शर्मनाक: अविकसित लिंग को छिपाने के लिए नवजात को तसले में डालकर यमुना नदी में बहाया

डॉक्टरों ने नवजात का चिकित्सीय परीक्षण किया है और बताया है कि वह पूरी तरह स्वस्थ है। करीब तीन किलो वजनी शिशु के अविकसित लिंग होने की वजह से उसे चिकित्सक प्राथमिक तौर पर ट्रांसजेंडर बता रहे हैं.....

Update: 2021-05-07 06:45 GMT

जनज्वार डेस्क। उत्तर प्रदेश के मथुरा से इंसानियत को शर्मसार करने वाली एक घटना सामने आई है। जहां एक नवजात के अविकसित लिंग को छुपाने के लिए नवजात को लोहे के तसले में डालकर यमुना नदी में बहा दिया गया। हालांकि पुलिस को जब स्थानीय लोगों ने सूचना दी तो नवजात की जान बचा ली गयी।

खबरों के मुताबिक यह मामला वृंदावन का है। रामानुज नगर कॉलोनी के रहने वाले मुनेश कुमार चामुंडा घाट के नजदीक मॉर्निंग वॉक के लिए गए थे। तभी उसे यमुना में एक तसला तैरता हुआ नजर आया। उन्होंने आस पास टहल रहे अन्य लोगों को बुलाकर तसले को निकाला। नवजात शिशु सफेद रंग के कपड़े में लिपटा हुआ था।

इसके बाद कंट्रोल रूम को सूचना दी गयी। सूचना पाते ही पीआरवी 4195 मौके पर जा पहुंची। अब इस नवजात को जिला अस्पताल के चाइल्ड केयर यूनिट में डॉक्टरों की निगरानी में रखा गया है।

डॉक्टरों ने नवजात का चिकित्सीय परीक्षण किया है और बताया है कि वह पूरी तरह स्वस्थ है। करीब तीन किलो वजनी शिशु के अविकसित लिंग होने की वजह से उसे चिकित्सक प्राथमिक तौर पर ट्रांसजेंडर बता रहे है।

डॉक्टरों के अनुसार सम्भवतः शिशु के अविकसित लिंग की वजह से ही उसे यमुना में बहा दिया है। नवजात को फिलहाल चाइल्ड लाइन केयर संस्था की देखरेख में दो दिन तक डॉक्टरों की निगरानी में रखा जाएगा। उसके बाद राजकीय शिशु गृह भेज दिया जायेगा।

यूनिसेफ के मुताबिक प्रत्येक वर्ष 25 मिलियन शिशुओं के जन्म के साथ भारत में दुनिया के वार्षिक बच्चे के जन्म का लगभग पांचवां हिस्सा होता है। हर मिनट उन शिशुओं में से एक की मृत्यु हो जाती है।

सभी मातृ मृत्यु का लगभग 46 प्रतिशत और नवजात मृत्यु का 40 प्रतिशत प्रसव के दौरान या जन्म के पहले 24 घंटों के दौरान होता है। प्री-मेच्योरिटी (35 फीसदी), नवजात संक्रमण (33 फीसदी), जन्म के समय होने वाली बीमारी (20 फीसदी) और जन्मजात विकृतियां (9 फीसदी) नए जन्मे मौतों के प्रमुख कारणों में से हैं।

यूनिसेफ की मानें तो भारत में लगभग 3.5 मिलियन (35 लाख) बच्चे बहुत जल्दी पैदा हो जाते हैं, 1.7 मिलियन (17 लाख) बच्चे जन्म दोष के साथ पैदा होते हैं और विशेष नवजात देखभाल इकाइयों (एसएनसीयू) से प्रत्येक वर्ष एक मिलियन (10 लाख) नए-जन्म होते हैं। ये नए जन्मे मृत्यु और विकासात्मक देरी के उच्च जोखिम में रहते हैं।

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