मंत्री जी के भाई की पूरी कहानी निकली फिल्मी, नौकरी के लिए हुए थे गरीब मिलते ही हो गये अमीर

अरुण कुमार द्विवेदी की संपत्ति के आधार पर ईडब्ल्यूएस प्रमाण पत्र जारी होने का मामला अब तो जांच के दायरे में है, जिसकी रिपोर्ट आने के बाद ही पूरी बात सही मायने में साबित हो पाएगी....

Update: 2021-05-25 12:32 GMT

(पिता की मौत के बाद से चार भाइयों के संयुक्त परिवार की मुखिया मां हैं, जिसमें बड़े बेटे सतीश चंद द्विवेदी उत्तर प्रदेश सरकार के बेसिक शिक्षा मंत्री वहीं दूसरे सिद्धार्थ नगर के एक डिग्री कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं)

जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट

जनज्वार। ईडब्ल्यूएस प्रमाण पत्र के आधार पर अपने भाई को असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी दिलाने के आरोपों से घिरे उत्तर प्रदेश सरकार के बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश चंद्र द्विवेदी का प्रकरण इरफान खान की चर्चित फिल्म हिंदी मीडियम की पटकथा से काफी मेल खाता है। फिल्म के नायक इरफान खान व उनकी पत्नी अपनी बेटी पिया को बड़े स्कूल में पढ़ाना चाहते हैं। जब उन्हें पता चलता है कि उनकी पृष्ठभूमि बेटी के लिए बाधा बन रही है, तब वे उसके लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार होते हैं। ये इसके लिए गरीब बनने का फैसला करता हैं। कहा जा रहा है कि इस फिल्म की तरह ही अरुण भी नौकरी के लिए गरीब होने का प्रमाण पत्र जारी करा लेते हैं।

कथित तौर पर ईडब्ल्यूएस के फर्जी प्रमाणपत्र के आधार पर सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी पाने वाले मंत्री के भाई के पाने का मामला अब राजभवन तक पहुंच गया है। इस संबंध में विस्तृत रिपोर्ट कुलपति ने राजभवन को भेजी है।

फिल्म हिंदी मीडियम में एक जगह डायलॉग है, यह नए नए गरीब हुए हैं। गरीबी में जीना एक कला है। हम सिखाएंगे तुम्हें। मेरे बाप गरीब, मेरे दादा गरीब हम खानदानी गरीब हैं। सात पुस्त से गरीब हैं। ऐसा नहीं कि पहले गरीब थे फिर अमीर हो गए व फिर गरीब हो गए। इस पर राज की भूमिका में इरफान खान कहता है कि हम भी खानदानी गरीब हैं। गलती से अमीर हो गए थे। इरफान खान का यह डायलॉग मंत्री के भाई की रियल स्टोरी से काफी मेल खाता है।

असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी को लेकर अरूण ने कुछ ऐसी ही निभाई भूमिका

अब हम बात करते हैं बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश चंद्र द्विवेदी के भाई अरुण कुमार कुमार द्विवेदी की। मंत्री के चार भाइयों में से एक हैं अरुण। यह सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर बनने के पूर्व राजस्थान के वनस्थली विद्यापीठ में नौकरी करते थे। जानकारों के मुताबिक यहां असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में मासिक सैलरी 70 हजार से अधिक रही। बेसिक शिक्षा मंत्री के इस संयुक्त परिवार में चार भाइयों के अलावा मां है, जिन पर पैतृक भूमि के रूप में 36 बीघा जमीन है। इसके अलावा गांव पर आलीशान मकान।

वर्ष 2019 में सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर की वैकेंसी आने पर अरुण आवेदन करते हैं। यहां दो पदों में एक ईडब्ल्यूएस व दूसरा अति पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित रहता है। ऐसे में अपनी बेहतर मासिक आय व पैतृक संपत्ति के बाद भी अरुण अपने नाम ईडब्ल्यूएस का प्रमाणपत्र जारी करा लेते हैं। दो वर्ष तक चली चयन की लंबी प्रक्रिया के बीच 21 मई 2021 को आखिरकार ये नियुक्ति हासिल कर लेते हैं।

आवेदन के बाद अचानक बढ़ गई संपत्ति

अरुण कुमार द्विवेदी की संपत्ति के आधार पर ईडब्ल्यूएस प्रमाण पत्र जारी होने का मामला अब तो जांच के दायरे में है, जिसकी रिपोर्ट आने के बाद ही पूरी बात सही मायने में साबित हो पाएगी। इस बीच सोशल मीडिया पर चल रही चर्चा व लग रहे आरोपों के अनुसार करोड़ों रुपए की जमीन 2 वर्ष में मात्र सिद्धार्थ नगर जनपद में खरीदी गई है। जिसमें बिशुनपुर, इटवा बिस्कोहर रोड पर विशुनपुर सैनी में 8 बीघा जमीन, इटवा डुमरियागंज रोड पर भारत पैट्रोल पंप के पीछे 1 बीघा आवासीय जमीन, इटवा डुमरियागंज रोड पर पूर्व विधायक स्वयम्वर चौधरी के घर के बगल में एनएच पर 1 बीघा आवासीय जमीन शामिल हैं। चर्चा में बनी यह बातें कितनी सही है यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

मंत्री के भाई की पत्नी असिस्टेंट प्रोफेसर व एक अन्य भाई शिक्षक

पिता की मौत के बाद से चार भाइयों के संयुक्त परिवार की मुखिया मां है, जिसमें बड़े बेटे सतीश चंद द्विवेदी उत्तर प्रदेश सरकार के बेसिक शिक्षा मंत्री वहीं सिद्धार्थ नगर के एक डिग्री कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर भी हैं। सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में नौकरी पाने वाले अरुण दिवेदी जहां पहले से वनस्थली विद्यापीठ में असिस्टेंट प्रोफेसर थे, वहीं उनकी पत्नी बिहार के मोतिहारी एमएस डिग्री कॉलेज में लेक्चरर हैं। यह भी पूर्व में वनस्थली विद्यापीठ में तैनात रही हैं। इसके बाद 2017 में बीपीएससी के माध्यम से चयन होने पर मोतिहारी डिग्री कॉलेज में कार्यरत हैं। अरुण के सबसे छोटे भाई अनिल परिषदीय विद्यालय में अध्यापक हैं।

एक नजर सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में नियुक्ति पर

वर्ष 2019 के अक्टूबर में सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए विज्ञप्ति जारी होती है। इसके लिए डेढ़ सौ से अधिक आवेदन प्राप्त होते हैं। जुलाई 2020 में आवेदन पत्रों की स्क्रीन की जाती है। इसके आधार पर फरवरी 2021 में साक्षात्कार के लिए दस अभ्यर्थियों को आमंत्रित किया जाता है। साक्षात्कार के दिन एक आवेदक अनुपस्थित रह जाता है। साक्षात्कार के बाद रिजल्ट को लिफाफे में बंद कर दिया जाता है, जिसे 21 मई को कुलपति के समक्ष खोला जाता है। यह रिजल्ट अरुण दिवेदी के पक्ष में आता है। खास बात यह है कि इसी दिन अरुण ज्वाइन भी कर लेते हैं। सवाल यह उठता है कि चयन की सूचना दूरभाष पर दी जाती है या ईमेल पर। इसको लेकर नियमों का अलग-अलग हवाला देते हुए विपक्षी सवाल खड़ा कर रहे हैं।

साक्षात्कार के लिए बनी थी 6 सदस्यों की कमेटी

साक्षात्कार के लिए 6 सदस्य कमिटी बनाई गई थी, जिसमें कुलपति, राजभवन द्वारा नामित दो सदस्य, विषय विशेषज्ञ, कला संकाय के डीन, पिछड़ा वर्ग अनुसूचित वर्ग बोर्ड के प्रतिनिधि शामिल थे। जिनकी रिपोर्ट के आधार पर चयन किया गया।

निर्णय को लेकर अब राजभवन पर सबकी नजर

नियमों को ताक पर रखकर बेसिक शिक्षा मंत्री के भाई की तैनाती को विपक्ष द्वारा मुद्दा बनाए जाने व सोशल मीडिया पर परस्पर विरोधी चर्चाओं के बाद यह मामला अब राजभवन तक पहुंच गया है। जानकारों का मानना है कि इस संबंध में राजभवन से रिपोर्ट मांगी गई थी, जिसे कुलपति सुरेंद्र दुबे ने भेज दिया है। जिसमें बिंदुवार आरोपों के जवाब मांगे गए थे। अब देखना है कि राजभवन द्वारा इस संबंध में क्या फैसला किया जाता है।

ईडब्ल्यूएस प्रमाण पत्र जारी करने का क्या है आधार

अल्प आय वर्ग ( ईडब्ल्यूएस) प्रमाण पत्र के आधार पर सामान्य वर्ग के गरीबों को नौकरों में दस प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है। इसके लाभ के लिए आवेदक के परिवार का वार्षिक आय आठ लाख रुपए से कम व 5 एकड़ से अधिक कृषि योग्य भूमि नहीं होनी चाहिए। इसके अलावा आवासीय भवन ग्रामीण क्षेत्र में 1000 वर्ग फुट परिक्षेत्र में तथा शहरी क्षेत्र में 900 वर्ग फुट परिक्षेत्र से अधिक नहीं होना चाहिए।

एक माह के अंदर प्रमाणपत्रों की करा ली जाएगी जांच

सिद्धार्थ विश्वविद्यालय के कुलपति सुरेंद्र दुबे ने कहा कि किसी भी नियुक्ति के छह माह के अंदर प्रमाणपत्र का सत्यापन कराया जा सकता है। अरुण कुमार दिवेदी का चयन नियमानुसार किया गया है। इनके सभी प्रमाण पत्रों की एक माह के अंदर जांच करा ली जाएगी। इसमें कोई भी सर्टिफिकेट फर्जी पाए जाने पर चयन निरस्त कर दिया जाएगा। अगर प्रमाण पत्र सही पाए जाते हैं तो चयन बरकरार रखा जाएगा।

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