कोरोना में ढाल बने प्रशिक्षु चिकित्सक मनरेगा से भी कम पाते हैं मजदूरी
देश में एमबीबीएस की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों के लिए साढ़े चार साल के मेडिकल कोर्स के बाद एक साल का इंटर्नशिप करना होता है। इसके बाद ही उनका कोर्स पूरा होता है....
जनज्वार। कोरोना काल में जान जोखिम में डालकर स्वास्थ्य सेवा से जुड़े लाखों कर्मी अपना योगदान करने में लगे रहे हैं। जिनमें से अब तक बड़ी संख्या में संक्रमित होकर अपनी जान भी गवां चुके हैं । इसके बावजूद मानवता की सेवा में यह डटे हुए हैं । इन्हें प्रोत्साहित करने के लिए सरकार भले ही तमाम घोषणाएं व दावा कर ले पर जमीनी हकीकत बहुत ही शर्मनाक है।
उत्तराखंड से लेकर राजस्थान तक के प्रशिक्षु चिकित्सक मनरेगा से भी कम की मजदूरी पर कार्य करने को विवश है। ये भी उस समय जब कोरोना से लड़ने के लिए इन्हें अग्रिम पंक्ति में खड़ा किया गया है। हाल यह है कि चिकित्सकों को सरकार ने नियमित मानदेय के अलावा कोरोना काल में ढाई सौ रुपए प्रत्येक दिन प्रोत्साहन राशि देने का वादा कर अब भूल चुकी है। दूसरी तरफ वर्षों से ये प्रशिक्षु चिकित्सक मामूली धनराशि पर कार्य कर रहे हैं।
उत्तराखंड 340 ट्रेनी डॉक्टरों के हड़ताल से एक बार फिर बढ़ी चर्चा
उत्तराखंड के तीनों मेडिकल कॉलेज के 340 ट्रेनी डॉक्टर इस समय कार्य बहिष्कार पर हैं। डॉक्टरों का कहना है कि उन्हें 7500 रुपये बतौर वेतन दिया जा रहा है, जो कि एक मनरेगा मजदूर की मजदूरी से भी कम है।इनका यह आंदोलन सुर्खियों में है।
हड़ताल पर चले जाने से ओपीडी के अलावा ऑपरेशन सहित कई विभागों पर इसका असर पड़ा है। हड़ताल पर गए डॉक्टरों का कहना है कि एमबीबीएस के बाद एक साल के लिए मेडिकल कॉलेज में कार्यरत इंटर्नशिप करने वाले डॉक्टर केवल साढ़े सात हजार रुपये मासिक मानदेय पर काम कर रहे हैं, जबकि कई राज्यों में उनकों 35,000 से अधिक का मानदेय दिया जाता है।
डॉक्टरों का कहना है कि उन्हें कोविड ड्यूटी के समय उनसे 12 से लेकर 24 घंटे काम लिया गया। वहीं प्रशासन द्वारा उनको 60 हजार रुपये मासिक मानदेय दिए जाने की बात कही गई थी, लेकिन 7,500 मानदेय ही दिया जा रहा है। इंटर्न डाक्टरों का कहना है कि उन्हें अन्य राज्यों की तरह 23,500 रुपये मानदेय दिया जाए। डॉक्टरों ने कहा कि जबतक उनकी मांगे नहीं मानी जाती, तबतक वह लोग अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार पर रहेंगे।
आंदोलन के चलते उत्तराखंड के प्रशिक्षु चिकित्सक भले ही चर्चा में आ गए हैं,पर कमोबेश यही हाल अन्य राज्यों की भी है। उत्तर प्रदेश और राजस्थान के मेडिकल इंटर्न का भी यही हाल है। उत्तर प्रदेश में एक मेडिकल इंटर्न का एक दिन का स्टाइपेंड 250 रूपये मिलते रहा है, लेकिन जनवरी माह में 400 रुपए कर दिया गया। अर्थात अब यह मानदेय 7500 की जगह 12000 रुपए हो गए हैं।
दूसरी तरफ राजस्थान में यह महज 235 रूपये है। इन मेडिकल इंटर्न का कहना है कि उन्हें जो स्टाइपेंड मिलता है, वह अकुशल मजदूरों के लिए तय सरकारी मानक वेतन से भी बहुत कम है जबकि उनका काम पूरी तरह से स्किल्ड और रिस्क से भरा हुआ है। आंकड़ों पर गौर करें तो मनरेगा मजदूर को एक दिन की मजदूरी 203 रुपए दी जा रही है।
उत्तर प्रदेश और राजस्थान के लगभग 4000 मेडिकल इंटर्न इसको लेकर समय समय पर आवाज बुलंद करते रहे हैं। कोरोना के इस संकट भरे दौर में अपनी सेवाएं तो दे रहे हैं, लेकिन इसके साथ ही साथ अपना स्टाइपेंड बढ़ाने को लेकर अपना विरोध भी दर्ज कराते रहे हैं। राजस्थान में यह मानदेय मात्र 7000 रूपये प्रति माह है। इन मेडिकल इंटर्न का कहना है कि उन्हें जो स्टाइपेंड मिलता है, वह अकुशल मजदूरों के लिए तय सरकारी मानक वेतन से भी बहुत कम है जबकि उनका काम पूरी तरह से स्किल्ड है और रिस्क से भरा हुआ है।
खास बात यह है कि सभी स्वास्थ्य क्षेत्र के सभी विभागों और लैब में भी डॉक्टरों के सहयोग के लिए इनकी तैनाती होती है। कुल मिलाकर ये उन सभी कामों को करते हैं, जो एक नर्स और पैरामैडिकल स्टाफ से लेकर एक डॉक्टर करता है। 8 घंटे की ड्यूटी कब 12 से 14 घंटे की हो जाती है, पता ही नहीं चलता। लेकिन इसके बदले में जो हमें मिलता है, उससे हम अपना खुद का खर्चा भी चलाना मुश्किल होता है।
एक साल का करना होता है इंटर्नशिप
देश में एमबीबीएस की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों के लिए साढ़े चार साल के मेडिकल कोर्स के बाद एक साल का इंटर्नशिप करना होता है। इसके बाद ही उनका कोर्स पूरा होता है और उन्हें एमबीबीएस की डिग्री और प्रैक्टिस के लिए लाइसेंस मिलता है। यह इंटर्नशिप उनके मेडिकल कॉलेज या किसी नजदीकी सरकारी अस्पताल में होता है। इन प्रशिक्षु डॉक्टरों को इस इंटर्नशिप के बदले सरकार की तरफ से हर महीने स्टाइपेंड मिलता है। लेकिन देश के अलग-अलग राज्यों में इंटर्न को मिलने वाले स्टाइपेंड में बहुत ज्यादा अंतर है।
केंद्र व राज्य के मेडिकल छात्रों के इंटर्नशिप के मानदेय में काफी अंतर
केंद्रीय मेडिकल कॉलेजों में एक मेडिकल इंटर्न को हर महीने 23,500 रुपये स्टाइपेंड दिया जाता है। वहीं असम में यह 30,000, छत्तीसगढ़, केरल, कर्नाटक और ओडिशा में 20,000, त्रिपुरा में 18,000, चंडीगढ़ और हिमाचल प्रदेश में 17,000, पश्चिम बंगाल में 16,590, पंजाब और बिहार में 15,000, गुजरात में 13,000, जम्मू और कश्मीर में 12,300 और महाराष्ट्र में 11,000 रूपये है।
उत्तर प्रदेश में मानदेय बढ़ाने को लेकर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, स्टूडेंट मेडिकल नेटवर्क और ऑल इंडिया मेडिकल स्टूडेंट्स एशोसिएशन ने पिछले साल क्रमिक आंदोलन चलाया था। इस मांग का समर्थन सीनियर डॉक्टरों के संगठन यूनाइटेड रेजिडेंट एंड डॉक्टर्स एसोसिएशन, फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स एशोसिएशन ने भी किया था। जिसका नतीजा रहा कि जनवरी 2021 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मानदेय में बढ़ोतरी कर इसे 12,000 रुपए कर दिया। हालाकि यह धनराशि केंद्रीय संस्थानों से काफी कम है।
इस बीच उत्तराखंड के प्रशिक्षणरत चिकित्सकों के आंदोलन के चलते एक बार फिर यह मुद्दा गरमाने लगा है। अधिकांश राज्यों के इंटर्नशिप कर रहे मेडिकल छात्रों ने केंद्र के समान मानदेय भुगतान की मांग उठाई है।