यूपी के उच्च शिक्षा केंद्रों का हाल, भर्ती में मनमानी व आरक्षण में खेल
बजट के अभाव में भर्ती प्रभावित हो रही है तो दूसरी तरफ जहां भर्ती प्रक्रिया चल रही है वहां आवेदक सिस्टम पर सवाल खड़ा कर रहे हैं। हाल ही में सिद्धार्थ विश्वविद्यालय सिद्धार्थ नगर में ईडब्ल्यूएस के कोटे में बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश चंद्र द्विवेदी के भाई द्वारा नियुक्ति पाने पर खूब हंगामा मचा था....
जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट
जनज्वार। उत्तर प्रदेश के उच्च शिक्षा केंद्रों के शैक्षणिक व्यवस्था में सुधार का योगी सरकार का दावा धरातल पर निराशाजनक तस्वीर पेश कर रही है। असिस्टेंट प्रोफेसर समेत अन्य पदों पर भर्ती में चल रहे मनमानी के खेल ने इसके सुचिता व पारदर्शिता के दावे को झूठलाने का काम किया है। हाल यह है कि बजट के अभाव में कहीं नियुक्तियां आड़े आ रही हैं ,तो कहीं भर्ती प्रक्रिया में आरक्षण समेत अन्य मानकों की अनदेखी के चलते योग्यता धारी अभ्यर्थी निराश हो रहे हैं।
केंद्रीय मंत्रिमंडल हो या योगी सरकार का मंत्रीमंडल, दोनों जगह इसके विस्तार पर चर्चा चल रही है। इसके पीछे एक मात्र मकसद निराश लोगों को मनाना व समाजिक समीकरण अपने पक्ष में साधना है। इसको लेकर देश की जनता पर बढ़ने वाले आर्थिक बोझ सरकार के लिए कहीं से चिंता का विषय नहीं है । दूसरी तरफ शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे बुनियादी मुद्दों को हल करने में आ रही समस्या को बजट के अभाव में रोका जा रहा है।
पहले हम चर्चा करते हैं पिछले माह शासन के जारी एक फरमान पर। जिसके तहत एडेड डिग्री कॉलेजों में असिस्टेंट प्रोफेसरों की भर्ती में नया नियम लागू किया गया है। हर कॉलेज में शिक्षक और छात्र का अनुपात तय किया जाएगा। जहां छात्रों की संख्या कम होगी उन कॉलेजों में शिक्षकों का पद खत्म करने की तैयारी है। इसके पीछे बजट के अभाव को प्रमुख कारण माना जा रहा है। संक्रमण काल बीतने के बाद सर्वे का काम शुरु करने का निर्णय लिया गया था।
सर्वे कार्य सभी जनपदों में जिलाधिकारी के जरिए कराया जाना है।जिला के जिलाधिकारी को उनके क्षेत्र में स्थित डिग्री कॉलेजों के शिक्षकों व छात्र का ब्योरा एकत्र करने का निर्देश दिया गया है। नए नियम के तहत एक शिक्षक में 80 छात्रों की संख्या तय की गई है, जबकि यूजीसी का मानक एक शिक्षक पर 40 छात्र संख्या है। अभ्यर्थियों का कहना है कि एक शिक्षक पर 80 छात्र संख्या के मानक का पालन भी ईमानदारी से नहीं किया जा रहा है। जिन कॉलेजों में छात्र संख्या अधिक है उससे संबंधित विषय के शिक्षकों के पद बढ़ाने का प्रावधान नहीं है, जबकि जहां छात्र कम हैं वहां शिक्षकों का पद खत्म कर दिया जाएगा। उनकी रिपोर्ट के आधार पर नया विज्ञापन निकाला जाएगा। शासन के नए नियम से अभ्यर्थियों में बेचैनी बढ़ गई है। उन्हें सैकड़ों पद खत्म होने का भय सता रहा है।
एडेड डिग्री कॉलेजों में असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती के लिए अधियाचन उच्च शिक्षा निदेशालय तैयार करता है, जबकि खाली पदों को भरने के लिए उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग (यूपीएचईएससी) की ओर से विज्ञापन जारी किया जाता है। उच्च शिक्षा निदेशालय प्रदेशभर के डिग्री कॉलेजों में शिक्षक व छात्र का अनुपात नए सिरे से तय करवा रहा है। यह कार्य मार्च महीने में पूरा होना था। लेकिन, कोरोना संक्रमण बढ़ने के कारण सारी प्रक्रिया रोक दी गई है। स्थिति सामान्य होने पर सर्वे की प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाएगी।
बजट के अभाव में भर्ती प्रभावित हो रही है तो दूसरी तरफ जहां भर्ती प्रक्रिया चल रही है वहां आवेदक सिस्टम पर सवाल खड़ा कर रहे हैं। हाल ही में सिद्धार्थ विश्वविद्यालय सिद्धार्थ नगर में ईडब्ल्यूएस के कोटे में बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश चंद्र द्विवेदी के भाई द्वारा नियुक्ति पाने पर खूब हंगामा मचा। इस सवाल पर यूपी सरकार जहां विपक्ष के निशाने पर रही वही प्रकरण राजभवन के दरबार तक पहुंच गया। लिहाजा दबाव में आकर बेसिक शिक्षा मंत्री के भाई ने इस्तीफा दे दिया। इस पर लोगों ने कुलपति सुरेंद्र दुबे की भूमिका पर भी सवाल खड़ा किया। हालाकि विपक्ष अभी भी बयान दे रहा है कि मात्र इस्तीफा दे देने से किसी का दोष खत्म नहीं हो जाता है।
उधर उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने प्रोफेसर सुरेंद्र दुबे (वर्तमान कुलपति सिद्धार्थ विश्वविद्यालय, सिद्धार्थनगर) के बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झांसी के कुलपति रहने के दौरान की गई अनियमित नियुक्तियों के खिलाफ महामहिम राज्यपाल से जांच कर दोषी अधिकारियों एवं कर्मचारियों के खिलाफ विधिसम्मत कार्यवाई की मांग की थी।
उत्तर प्रदेश के बांदा स्थित कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय प्रफेसर पद पर 15 में से 11 नियुक्तियां एक ही जाति से जुड़े अभ्यर्थियों के करने को लेकर विवाद में आ गया है। अब यूनिवर्सिटी पर जातिगत भेदभाव कर विशेष जाति के लोगों को फायदा पहुंचाने के आरोप लग रहे हैं। कहा जा रहा है कि स्थानीय बीजेपी विधायक बृजेश प्रजापति पहले ही एक जांच शासन के माध्यम से करवा रहे हैं लेकिन बावजूद इसके यह नियुक्तियां हो गईं।
उधर विश्वविद्यालय प्रशासन जातिगत भेदभाव के आरोप से इंकार करते हुए पूरे मामले को 'फेयर प्रॉसेस' बता रहा है। दरअसल, बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्विद्यालय ने 20 भर्तियां निकाली थीं। इनमें 18 सामान्य वर्ग और 2 EWS कोटे की थीं। इसका पहले विज्ञापन निकाला गया और जून के पहले हफ्ते में रिजल्ट घोषित किया गया। इसके बाद इनमें 15 नियुक्तियां हुईं, जिनमें से 11 एक ही जाति के हैं।
डॉ राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय,अयोध्या के भौतिकी एवं इलेक्ट्रॉनिक विभाग में प्रोफेसर पद की अर्हता न रखने वाले एक स्ववितपोषित शिक्षक को डायरेक्ट प्रोफेसर बनाने के मामले में भी कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित सवालों के घेरे में हैं।
वित्तविहीन/स्व वित्तपोषित महाविद्यालय शिक्षक एसोसिएशन के उपाध्यक्ष डॉ. विवेकानंद उपाध्याय का कहना है कि वर्ष 2019 में दीन दयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय, गोरखपुर में नियुक्ति में फर्जीवाड़ा का आरोप लगा था। इसको लेकर विश्वविद्यालय कार्यसमिति के सदस्य व डा. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय अयोध्या के पूर्व कुलपति डॉ राम अचल सिंह ने शिकायत की थी। वे कहते हैं कि कुलपति, गोरखपुर सदर विधायक, शिक्षा मंत्री,राज्यपाल तक से शिकायत की थी। इसके बाद भी कोई जांच नहीं हुई। डॉ सिंह कहते हैं कि शिकायत को लेकर जांच का मात्र आश्वासन मिलता रहा। न जाने किस कारण से तमाम आरोप लगाने के बाद भी कोई अभ्यर्थी न्यायालय के शरण में नहीं गया। जिसके चलते फर्जी नियुक्ति की शिकायतों का प्रकरण फाइलों में दब कर रह गया। इसमें आरक्षण नियमावली का भी पालन न होने के आरोप लगे थे।
मई माह में दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में कुछ पदों पर भर्ती के लिए जारी नोटिफिकेशन पर सवाल खड़ा करते हुए शिक्षक संगठनों ने अनियमितता की आशंका जताई थी। सवाल उठ्या गया कि जब विश्वविद्यालय एक्ट और परिनियमावली में प्रावधान के अनुसार सभी नोटिफिकेशन कुलसचिव द्वारा जारी होते रहें है तो नियुक्ति सम्बन्धी नोटिफिकेशन/विज्ञापन सहायक कुलसचिव से क्यों जारी कराया गया।
एक वर्ष पूर्व लखनऊ विश्वविद्यालय में भी असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती में महिला आरक्षण को लेकर गड़बड़ी की शिकायत सामने आई थी। जिसमें दायर की गई याचिका पर हाईकोर्ट ने उच्च शिक्षा आयोग से जवाब मांगा था। याचिका में महिला अभ्यर्थियों के लिए क्षैतिज आरक्षण लागू करते हुए, वर्तमान चयन सूची के पुनरीक्षण की मांग की गई थी।
यह आदेश न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की एकल सदस्यीय पीठ ने शिवांगी सिंह की सेवा सम्बंधी याचिका पर दिया था। याची की ओर से अधिवक्ता अनुज कुदेसिया ने वर्ष 1999 के एक शासनादेश व इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक निर्णय का अनुपालन किये जाने की मांग करते हुए, दलील दी कि वर्तमान भर्ती में महिलाओं के लिए 20 प्रतिशत आरक्षण को क्षैतिज तरीके से न लागू करके वर्टिकल तरीके से लागू किया गया है। जिसकी वजह से आरक्षित वर्ग की महिला अभ्यर्थियों को मेरिट के आधार पर सामान्य वर्ग की महिला अभ्यर्थियों की सीटों पर चयनित कर लिया गया है।
अनुदानित महाविद्यालय विश्वविद्यालय स्ववित्तपोषित अनुमोदित शिक्षक संघ उत्तर प्रदेश के प्रदेश मंत्री डॉ जितेन्द्र कुमार त्रिपाठी के मुताबिक भर्ती का हाल यह है कि उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग में विज्ञापन संख्या-49 के तहत प्राचार्य पद के अभ्यर्थियों का साक्षात्कार व शैक्षिक दस्तावेजों का सत्यापन अभी तक रुका है। वहीं, विज्ञापन संख्या-50 के तहत असिस्टेंट प्रोफेसर पद की लिखित परीक्षा की तारीख तय नहीं हुई। उक्त भर्ती में 2500 के लगभग आवेदन अपूर्ण हुए हैं। अभ्यर्थियों ने कालेज, विषय, उम्र का ब्योरा ठीक से नहीं भरा है। उन्हें परीक्षा में शामिल करना है या नहीं, यह आयोग की बैठक में तय होगा। आयोग की बैठक की तारीख अभी निर्धारित नहीं है।
विज्ञापन संख्या-50 के तहत 49 विषय में असिस्टेंट प्रोफेसर के अभ्यर्थियों से 13 अप्रैल तक ऑनलाइन आवेदन लिए गए थे। इसमें एक लाख 13 हजार आवेदन हुए हैं। आयोग ने लिखित परीक्षा चार चरण में कराने का निर्णय लिया है। लेकिन, आयोग के सदस्यों, अधिकारियों व कर्मचारियों के कोरोना संक्रमित होने के कारण परीक्षा को लेकर उचित तैयारी नहीं हो सकी।
प्रदेश के डिग्री कॉलेजों के लिए असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती के लिए ऑनलाइन आवेदन लिए जा चुके हैं। करीब पांच साल बाद निकली भर्ती में अपेक्षा से अधिक आवेदन हुए हैं। 26 मार्च परीक्षा के लिए रजिस्ट्रेशन व ऑनलाइन शुल्क जमा करने की अंतिम तारीख थी। 27 मार्च ऑनलाइन फार्म सबमिट करने की अंतिम तारीख थी। एग्जाम की तारीख 26 मई प्रस्तावित थी। लेकिन, कोरोना संक्रमण के कारण परीक्षा स्थगित करने का निर्णय लिया गया है।
उच्च शिक्षा केन्द्रों पर मनमानी के क्रम में लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (लूटा) ने चार नए डीन बनाए जाने के प्रस्ताव पर अपनी आपत्ति जताते हुए नियमों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है। अध्यक्ष डा. विनीत वर्मा और महामंत्री डा. राजेंद्र कुमार वर्मा का कहना है कि विश्वविद्यालय एक्ट की जिस धारा 49-सी के तहत नए डीन के पद सृजन की बात की जा रही है, उसमें कहा गया है कि कुलपति अधिकारी की नियुक्ति कर सकते हैं पर डीन की नहीं। इन पदों से विश्वविद्यालय एक्ट में वर्णित विभागाध्यक्ष एवं संकायाध्यक्ष के अधिकार व दायित्व का अतिक्रमण होगा। साथ ही उनकी शक्तियां इन पदों के माध्यम से कुलपति के पास केंद्रित हो जाएंगी। अब इसके खिलाफ प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से शिकायत की जाएगी।
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने कहा है कि उत्तर प्रदेश में शिक्षक भर्ती में पिछड़ो का हक लुटा,पिछड़ो को हिस्सेदारी न देने वाली भाजपा किस मुह से पिछड़ो के बीच मे वोट मांगने आएंगी। इनको सिर्फ वोट के लिए पिछड़ा याद आते है।