Supreme Court : रेप पीड़िता से सहानुभूति रखने की जगह हमारा समाज उसमें ही खोजने लगता है गलतियां - जस्टिस इंदिरा बनर्जी
Supreme Court : जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने अपने फैसले में कहा कि हमारे समाज में यौन अपराध के शिकार लोगों को तो अक्सर उकसाने वाला माना जाता है, भले ही पीड़ित पूरी तरह से निर्दोष हो...
Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को उस मुद्दे पर विभाजित (खंडित) फैसला सुनाया कि क्या बाल यौन शोषण पीड़ित की पहचान उजागर करने वाले प्रकाशक पर मजिस्ट्रेट के आदेश बिना मुकदमा चलाया जा सकता है क्योंकि यह एक गैर संज्ञेय अपराध है| कर्नाटक हाई कोर्ट के 17 सितंबर 2021 के आदेश के खिलाफ 'करवाली मुंजावु' अखबार के संपादक गंगाधर नारायण नायक द्वारा दायर एक अपील में जस्टिस इंदिरा बनर्जी (Justice Indira Banerjee) और जस्टिस जेके माहेश्वरी की पीठ ने एक दूसरे से असहमति जताई| हाई कोर्ट ने संपादक की उस याचिका को ख़ारिज कर दिया था जिसमें आरोपमुक्त करने की मांग की गई थी|
मुख्य न्यायधीश के समक्ष भेजा गया मामला
बता दें कि खंडित फैसला आने के कारण सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्ययी पीठ ने इस मुद्दे को तय करने के लिए एक बड़ी पीठ गठित करने के मामले को भारत के मुख्य न्यायधीश के समक्ष भेज दिया| याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील देवदत्त कामत और वकील निशांत पाटिल ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम की धारा - 23 का विरोध किया जो पीड़ित के नाम को प्रकाशित करने पर रोक लगता है| उनका कहना था कि यह एक गैर संज्ञेय अपराध है और इसकी जांच दंड प्रक्रिया संहिता की धारा - 155 के तहत मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना नहीं की जा सकती|
जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने की टिप्पणी
बता दें कि अपने फैसले में जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने यह कहते हुए याचिका को खारिज का दिया कि वह इस तर्क को स्वीकार करने में असमर्थ हैं कि कार्यवाही को खराब किया गया या अपीलकर्ता को ट्रायल से पहले सिर्फ इसलिए आरोपमुक्त किया जा सकता है क्योंकि अपराध की जांच के लिए मजिस्ट्रेट से पूर्व अनुमति नहीं ली गई थी| बता दें कि जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने अपने फैसले में कहा कि हमारे समाज में यौन अपराध के शिकार लोगों को तो अक्सर उकसाने वाला माना जाता है, भले ही पीड़ित पूरी तरह से निर्दोष हो| पीड़ित के साथ सहानुभूति रखने के बजाय लोग पीड़ित में गलती निकालने लगते हैं| पीड़िता का उपहास उड़ाया जाता है| बदनाम किया जाता है| गप्पेबाजी की जाती है और यहां तक कि बहिष्कृत भी किया जाता है|
बच्चे को है निजता का अधिकार
बता दें कि जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने अपने फैसले में यह भी कहा कि प्रत्येक बच्चे के साथ जीने, बड़े होने और मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य के अनुकूल माहौल विकसित होने का अधिकार है| उसके साथ समानता का व्यव्हार किया जाना चाहिए और उसके साथ भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए| साथ ही उन्होंने कहा कि एक बच्चे के अनिवार्य अधिकारों में निजता की सुरक्षा का अधिकार शामिल है|'