मुख्यमंत्री के गृह जनपद गोरखपुर विश्वविद्यालय में करोड़ों का घोटाला, जिम्मेदारों ने कर ली आपसी बंदरबांट

निगरानी कमिटी को इस दौरान बंदरबांट होने के कई सारे सबूत मिल रहे हैं, जिसमें प्रशासनिक भवन की कैंटीन की मरम्मत के लिए 5 लाख खर्च किए गए है, जबकि परिसर में कैंटीन है ही नहीं, जबकि यहां के एक प्रभावशाली शिक्षक के घर लाखों रुपए की टाइल्स लगी मिली है.....

Update: 2021-03-16 06:05 GMT

जनज्वार ब्यूरो/गोरखपुर। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह नगर गोरखपुर के दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय में करोड़ों रुपए के भ्रष्टाचार का मामला प्रकाश में आया है। यहां विश्वविद्यालय के विकास सुंदरीकरण और सुविधा के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च कर दिए गए लेकिन विकास कार्य के नाम पर कुछ भी दिखाई नहीं देता। बंदरबाट का हाल ये है कि जिस कैंटीन की मरम्मत के लिए 5 लाख रुपये खर्च किए गए, वो दरअसल कभी बनी ही नहीं। 

प्रदेश सरकार ने राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान 'रूसा' के अंतर्गत करीब 18 करोड रुपए विश्वविद्यालय प्रशासन को दिए थे। इसमें से 16 करोड़ रुपए खर्च भी हो चुके हैं। शुरुआती जांच में पता चला कि रुपये जरूरी कार्य में खर्च होने की बजाय गैर जरूरी जगहों पर खर्च कर दिए गए। 2015 में विश्वविद्यालय प्रशासन ने सरकार को रुसा के अंतर्गत करीब 24 करोड़ रुपये का प्रस्ताव भेजा था। 

इस प्रस्ताव के तहत महिला छात्रावास सहित छात्र-छात्राओं के लिए अलग शौचालय हेतु 2-2 करोड रुपये की मांग की गई थी। इसके अलावा किताबें, खेल उपकरण, प्रयोगशाला आदि के लिए 13 करोड़ रुपए मांगे गए थे। जबकि परिसर में छात्रावास और शौचालय मरम्मत के लिए 7 करोड़ रुपये का अलग से प्रस्ताव भेजा गया था। 

सरकार ने प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए 2018 में 18 करोड़ रुपए विश्वविद्यालय प्रशासन के मद में जारी कर दिए। तत्कालीन कुलपति ने धनराशि खर्च करने के लिए एक कमेटी का गठन किया था और प्राचीन इतिहास के विभागाध्यक्ष को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई थी कमेटी में चार अन्य प्रोफेसर भी शामिल थे।

वर्तमान कुलपति के द्वारा सितंबर 2020 में कार्यभार संभालने के बाद शिकायत मिलने पर विश्वविद्यालय परिसर का निरीक्षण किया तो छात्रावास और शौचालय की स्थिति बदहाल मिली पता चला कि इस मद में करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुके हैं। उन्होंने भूगोल विभाग के प्रोफेसर शिवाकांत सिंह के नेतृत्व में एक निगरानी कमेटी का गठन किया और जानकारियां जुटाई।

निगरानी कमिटी को इस दौरान बंदरबांट होने के कई सारे सबूत मिल रहे हैं जिसमें प्रशासनिक भवन की कैंटीन की मरम्मत के लिए 5 लाख खर्च किए गए है, जबकि परिसर में कैंटीन है ही नहीं। जबकि यहां के एक प्रभावशाली शिक्षक के घर लाखों रुपए की टाइल्स लगी मिली हैं। रसायन विभाग में बन रहे अत्याधुनिक लैब का कार्य अधूरा पड़ा है, पर भुगतान पूरा कर दिया गया है। गृह विभाग की छत लगाने की बजाय 48 लाख रुपए के बाथरूम में टाइल्स लगवा दी गई हैं।

विश्वविद्यालय के कुलपति राजेश कुमार सिंह का इस पूरे मामले में कहना है कि 'कार्यों में गड़बड़ी की शिकायत पर राजभवन ने स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराने का निर्देश दिया था। कार्य परिषद की अगुवाई में कमेटी गठित की गई है। स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराई जा रही है और मैंने भी निरीक्षण किया था। बहुत सी खामियां मिली हैं, जिसके बाद जांच टीम को एक महीने में रिपोर्ट देने को कहा गया है।'

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