समान नागरिक संहिता के नाम पर बनाया गया कानून उत्तराखंड की जनता के निजता के अधिकार का उल्लंघन, बढ़ेंगे नये पारिवारिक विवाद

यूसीसी को बनाते समय भाजपा सरकार ने देश व उत्तराखंड की विविधताओं को ध्यान में रखने की जगह अपने सांप्रदायिक एजेंडा को आगे बढ़ने का काम किया है...;

Update: 2025-01-29 09:00 GMT
Uniform Civil Code लागू करेंगे धामी, लेकिन क्या राज्य बना सकता है ऐसा कोई कानून, जानिए क्या है नियम

Uniform Civil Code लागू करेंगे धामी, लेकिन क्या राज्य बना सकता है ऐसा कोई कानून, जानिए क्या है नियम

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Ramnagar news : उत्तराखंड में लागू समान नागरिक कानून को जनता के निजता के अधिकार व देश की संवैधानिक मान्यता का उल्लंघन बताते हुए समाजवादी लोक मंच ने 27 जनवरी से लागू किए गए यूसीसी को रद्द करने की मांग की है।

मंच के संयोजक मुनीष कुमार ने कहा कि समान नागरिक संहिता के नाम पर बनाया गया ये कानून उत्तराखंड की जनता के निजता के अधिकार का उल्लंघन है। विवाह पंजीकरण का फॉर्म भरते समय व्यक्ति को अपने विवाह पूर्व के सहवासी संबंधों की जानकारी भी फार्म में दर्ज करनी होगी, जो कि नये पारिवारिक विवादों को जन्म देगा। शादी, तलाक व सहवासी संबंधों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य करके सरकार लोगों की निजी जानकारी एकत्र करके उनकी निजता का हनन कर रही है तथा जनता को कठिन कानूनी प्रक्रिया में उलझा रही है।

जानकारी नहीं देने अथवा जानकारी देने में कोई गलती होने पर 10 से ₹25 हजार जुर्माना तथा कैद की सजा का प्रावधान रखा गया है, जिसके कारण उत्तराखंड के नागरिकों अपराधियों की श्रेणी में धकेल दिया जाएगा। यूसीसी भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा देने वाला साबित होगा।

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समान नागरिक संहिता के नाम पर अन्य धर्मों की अच्छी परंपराओं को भी निषिद्ध कर दिया गया है। यूसीसी को बनाते समय भाजपा सरकार ने देश व उत्तराखंड की विविधताओं को ध्यान में रखने की जगह अपने सांप्रदायिक एजेंडा को आगे बढ़ने का काम किया है। मुस्लिम धर्म में कोई भी महिला खुला के तहत मौलवी के पास जाकर तलाक ले सकती थी, यूसीसी के द्वारा उसे इस अधिकार से वंचित कर दिया गया है। मुस्लिम धर्म की महिलाओं को माता-पिता की सम्पत्ति में से चौथाई हिस्सा विरासतन पाने का अधिकार है जिससे अब वे वंचित कर दी गई हैं।

भाजपा सरकार द्वारा इसे समान नागरिक संहिता कहा जाना गलत है, क्योंकि इस कानून के दायरे से उत्तराखंड की थारु, बुक्सा, राजि, जौनसारी व भोटिया आदि जनजातियों को बाहर रखा गया है। अंतर्जातीय विवाह व सहवासी संबंधों में कोई एक जनजाति समाज से होने पर इस कानून में स्पष्टता नहीं है। मुस्लिम एवं बहुत सी अन्य जातियों में अपने नजदीकी रिश्तेदारों में विवाह की परंपरा है। यूसीसी ने इस तरह के विवाहों को गैरकानूनी बनाकर देश की विविधता पर चोट की है।

मुनीष कुमार ने बताया कि इस जनविरोधी कानून के खिलाफ फरवरी माह में उत्तराखंड के जन संगठनों की एक बैठक देहरादून में आयोजित की जाएगी, जिसमें यूसीसी को रद्द किए जाने की मांग को लेकर आगामी रणनीति तैयार की जाएगी।

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