Maharashtra Politics : ऐसा क्या हो गया कि एकनाथ शिंदे दल बदल कानून की आड़ में उद्धव से छीन लेना चाहते हैं शिवसेना?

Maharashtra Politics : महाराष्ट्र की राजनीति में सुपीरियर कौन के इस खेल में अब जो सियासी तस्वीर उभरकर सामने आई है उसमें बालासाहेब के परिवार को सबसे ज्यादा नुकसान होता नजर आ रहा है। ऐसा इसलिए कि अब महाराष्ट्र में केवल उद्धव सरकार का गिरना तय न होकर शिवसेना का असली उत्तराधिकारी कौन, की लड़ाई भी शुरू हो चुकी है।

Update: 2022-06-22 10:51 GMT

Maharashtra Politics : ऐसा क्या हो गया कि एकनाथ शिंदे दल बदल कानून की आड़ में उद्धव से छीन लेना चाहते हैं शिवसेना?

Maharashtra Politics : सत्ता का खेल भी अजीब है, इसमें कोई किसी का अपना नहीं होता है। एकनाथ शिंदे ( Eknath Shinde ) का उद्धव ठाकरे ( Uddhav Thackray ) के खिलाफ बगावती तेवर भी कुछ वैसा ही है। मंगलवार सुबह जब ये खबर चली कि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में 24 विधायक सूरत पहुंच गए तो ऐसा लगा कि वो उद्धव ठाकरे की सरकार को भाजपा से सांठगांठ कर गिराना चाहते हैं, लेकिन एक दिन में ही महाराष्ट्र ( Maharashtra Politics ) का जो सियासी नजारा सामने आया वो चौंकाने वाला है। एकनाथ शिंदे राजनीति के एक ऐसे मजे खिलाड़ी के रूप में सामने आये हैं, जिन्होंने भाजपा और शिवसेना के बीच साल 2019 के बाद से जारी संघर्ष में खुद को महाराष्ट्र का सबसे बड़ा नेता साबित कर दिखाया है। इतना ही नहीं, उनकी इस चाल से बालासाहेब परिवार ( Balasaheb Family ) का अस्तित्व दांव पर है। महाराष्ट्र की राजनीति में अब खेल केवल सरकार गिराने तक सीमित नहीं है। यह खेल अब शिवसेना ( Shiv Sena ) पर कब्जे का भी है।

खास बात तो यह है कि महाराष्ट्र की राजनीति ( Maharashtra Politics ) के चाणक्य माने जाने वाले एनसीपी प्रमुख शरद पवार ( Sharad Pawar ) तक को इस बात की भनक तक नहीं लगी कि एमवीए सरकार के साथ शिवसेना के खिलाफ भी बगावत की खिचड़ी कैसे पक गई और महाराष्ट्र सरकार गिरने के पायदान पर है। यही वजह है कि एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना के नेता महाराष्ट्र सरकार गृह विभाग पर अब भड़ास निकाल रहे हैं कि संबंधित मंत्री अनिल विलसे पाटिल क्या कर रहे थे, क्यो वो सोये हुए थे। इतना बड़ा खेल हो गया और सतर्कता एजेंसियों तक को भनक नहीं लगी। तो क्या यह मान लें कि महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार के अवसान का दिन नजदीक आ गया है। यहां पर पवार की बात इसलिए कर रहा हूं कि अभी तक यह माना जाता रहा है कि महाराष्ट्र की राजनीति में कुछ हो और उन्हें इसकी पूर्व जानकारी न हो ऐसा नहीं हो सकता।

महाराष्ट्र की राजनीति में सुपीरियर कौन के इस खेल में अब जो सियासी तस्वीर उभरकर सामने आई है उसमें बालासाहेब के परिवार को सबसे ज्यादा नुकसान होता नजर आ रहा है। ऐसा इसलिए कि अब महाराष्ट्र में केवल उद्धव सरकार का गिरना तय नहीं है बल्कि शिवसेना का असली उत्तराधिकारी कौन की लड़ाई भी शुरू हो चुकी है। इस लड़ाई में एकनाथ शिंदे ( Eknath Shinde ) जीत हासिल करते नजर आ रहे हैं। ऐसा इसलिए कि उन्होंने बुधवार को दावा किया है कि शिवसेना ( Shiv Sena ) के 55 विधायकों में 46 विधायक उनके पास हैं। यानि पार्टी के दो तिहाई से अधिक विधायक एकनाथ ( Eknath ) के साथ। साफ है ऐसे में पार्टी कब्जे पर दावा वहीं कर सकता है कि जिसकी पार्टी विधायकों पर पकड़ अच्छी हो।

इसका सबसे ताजा उदाहरण तो बिहार का ले सकते हैं। मोदी कैबिनेट का विस्तार होने के समय ही स्व. रामविलास पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति में उनके ही भाई पशुपति पारस ने ऐसा विद्रोह किया था कि रामविलास के बेटे देखते रह गए और पार्टी पर कब्जा पशुपति का हो गया। इसी तरह तेलंगाना में भी कुछ समय पहले हुआ था। जब कांग्रेस के अधिकांश विधायकों ने खुद को एआईएमआईएम में विलय कर लिया तो वे विधायक भी एआईएमआईएम के स्वत: हो गए जो उसमें शामिल नहीं होना चाहते थे। ऐसा इसलिए कि दलबदल कानून ही ऐसा है। अगर एकनाथ के दावों में दम है तो महाराष्ट्र में शिवसेना पर यही नियम लागू हो सकता है। यदि ऐसा हुआ तो बालासाहेब ठाकरे के शिवसेना पर उद्धव या आदित्य का नहीं एकनाथ का कब्जा होगा।

यही वजह है कि मुंबई में सियासी हलचल के जिम्मेदार बने एकनाथ शिंदे के अगले कदम पर अब सबकी निगाहें टिकी हुई हैं। फिलहाल, उद्धव ठाकरे से 25 मिनट हुई बात में एकनाथ शिंदे ने वापस भाजपा के साथ गठबंधन में आने की शर्त रखी है लेकिन शिवसेना उनकी इस शर्त को मानने के मूड में बिल्कुल भी नहीं है। इस दौरान शिंदे ने अपने साथ 35 विधायक होने के बात कही। मंगलवार को शिवसेना के शक्ति प्रदर्शन में ही इस बात की पोल खुल गई थी। जब 55 में से सिर्फ 22 विधायक ही उद्धव ठाकरे की बैठक में मौजूद रहे थे। शिंदे को विधायक दल के नेता के पद से हटाने वाली चिट्ठी पर 22 के ही दस्तखत हैं जिसका मतलब ये माना जा रहा है कि 33 विधायक शिवसेना के साथ नहीं हैं। यानि एकनाथ शिंदे के दावों में दम है।

आइए, अब हम आपको बताते हैं क्या है दल बदल कानून जिसके दम पर एकनाथ रहे हैं शिवसेना पद कब्जे का दावा :

ये है दल-बदल कानून?

दल-बदल कानून एक विरोधी कानून है जो विधायकों या सांसदों को पार्टी बदलने से रोकता है। अगर कोई विधायक चुनाव होने से पहले दल बदल लेता है तो कोई परेशानी नहीं है लेकिन यदि वह किसी एक पार्टी से जीतने के बाद ऐसा करता है तो उसे पहले विधानसभा से इस्तीफा देना होगा और उसकी सीट पर फिर से चुनाव कराए जाएंगे। इस कानून में एक प्रावधान भी है जिसके तहत पार्टी के 2/3 विधायक एक साथ पार्टी को छोड़ते हैं तो उन्हें इस्तीफा देने की जरुरत नहीं होगी और न ही उनकी सीटों पर चुनाव कराए जाएंगे। इस दौरान वह जिस भी पार्टी को समर्थन देंगे, उसकी सरकार बिना किसी परेशानी के सत्ता में आ जाएगी। इस लिहाज से शिवसेना के पास इस समय विधानसभा में 55 विधायक हैं। ऐसे में दलबदल कानून से बचने के लिए बागी गुट को कम के कम 37 विधायकों (55 में से दो-तिहाई) की जरूरत होगी जबकि उसके पास 40 विधायक हैं। तय है उद्धव ठाकरे के पाले से गेंद निकल चुकी है।

कौन लाया था दल बदल कानून

साल 1985 में राजीव गांधी सरकार संविधान में संशोधन करने और दलबदल पर रोक लगाने के लिए एक विधेयक लाई और 1 मार्च 1985 को यह लागू हो गया था। संविधान की 10वीं अनुसूची, जिसमें दलबदल विरोधी कानून शामिल है, को इस संशोधन के माध्यम से संविधान में जोड़ा गया था।

क्यों बना था दल बदल कानून?

1967 के आम चुनाव के बाद विधायकों के एक पार्टी से दूसरी पार्टी में जाने से कई राज्यों की सरकारें गिर गईं थी। ऐसे में 1985 में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार दल-बदल कानून लेकर आई। संसद ने 1985 में संविधान की दसवीं अनुसूची में इसे जगह दी। दल-बदल कानून के जरिए विधायकों और सांसदों के पार्टी बदलने पर लगाम लगाई गई। इसमें ये भी बताया गया कि दल-बदल के कारण इनकी सदस्यता भी समाप्त हो सकती है।

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