टोक्यो ओलिंपिक: खेल भावना की नई परिभाषा भी लिख रहे खिलाड़ी
टोक्यों में केवल खेल समारोह ही नहीं हो रहे हैं, बल्कि भारत जैसे देशों में इससे व्यक्तिवाद की नई परिभाषा लिखी जा रही है, ताइवान में राष्ट्रवाद उमड़ पड़ा है और इन सबके बीच खिलाड़ी खेल भावना की नई परिभाषा भी लिख रहे हैं.....
वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
जनज्वार। हमारे देश के हालात गजब हैं- ओलिंपिक में भारतीय खिलाड़ियों के कुछ भारतीय खिलाड़ियों के प्रदर्शन के बाद से मीडिया और प्रधानमंत्री के दरबारी ऐसा राग अलाप रहे हैं मानो प्रधानमंत्री स्वयं कोई मैडल लेकर आ रहे हों। मीराबाई चानू का स्वागत करते हुए कुछ अति उत्साहित दरबारियों ने तो स्टेज के बैनर पर बाकायदा लिखा भी था कि रजत पदक मोदी जी की कृपा से आया है। हमारे प्रधानमंत्री जो दिन के 24 घंटों में से 18 घंटे काम करने का दावा करते हैं, पूरा हॉकी मैच देख रहे थे – क्या यह भी काम का हिस्सा है?
बेल्जियम से हार के तुरंत बाद प्रधानमंत्री जी ने ट्वीट किया, जिसमें सबकुछ तो सामान्य सा लिखा पर 5-2 से हारने वाली टीम के बारे में बताया कि वह अपनी पूरी क्षमता से खेली और सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। जरा सोचिये, भारतीय पुरुष हॉकी टीम सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के बाद भी यदि 5-2 से हारती है, तो जाहिर है हारना तय था क्योंकि सर्वश्रेष्ठ से आगे तो कुछ है ही नहीं।
ताइवान दुनिया के नक़्शे पर एक देश है, जिसपर चीन अपना अधिकार समझता है। दूसरी तरफ दुनिया के किसी नक़्शे पर चाईनीज तायपेई नामक जगह नहीं मिलती, पर ताइवान को इसी नाम से ओलिंपिक में प्रतिनिधित्व करना पड़ता है। इस बार टोक्यो ओलिंपिक में अब तक 2 स्वर्ण के साथ कुल 10 ओलिंपिक पदक जीत चुके ताईवानी खिलाड़ियों के हौसले बुलंद हैं और अब खिलाड़ियों के साथ ही ताइवान सरकार, मीडिया और जनता सभी चाहते हैं कि अगले ओलिंपिक में ताइवान का दल चाईनीज तायपेई के नाम से नहीं बल्कि ताइवान के नाम से ही ओलम्पिक या दूसरे अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में हिस्सा ले। इसे दुनिया एक तरह के खेल राष्ट्रवाद से जोड़ कर देख रही है।
ताइवान के ली यंग और वांग ची लिन की जोड़ी में बैडमिंटन के डबल्स का स्वर्ण चीन की जोड़ी को हराकर जीता है। ली यंग ने कहा है कि वे अपना मैडल अपने देश को समर्पित करते हैं। जाहिर है, उन्होंने मैडल ताइवान को समर्पित किया है ना कि चाईनीज तायपेई को। बैडमिंटन जैसे खेल में चीन के वर्चस्व को चुनौती देकर ताइवान के हौसले बुलंद हैं। इसके बाद जापान और कोरिया के कमेंटेटर्स ने जब ताइवान का नाम लिया, तब ताइवान में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी पर चीन ने तुरंत इन्टरनेशनल ओलिंपिक समिति में ताइवान शब्द के इस्तेमाल पर आपत्ति दर्ज कराई।
ताइवान एक द्वीप है, जहां 1950 के दशक में चीन के आन्दोलनकारी अपने देश में सजा पाने से बचने के लिए शरण लेने आये थे, और फिर धीरे-धीरे इसे अपना उपनिवेश समझने लगे। वर्ष 1970 में चीन के दबाव के कारण इन्टरनेशनल ओलिंपिक समिति ने ताइवान को ओलिंपिक से बाहर रखा। इसके बाद वर्ष 1981 में नोगोया समझौते के तहत ताइवान को एक अलग दल के तौर पर प्रतिनिधित्व की इजाजत तो मिली, पर अपने देश के नाम की इजाजत नहीं दी गयी। समझौते के तहत ताइवान स्वतंत्र तौर पर चाइनीज तायपेई के नाम से ही ओलंपिक्स में हिस्सा ले सकता है।
ताइवान के लोगों का कहना है कि वे ना तो चाइनीज हैं और ना ही तायपेई के निवासी हैं, फिर इस नाम का कोई मतलब नहीं रह जाता। वे ताइवान के मूल निवासी हैं और चाहते हैं कि दुनिया उन्हें एक स्वतंत्र देश के तौर पर जाने, ना कि चीनी उपनिवेश के तौर पर। संभव है, अगले ओलिंपिक खेलों में ताइवान के नाम, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान से दुनिया का परिचय हो।
टोक्यो ओलिंपिक में खेल भावना की एक अनोखी मिसाल भी मिली। लम्बी कूद में सबसे लम्बी दूरी, 2.37 मीटर, की छलांग लगाने वाले दो खिलाड़ी थे – क़तर के मुताज़ बर्शिम और इटली के गिऔमार्को। इन दोनों में से विजेता चुनने के लिए इन्हें तीन और मौके दिए गए, पर कोई भी 2.37 मीटर की सीमा को पार नहीं कर पाया। इसके बाद आयोजकों ने दोनों को एक अंतिम मौका देने का निर्णय लिया, पर तबतक इटली के गिऔमार्को को पैरों में चोट लग चुकी थी और उन्होंने निर्णायक दौर से हटने का ऐलान कर दिया।
जाहिर है, इसके बाद क़तर के मुताज़ बर्शिम के पास स्वर्ण जीतने का सुनहरा मौका था, पर उन्होंने भी निर्णायक दौर से पहले आयोजकों से पूछा कि यदि वे इसमें हिस्सा नहीं लेंगें तो क्या स्वर्ण में साझेदारी गिऔमार्को की भी होगी? आयोजकों ने बताया कि ऐसी अवस्था में दोनों खिलाड़ियों को स्वर्ण पदक दिया जाएगा। यह सुनकर मुताज़ बर्शिम ने निर्णायक दौर में हिस्सा नहीं लिया।
इसके बाद जो हुआ वह इतिहास बन गया, स्वर्ण पदक के पोडियम पर एक नहीं बल्कि दो खिलाड़ी - क़तर के मुताज़ बर्शिम और इटली के गिऔमार्को – खड़े थे और दोनों ने एक दूसरे को स्वर्ण पदक पहनाया। क़तर के मुताज़ बर्शिम का कहना है कि यह भावना खेल से भी परे है और युवाओं के लिए एक उदाहरण भी।
जाहिर है, टोक्यों में केवल खेल समारोह ही नहीं हो रहे हैं, बल्कि भारत जैसे देशों में इससे व्यक्तिवाद की नई परिभाषा लिखी जा रही है, ताइवान में राष्ट्रवाद उमड़ पड़ा है और इन सबके बीच खिलाड़ी खेल भावना की नई परिभाषा भी लिख रहे हैं।