'धर्मनिरपेक्षता और समाजवादी" शब्द राजनीतिक को दर्शाता हैं।इन्हें नागरिकों पर जबरदस्ती थोपा जा रहा है।उन्होंने यह तर्क देते हुए कहा कि इस तरह शब्दों को जोड़ना अनुच्छेद 368 के तहत संसद की संशोधन शक्ति से परे है। याचिकाकर्ता जैन ने दलील दी थी कि 1976 में किया गया संशोधन संवैधानिक सिद्धान्तों के साथ-साथ भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विषय-वस्तु के विपरीत था। यह संविधान के अनुच्छेद 19(1)-A में दिए गए व्यक्ति की स्वतंत्रता की अवधारणा और अनुच्छेद- 25 के तहत धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार के उल्लंघन के नजरिए से अवैध था।

23 सितंबर को होगी सुनवाई

जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने डॉ स्वामी की याचिका को इसी तरह की याचिका के साथ पोस्ट किया जो 23 सितंबर को भारत के मुख्य न्यायाधीश की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि संविधान का इरादा कभी भी लोकतांत्रिक शासन में समाजवादी या धर्मनिरपेक्ष अवधारणाओं को पेश करने का नहीं था।

बाबा साहब ने शब्दो को जोड़ने से किया था इनकार

कहा जाता है कि डॉ अम्बेडकर ने संविधान में इन शब्दों को शामिल करने से इनकार कर दिया था क्योंकि संविधान नागरिकों के चयन के अधिकार को छीनकर कुछ राजनीतिक विचारधाराओं पर जोर नहीं दे सकता है।

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