कन्टेम्ट ऑफ कोर्ट के मामलेे में न्यायमूर्ति के फैसले के पूर्व ही विश्वविद्यालय ने समाप्त की असिस्टेंट प्रोफेसर की सेवा

डॉ. श्रीवास्तव के मुताबिक यूजीसी द्वारा निर्धारित वेतनमान के भुगतान के लिए वे पिछले 20 वर्षों से हाईकोर्ट में मुकदमा लड़ रहे हैं, मुकदमे में कोर्ट द्वारा निर्धारित यूजीसी के मानक के अनुसार वेतन देने के आदेश के बाद भी सरकार द्वारा टाल मटोल किया जा रहा है, जिस पर अब कोर्ट के अवमानना का मामला चल रहा है....

Update: 2021-08-01 12:59 GMT

(लखनऊ खंडपीठ का आदेश न मानने पर न्यायालय के अवमानना संबंधित रिट को लेकर आवेदक का कहना है कि यूजीसी के सेवा शर्तों के आधार पर विश्वविद्यालय चयन करता है।)

जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट

जनज्वार। अनुदानित महाविद्यालयों के स्ववित्तपोषित शिक्षकों को यूजीसी वेतनमान देने व माननीय हाईकोर्ट के आदेश का अनुपालन करने की लड़ाई लड़ रहे स्ववित्तपोषित शिक्षक डा. नीरज श्रीवास्तव का विषय ही समाप्त कर दिया गया। विश्वविद्यालय प्रशासन के इस फैसले से स्वतह डा. श्रीवास्तव की सेवा समाप्त हो गई। प्रशासन ने यह निर्णय उस समय लिया है,जब कन्टेम्ट आंफ कोर्ट के मामलेे में बहस पूर्ण होने के बाद अब न्यायमूर्ति के फैसले का इंतजार है।

यह प्रकरण है कानपुर के मनधना स्थित ब्रह्मवर्त पीजी कॉलेज का। यहां कार्यरत राजनीति शास्त्र के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर नीरज श्रीवास्तव यूजीसी के अनुसार न्यूनतम वेतनमान देने की मांग को लेकर लंबे समय से लड़ाई लड़ रहे हैं। इन्हें प्रतिमाह महाविद्यालय द्वारा 2975 रुपए मानदेय मिलता था अर्थात इनकी दैनिक मजदूरी बनती थी 114 रुपए।

20 वर्षों से लड़ रहे इंसाफ की लड़ाई

(असिस्टेंट प्रोफेसर नीरज श्रीवास्तव)

डॉ. श्रीवास्तव के मुताबिक पिछले 20 वर्षों से यूजीसी द्वारा निर्धारित वेतनमान के भुगतान के लिए वे प्रयागराज हाईकोर्ट में मुकदमा लड़ रहे हैं। मुकदमे में कोर्ट द्वारा निर्धारित यूजीसी के मानक के अनुसार वेतन देने के आदेश के बाद भी सरकार द्वारा टाल मटोल किया जाता रहा है, जिस पर अब कोर्ट के अवमानना का मामला चल रहा है। वर्ष 2014 से चल रही न्याय की लड़ाई में डॉ. नीरज के मुताबिक, एक अन्य मामले में लखनऊ खंड पीठ ने यूजीसी के मानक के अनुसार वेतन देने का आदेश 2014 में दिया था।

कोर्ट ने यह आदेश साकेत महाविद्यालय अयोध्या में कार्यरत डॉक्टर एसके पांडे के अपील पर दी थी। यह आदेश ऐसे सभी शिक्षकों के लिए लागू होता है, लेकिन अनुपालन न होने पर जन सूचना अधिकार के तहत मैंने जानकारी मांगी। एक वर्ष तक अधिकारियों के दफ्तर का चक्कर लगाने के बाद भी लिखित रूप से जानकारी नहीं दी गई। ऐसे में हमने राज्य सूचना आयोग के खिलाफ प्रयागराज हाईकोर्ट में वाद दायर किया, जिस पर न्यायमूर्ति केसरवानी के बेंच ने आयोग को सूचना उपलब्ध कराने का निर्देश दिया। इसके पूर्व मैंने इस संबंध में उच्च शिक्षा अधिकारियों से लेकर मुख्यमंत्री के जन सुनवाई पोर्टल तक पर शिकायत की थी, लेकिन निराशा ही हाथ लगती रही।

वर्ष 2018 से कोर्ट के अवमानना का मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में चल रहा है। लखनऊ खंडपीठ का आदेश न मानने पर न्यायालय के अवमानना संबंधित रिट को लेकर आवेदक का कहना है कि यूजीसी के सेवा शर्तों के आधार पर विश्वविद्यालय चयन करता है। ऐसे में वेतन भुगतान संबंधित अलग-अलग आदेश कहां तक उचित है। शिक्षा संविधान के समवर्ती सूची के अधीन आता है। ऐसे में केंद्र द्वारा निर्धारित मानदंड को मानने के लिए राज्य भी बाध्य हैं। कोई भी राज्य अलग-अलग वेतनमान को लेकर कानून नहीं बना सकता है। वर्ष 2018 से अब तक अलग-अलग सात जजों के बेंच ने सुनवाई के दौरान यूजीसी के स्केल मानने संबंधित आदेश जारी किए हैं।

उधर शासन द्वारा लगाए गए जवाब में निर्धारित वेतन देने की बात कही गई। इस पर हमने शपथ पत्र के माध्यम से कोर्ट को जानकारी दी कि हमें 57700 रुपए के बजाय 2975 रुपए मिलते हैं। वर्ष 2019 में जस्टिस सुमित कुमार की कोर्ट ने भी यूजीसी का वेतनमान देने का आदेश दिया। 10 मार्च 2021 सरकार द्वारा लगाए गए जवाब में यह बताया गया कि विभिन्न विश्वविद्यालय द्वारा अलग-अलग वेतन तय कर भुगतान किया जाता है।

यह जानकारी अपर सचिव को विश्वविद्यालयों ने दी। इस पर कोर्ट ने कहा कि विश्वविद्यालय अलग अलग कैसे वेतनमान तय कर सकते हैं। सरकार द्वारा एक बार फिर 24 अप्रैल को डबल बेंच में अपील किया गया। जिस पर 14 जुलाई को सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा गया है। अगली तारिख 03 अगस्त को निर्धारित है। इसके पहले ही राजनीतिशास्त्र समेत एक और विषय की संबधता ही समाप्त कर दी गई।

विश्वविद्यालय के कुल सचिव ने समाप्त की विषयों की संबद्धता

छत्रपति शाहूजी महाराज कानपुर विश्वविद्यालय के कुलसचिव डा. अनिल कुमार यादव ने जारी अपने आदेश में कहा है कि कानपुर के मनधना स्थित ब्रह्मवर्त पीजी कॉलेज की प्रबंध समिति के प्रस्ताव दिनांक 19 सिंतबर 2020,दिनांक 5 जनवरी 2021 व दिनांक 18 मार्च 2021 के क्रम में उत्तर प्रदेश राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम 1973 यथा संशोधित उत्तर प्रदेश राज्य विश्वविद्यालय द्वितीय संशोधन अधिनियम 2014 उत्तर प्रदेश अधिनियम संख्या 14 सन 2014 की धारा 37 2 के अंतर्गत उच्च स्तरीय संबद्धता की अनुशंसा दिनांक 20 मार्च 2021 एवं कार्य परिषद की बैठक दिनांक 1 अप्रैल 2021 के निर्देश के क्रम में पुन संबद्धता समिति की बैठक दिनांक 6 जुलाई 2021 में समिति की अनुशंसा एवं कार्य परिषद की बैठक दिनांक 12 जुलाई 2021 की मद संख्या 2021 -45 के निर्णयानुसार ब्रह्मवर्त पीजी कॉलेज में स्ववित्तपोषित योजना अंतर्गत संचालित परास्नातक स्तर पर कला संकाय के अंतर्गत एमए अंग्रेजी एवं राजनीतिशास्त्र विषयों की प्रदत्त संबद्धता सत्र 2021- 22 से समाप्त की जाती है। नामांकित छात्र छात्राओं को अर्मापुर पीजी कालेज अर्मापुर कानपुर स्थानान्तरित किया जाता है।

अनुदानित महाविद्यालय विश्वविद्यालय स्ववित्तपोषित अनुमोदित शिक्षक संघ उत्तर प्रदेश के प्रदेश मंत्री डॉ जितेन्द्र कुमार त्रिपाठी ने विषय समाप्ति पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए बताया कि ये सब इसलिए हुआ है कि माननीय हाईकोर्ट के आदेश दिनांक 01.03.2013 के अनानुपालन पर डॉ नीरज श्रीवास्तव द्वारा दायर कन्टेम्ट आंफ कोर्ट याचिका संख्या 26042018 में उत्तर प्रदेश सरकार व उच्च शिक्षा विभाग इस कदर फंस चुका है कि अनुदानित महाविद्यालयों के स्ववित्तपोषित शिक्षकों को यूजीसी वेतनमान देने व माननीय हाईकोर्ट के आदेश का अनुपालन करने के बजाय मुकदमा लड रहे स्ववित्तपोषित शिक्षक का विषय ही समाप्त कर दिया गया। ताकि न रहे बांस और न बजे बांसुरी।


मानवाधिकार सुरक्षा संगठन उत्तर प्रदेश के प्रदेश संयोजक व एलबीएस पीजी कॉलेज गोण्डा के शिक्षक डॉ दिलीप शुक्ला ने कानपुर विश्वविद्यालय ईकाई के अध्यक्ष से अपील किया है कि डॉ नीरज श्रीवास्तव के प्रकरण में विश्वविद्यालय स्तर पर अविलम्ब निर्णय लेते हुए तत्काल प्रभाव से विश्वविद्यालय घेराव का एलान किया जाय।

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उत्तर प्रदेश के समस्त अनुदानित महाविद्यालयों का स्ववित्तपोषित शिक्षक डॉ नीरज श्रीवास्तव और कानपुर विश्वविद्यालय ईकाई के साथ है और धरना प्रदर्शन व घेराव में कंधे से कंधा मिलाकर ब्रह्मवर्त पीजी कॉलेज से लेकर कानपुर विश्वविद्यालय सहित हर स्थानों पर साथ रहेगा। किसी भी दशा स्ववित्तपोषित शिक्षकों का उत्पीड़न निष्कासन एवं शिक्षकों के साथ अमानवीय व्यवहार व मानवाधिकारों का हनन बर्दाश्त नहीं किया जायेगा।

इस बीच डा. नीरज श्रीवास्तव ने कहा कि यह लंबी लड़ाई है। इसमें माननीय न्यायालय से हमें न्याय मिलेगा। विषय समाप्त कर सेवा समाप्त करने की कारवाई पर हमें कोई आश्चर्य नहीं हुआ। इंसाफ की लड़ाई में हमें अवश्य जीत मिलेगी।

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