यूपी ब्लॉक प्रमुख नामांकन में BJP समर्थकों द्वारा गोली, बम, मारपीट और चीरहरण के बाद ट्रेंड हुआ #updgp_निकम्मा_है

सत्ताधारी दल बीजेपी का दबदबा कायम रहा, अधिकतर जिलों में तो विपक्ष के लोगों का नामांकन ही नहीं होने दिया गया। इस अराजक माहौल में गुड गवर्नेंस धरा का धरा रह गया और पुलिस प्रशासन ने भी खुलकर सत्ता पक्ष का साथ दिया। शायद ही कोई जिला बचा हो जहां उत्पात ना हुआ हो...

Update: 2021-07-09 10:09 GMT

(1987 बैच के मुकुल गोयल 30 जून को यूपी डीजीपी के पद पर नियुक्त हुए हैं.कल के बवाल के बाद वह ट्वीटर पर ट्रेंड कर रहे हैं)

जनज्वार ब्यूरो, लखनऊ। उत्तर प्रदेश में कल ब्लॉक प्रमुख चुनाव के नामांकन को लेकर जो कुछ भी हुआ उसे लेकर योगी सरकार पर सीधे तौर पर सवाल उठ रहे हैं। तो दूसरा सवाल यूपी के नए डीजीपी को उठ रहा है। सवाल यह भी है कि क्या यही सब कराने के लिए नए डीजीपी को लाया गया था।

प्रदेश के नए डीजीपी मुकुल गोयल ने इसी महीने के पहले सप्ताह में पदभार ग्रहण किया है। उनके आते ही पदभार संभालने के लिए एक ज्वैलर्स द्वारा अखबार को दिया गया फुल पेज विज्ञापन भी चर्चा में रहा था। लेकिन डीजीपी ने उससे जादा चर्चा कल हासिल की, जिसके तहत आज डीजीपी साहब योगी के बाद दूसरे नंबर पर ट्रेंड कर रहे हैं।

कल सीतापुर, कन्नौज, लखीमपुर, महाराजगंज, फतेहपुर, कानपुर नगर, कानपुर देहात, इटावा सहित तमाम अन्य जिलों में जो कुछ भी हुआ वह रामराज्य के मुकाबिल तो बिल्कुल भी नहीं था। ब्लाॅक प्रमुख नामांकन को लेकर प्रदेश के हर जिले में लाठी, गोली, बम चले। यहां तक की लखीमपुर में तो महिला प्रस्तावक का चीरहरण तक करने की कोशिश भी की गई।

सत्ताधारी दल बीजेपी का दबदबा कायम रहा, अधिकतर जिलों में तो विपक्ष के लोगों का नामांकन ही नहीं होने दिया गया। इस अराजक माहौल में गुड गवर्नेंस धरा का धरा रह गया और पुलिस प्रशासन ने भी खुलकर सत्ता पक्ष का साथ दिया। शायद ही कोई जिला बचा हो जहां उत्पात ना हुआ हो। प्रशासन की पतलून खिसकती ना दिखी हो सत्ता के आगे।

कल का ब्लाक प्रमुख नामांकन और इससे पहले पंचायत अध्यक्षों का चुनाव जिस 'अभूतपूर्व पारदर्शी' ढंग से हुआ है, उसे देखते हुए यूपी को चुनाव-संचालन के मामले में देश का 'आदर्श राज्य' घोषित करना चाहिए। पूरे देश को भरोसा होना चाहिए कि विधानसभा चुनाव कराने में हमारे निर्वाचन आयोग को ये अनुभव काफी काम आयेंगे। वैसे भी आयोग में दो-दो आयुक्त यूपी से ही बने हैं। क्या वे इस छोटे से सवाल का जवाब देंगे कि 'रामराज्य' के विशेषण के शोर वाले इस सूबे में चुनाव की जरुरत भी क्या है?   

अभी कुछ दिन पहले बंगाल चुनाव में यही अराजक माहौल और कत्लेआम था जिसको लेकर टीएमसी के लोगों पर इल्ज़ाम लगाए जा रहे थे और उनको टीएमसी का गुंडा बताकर चुनी हुई सरकार को गिराने की कोशिश की जा रही थी, लेकिन यही घटनाक्रम क्रम उत्तर प्रदेश में जिला पंचायत अध्यक्ष के युद्ध और अब ब्लाॅक प्रमुख के नामांकन में देखा गया तो ये काम अराजक तत्व और रावण सेना का कहलाया।

अब क्योंकि उत्तर प्रदेश में तो रामराज्य है और राम की सेना किसी पर लाठी,गोली व बम नहीं चला सकती और न ही किसी महिला का चीरहरण कर सकती है। सीधा सा मतलब ये है कि 'बेटी हुई तो तेरी, बेटा हुआ तो मेरा' पूर्वजों ने कहा है कि 'किसी को उतना ही सताओ जितना तुम्हे सहने की क्षमता हो।' सपा वैसे भी अपने विकास से अधिक वसूली और कत्लेआम के लिए जानी जाती है।

और अशंका है कि यदि इस बार बाजी पल्टी तो उत्तर प्रदेश में आम लोगों का घर से निकलना मुश्किल हो जाएगा साथ ही सत्ता पक्ष और संगठन के कार्यकर्ता ऐसे गायब होंगे जैसे 'गधे के सर से सींग' यही उत्पात मचाते लोग आपको ढूंढने से भी नहीं मिलेंगे। आने वाले समय में उत्तर प्रदेश का तो भगवान ही भला करे।  

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