कैग के नए प्रमुख मोदी सरकार के क्यों हैं भरोसेमंद, जानिए गुजरात दंगों में उनकी 'वफादारी' का इतिहास
गुजरात काडर के ही एक आईपीएस अधिकारी ने आरोप लगाया था कि मुर्मू ने गुजरात दंगों की जांच कर रहे आयोग के सामने पेश गवाहों को कथित रूप से प्रशिक्षित किया था....
जनज्वार ब्यूरो। गिरीश चंद्र मुर्मू – गुजरात काडर के इस आदिवासी अधिकारी को जब मोदी सरकार ने देश का 14 वां सीएजी नियुक्त किया तो लोगों ने हैरानी से दांतो तले उंगली दबा ली। आखिर उस संस्था के प्रमुख के पद पर, जिसका काम सरकार के खर्चे- पानी का लेखा जोखा करना और भ्रष्टाचार पर निगाह रखनी है, मुर्मू को ही क्यों नियुक्त किया गया ?
सत्ता के गलियारों में, लुटियन जोन के बंगलों में फुसफुसाहट भरी चर्चाएं चल रही हैं कि आखिर देश के सबसे पिछड़े इलाके से आने वाले इस अधिकारी ने ऐसा क्या जादू किया कि मोदी सरकार इसे सबसे अहम ज़िम्मेदारी से नवाजती है।इसका जवाब है हिंदुत्व का सिपाही और इसी नाते इन बरस रही मोदी-शाह की कृपा। जी हां, हिंदुत्व का सिपाही।
मुर्मू भले ही जन्म से ओडीशा में पैदा हुए संथाल आदिवासी हैं लेकिन दिल हैं हिंदुत्व के कर्मठ सिपाही। इतने कर्मठ कि हिंदुत्व की रक्षा के लिए कितनी भी दूरी तय कर सकते हैं। यह दावा हम नहीं कर रहे बल्कि उनके समकालीन रहे कई दूसरे प्रशासनिक अधिकारियों ने किया है।
मुर्मू का वर्तमान समझने के लिए थोड़ा पीछे चलना होगा। 2002 के गुजरात दंगो में तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी की भूमिका पर देश भर में काफी सवाल उठ रहे थे। इस बारे काफी कुछ लिखा भी जा चुका है। उसे यहां दोहराने का कोई मतलब नहीं। बाद में दंगों की जांच के लिए नानावटी आयोग का गठन किया गया लेकिन हैरतअंगेज रूप से आयोग को मोदी के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला आयोग ने जांच में मोदी क्लीन चिट दी थी।
अगर कहा जाय कि मुर्मू को इसी क्लीन चिट का इनाम मिला तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। गुजरात काडर के ही एक आईपीएस अधिकारी आरबी श्रीकुमार ने आरोप लगाया था कि मुर्मू ने गुजरात दंगों की जांच कर रहे आयोग के सामने प्रस्तुत होने वाले गवाहों को कथित रूप से प्रशिक्षित किया था। यानि गवाहों पर दबाव डालकर पहले से तैयार बयान दिलवाए गए।
गुजरात की राजनीति को नजदीक से जानने वाले बताते हैं कि यही वो बिंदु था जहां से मोदीजी के साथ मुर्मू की घनिष्ठता की यात्रा शुरु होती है। यह याद करना भी मौजू होगा कि उस दौरान मुर्मू थे तो गुजरात के गृह मंत्रालय में ज्वाइंट सेक्रेटरी लेकिन उनकी हैसियत कई मंत्रियों से भी ज्यादा थी। वो तत्कालीन गृह मंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री मोदी को सीधे रिपोर्ट किया करते थे।
इस घनिष्ठता का रंग और गहरा हो गया जब सोहराबुद्दीन फेक एनकाउंटर केस में अमित शाह को जेल हुई। मुर्मू ने ही अमित शाह की केस फाइल तैयार की थी। आरोप तो यह भी है कि मुर्मू ने इशरत जहां एनकाउंटर केस में जांच को प्रभावित किया। पुलिस अधिकारियों पर दबाव बनाया ताकि अमित शाह के खिलाफ केस को कमजोर किया जा सके।
जिन्हें इन दावों पर शक की गुंजाइश लगती हो तो वो गुजरात के ही आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट के बरक्स मुर्मू का कैरियर ग्राफ देख लें तो स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। संजीव भट्ट लगातार मोदी-शाह पर सवाल उठाते रहे, नतीजा यह हुआ कि वो जेल में हैं। आज तक उन्हें जमानत नहीं मिली वही मुर्मू को एक के बाद एक अहम पदों पर तैनात किया जाता रहा।
यह अनायास नहीं है कि जब जम्मू और कश्मीर में धारा-370 समाप्त की गई और राज्य का दर्जा छीना गया तो मुर्मू को मोदी-शाह ने राज्यपाल नियुक्त किया। यह गृहमंत्री और प्रधानमंत्री का मिला जुला फैसला था। आखिर वो दोनों के चहेते जो हैं। अब एक बार फिर सीएजी का प्रमुख बनाकर मोदी-शाह मुर्मू को सबसे अहम जिम्मेदारी दी है।
उनकी उम्मीद जाहिर तौर पर यही होगी कि जिस वक्त मोदी सरकार देश की सार्वजनिक संपत्तियों को बेचने पर आमादा है, बैंकिग घोटाले आम हैं और अर्थव्यवस्था गोते लगा रही है - मुर्मू अपनी "जिम्मेदारियों" का पालन उसी तरह से करेंगे जैसा उन्होंने गुजरात में किया था !