बंगाल चुनाव के बाद हुई राजनीतिक हिंसा पर ममता और मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस, 7 जून तक माँगा जवाब
याचिका में कहा गया है कि टीएमसी की जीत के बाद बंगाल से करीब 1 लाख लोगों को पलायन करना पड़ा है, उनकी संपत्ति को नुकसान पहुँचाया गया है तथा महिलाओं के साथ यौन हिंसा की घटनाएं भी हुई हैं....
जनज्वार ब्यूरो। पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हुई हिंसा की एसआईटी जांच और लोगों को सुरक्षा देने के लिए दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य की ममता सरकार और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, महिला आयोग और अनुसूचित जाति/ जनजाति आयोग को पक्षकार बनाने की अनुमति दी है।
आपको बता दें कि पश्चिम बंगाल में 2 मई को चुनाव नतीजे आने के बाद से ही राज्य में जमकर हिंसा हुई थी। इसमें विपक्षी दलों के कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट, सम्पति को नुकसान पहुँचाने और महिलाओं के साथ यौन हिंसा की घटना सामने आयीं थीं। इसे राज्य प्रायोजित हिंसा कहा जा रहा है। ऐसे भय युक्त माहौल में लोगों ने राज्य से पलायन शुरू कर दिया। बड़ी संख्या में बंगाल के लोग असम जाने को बाध्य हुये। राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने असम के शिविरों में रह रहे लोगों से जाकर मुलाकात भी की थी।
हिंसा के शिकार कुछ लोगों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। याचिका में कहा गया है कि टीएमसी की जीत के बाद बंगाल से करीब 1 लाख लोगों को पलायन करना पड़ा है। उनकी संपत्ति को नुकसान पहुँचाया गया है तथा महिलाओं के साथ यौन हिंसा की घटनाएं भी हुई हैं। याचिका में इस मामले की एसआईटी से जांच कराने की मांग की गई है। पलायन का शिकार हुए लोगों के पुनर्वास की मांग की गई है। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने पश्चिम बंगाल की सरकार को नोटिस भेजा है। सुप्रीम कोर्ट ने 7 जून तक राज्य सरकार से जवाब मांगा है। अब इस मामले में जून के दूसरे सप्ताह में सुनवाई होगी।
जांच की लगातार हो रही थी मांग
पश्चिम बंगाल में तमाम सेवानिवृत्त अधिकारियों और महिला वकीलों ने बीते दिनों जांच की मांग करते हुए पत्र लिखे थे। सोमवार को सेवानिवृत्त न्यायाधीशों, सिविल और पुलिस सेवाओं के वरिष्ठ अधिकारियों, राजदूत और सशस्त्र बलों के वरिष्ठ अधिकारियों के एक मंच ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पश्चिम बंगाल में हालिया राजनीतिक हिंसा को लेकर एक पत्र लिखा था।
इस राजनीतिक हिंसा के मुद्दे को देश भर से 2093 महिला वकीलों ने भी उठाया था। सोमवार को उन्होंने भारत के प्रधान न्यायाधीश एनवी रामना को पत्र लिखकर चुनाव के बाद हुई हिंसा की जांच के लिए विशेष जांच दल के गठन की मांग की थी।