Women Suicide In India : 'बेटी बचाओ बेटी पढाओ' वाली मोदी सरकार में हर दिन 61 महिलाओं—लड़कियों ने की आत्महत्या, हर 25 मिनट में 1 ने दी जान
Women Suicide In India : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का प्रचार करते नहीं थकते तो फिर ऐसा क्या और क्यों हो रहा कि घर की इसी 'लक्ष्मी' को आत्महत्या जैसा खतरनाक कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है...
Women Suicide In India : भारत में मोदी सरकार आए दिन बेटियों के बेहतर स्थिति की बाद करते है| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का प्रचार करते नहीं थकते तो फिर ऐसा क्या और क्यों हो रहा कि घर की इसी 'लक्ष्मी' को आत्महत्या जैसा खतरनाक कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। बता दें कि हर साल हजारों भारतीय गृहणियां अपनी जान दे रही हैं। सरकार के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े चिंतित कर देने वाली तस्वीर पेश कर रहे हैं।
मोदी सरकार में हर दिन तकरीबन 61 महिलाएं आत्महत्या कर रही है| शादीशुदा महिलाओं के बीच आत्महत्या की बढ़ती संख्या दुनिया के दूसरे सबसे अधिक आबादी वाले इस देश में महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य की गंभीर स्थिति की तस्वीर पेश करती है| कोविड महामारी ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है|
कोरोना काल में आत्महत्या
पिछले साल अप्रैल में, मध्य प्रदेश में अपने प्रियजनों को कोरोनावायरस महामारी से खो देने वाली दो महिलाओं ने आत्महत्या कर ली| रायसेन जिले की एक औद्योगिक बस्ती में एक महिला की अपने बहुमंजिली अपार्टमेंट से कूदने के बाद मौत हो गई| महिला अपनी मां की मौत के बाद से बहुत आहत थी| यहां से करीब 200 किलोमीटर दूर देवास शहर में भी, एक अन्य महिला ने उसी दिन अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली, जब उसके परिवार के तीन सदस्यों की एक सप्ताह के भीतर कोविड से मृत्यु हो गई|
मीडिया रिपोर्टस के अनुसार जीवन सुसाइड प्रिवेंशन हेल्पलाइन से जुड़ी एक सामाजिक कार्यकर्ता ने डीडब्ल्यू को बताया है कि 'इन दोनों महिलाओं की शादी हो चुकी थी| वे पहले से ही अवसाद से पीड़ित थीं जिसका उपचार नहीं किया गया था| महामारी ने उनकी हालत को और खराब कर दिया|'
रोजाना 61 महिलाएं कर रही हैं सुसाइड
आकड़ों के अनुसार पिछले साल यानी 2020 में देश की 22,372 गृहणियों ने आत्महत्या कर ली यानी एक दिन में 61 सुसाइड यानी कि 25 मिनट में एक महिला खुदकुशी कर रही है। सोचने वाली बात है कि एक घंटे में दो आत्महत्याएं हो रही हैं और कोई इसे रोक नहीं पा रहा है। 2020 में भारत में कुल 153,052 सुसाइड के मामले दर्ज किए गए, इसमें 14.6% गृहणियां थीं और खुदकुशी करने वाली कुल महिलाओं में ये 50% से अधिक थीं।
बताया गया कि विश्व स्तर पर भारत में आत्महत्या की घटनाएं सबसे ज्यादा होती हैं| दुनियाभर में आत्महत्या करने वाले पुरुषों की संख्या में भारतीय पुरुषों की संख्या एक चौथाई है जबकि 15-39 आयु वर्ग में दुनिया भर में आत्महत्या करने वाली महिलाओं में 36 फीसदी महिलाएं भारतीय होती हैं|
कोविड की वजह से स्थिति बिगड़ी
आत्महत्या करती महिलाओं की संख्या पर जानकार और महिला अधिकार समूह इस प्रवृत्ति के लिए घरेलू हिंसा, कम उम्र में विवाह और मातृत्व के साथ-साथ आर्थिक स्वतंत्रता की कमी जैसे कई कारणों की ओर इशारा करते हैं| वो कहते है कि इस स्थिति को कोरोना वायरस महामारी और उसके बाद लगे लॉकडाउन ने और बढ़ा दिया है जिसकी वजह से सार्वजनिक समारोहों में आने-जाने और अपनी बातें साझा करने के लिए अन्य महिलाओं से जुड़ने के मौके कम हो गए|
घरेलू हिंसा के कारण आत्महत्या
मीडिया रिपोर्टस की मने तो घरेलू हिंसा के मामलों में कई महिलाएं खुद पर हो रहे अत्याचारों के बावजूद फंसी रहीं| सुसाइड प्रिवेंशन इंडिया फाउंडेशन के संस्थापक नेल्सन विनोद मोजेज डीडब्ल्यू से बातचीत में कहते हैं, 'कोविड के दौरान हमने घरेलू हिंसा में वृद्धि देखी और सुरक्षा जाल के साथ-साथ अन्य सुरक्षात्मक कारक कम हुए| नौकरी छूटने के कारण महिलाओं में स्वायत्तता कम थी और इससे अधिक काम, कम आराम और खुद के लिए समय मिलता था|'
मानसिक स्वास्थ्य और व्यवहार विज्ञान में विशेषज्ञता रखने वाली एक मशहूर मनोचिकित्सक अंजलि नागपाल कहती हैं कि कोविड की वजह से स्थिति बहुत खराब हुई है| उनका कहना है कि 'कोविड ने स्थिति को और खराब कर दिया है|
मानसिक रूप से पीड़ित महिलाओं की आत्महत्या
मोदी सरकार में मानसिक रूप से पीड़ित महिलाओं की संख्या आधी देखी जा रही है| मीडिया में छपी खबर के अनुसार भारत में कुछ महिलाएं जो अवसाद और चिंता से पीड़ित हैं, वे पेशेवर विशेषज्ञों की मदद लेती हैं लेकिन ज्यादातर महिलाएं मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़ी बीमारियों में शर्म और कलंक के डर से पेशेवर चिकित्सकों के पास नहीं जातीं| कई महिलाएं बेझिझक अपनी भावनाओं और अनुभवों के बारे में खुलकर बात करती हैं|
मनोचिकित्सक टीना गुप्ता का कहना है कि सार्वजनिक जागरूकता की कमी और अवसाद की खराब समझ ने समस्या में और योगदान दिया है| उन्होंने कहा है कि 'आत्महत्या के विचार या अत्यधिक निराशा, लाचारी ऐसे संकेतक हैं जो पिछले वर्ष आत्महत्या के मामलों में स्पष्ट रूप से देखे गए थे| शादीशुदा महिलाएं ऐसे समूह से आती हैं जो कम जागरूक हैं और इलाज के लिए परिवार के अन्य सदस्यों पर आर्थिक रूप से निर्भर हैं, ऐसे में वो अवसाद और चिंता के साथ अकेले संघर्ष करने के लिए छोड़ दी जाती हैं| यही वजह है कि भारत में शादी शुदा महिलाओं में आत्महत्या की दर अधिक देखी गई है|'
समस्या का मुकाबला करना चाहिए
मीडिया रिपोर्टस के अनुसार विशेषज्ञों का कहना है कि समस्या का मुकाबला करने के लिए कार्यक्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के साथ-साथ परिवार, दोस्तों और समुदाय के साथ अधिक जुड़ाव, सामाजिक समर्थन और वित्तीय स्वतंत्रता में बढ़ोत्तरी होनी चाहिए| नेल्सन मोजेज का कहना है कि इसके अलावा, समाज में महिलाओं के साथ होने वाले व्यवहार में भी बदलाव की जरूरत है| उन्होंने कहा कि 'हमें इस तथ्य के प्रति सचेत होना चाहिए कि निरंतर देखभाल, पहचान का संकट और परिवार या दोस्तों से पर्याप्त समर्थन नहीं मिलने का बोझ मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी एक गंभीर समस्या है|'