कोरोना वायरस पर 200 वैज्ञानिकों ने प्रधानमंत्री को दिया खास सुझाव

Update: 2020-04-01 13:09 GMT

पढ़िये कोरोना वायरस की भयावहता के बीच देशभर में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा घोषित किये गये लॉकडाउन पर क्या कहा इन 200 वैज्ञानिकों ने और क्या सुझाव दिये इन्होंने मोदी सरकार को...

महेंद्र पाण्डेय

जनज्वार। देश के विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थानों से जुड़े लगभग 200 वैज्ञानिकों ने भारत सरकार द्वारा लिए गए लॉकडाउन के निर्णय का स्वागत करते हुए जनता, स्वास्थ्यकर्मियों और सरकार के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए हैं। उनके वक्तव्य के मुख्य अंश में उन्होंने कहा है, “हम, वैज्ञानिकों और भारतीय शैक्षिक समुदाय का एक समूह, कोरोनावाइरस को फैलने से कम करने के लिए भारत सरकार द्वारा 21 दिनों के लॉकडाउन के निर्णय का स्वागत करते हैं। हम समाज के प्रत्येक वर्ग से आग्रह करते हैं कि वह भारत सरकार द्वारा लिए गए इस निर्णायक, अग्रिम कार्यवाई का आदर करें और विभिन्न राज्य एवं केन्द्रीय एजेंसीज के साथ इसके कार्यान्वयन में सहयोग करे।”

वो आगे कहते हैं, 'एक लम्बे लॉकडाउन की संभावना, कुछ देखभाल करने वालों और आवश्यक सेवा देने वालों के असंगत खतरे को ध्यान में रखते हुए हम सरकार और राज्य एजेंसीज से आग्रह करते हैं कि वह राष्ट्र को मौजूदा लॉकडाउन चरण के लिए तैयार करने के लिए कई कदम उठाए। यदि ऐसी वांछनीय स्थिति होती है कि लॉकडाउन की अवधि को बढ़ाना न पड़े तो भी यह कदम आने वाली किसी भी महामारी व विश्वव्यापी महामारी या अन्य प्राकृतिक आपदाओ का सामना करने के हमारी क्षमता को बेहतर बनाने में सहयोग देंगे।'

“हम सिफारिश करते हैं कि प्रत्येक आवश्यक सेवा देने वाले कर्मियों जिनमें अन्य लोगों के अलावा चिकित्सक, सहायक स्वास्थ्य सेवाकर्मी जैसे नर्सें, पुलिसकर्मी, आपातकालकर्मी, आपूर्ति श्रृंखला और महामारी से सम्बंधित कार्यों में लगे संस्थाओं में या फील्ड के सरकारी कर्मचारियों को उपयुक्त सुरक्षा सामान दिया जाये, इनका समय समय पर परीक्षण भी किया जाये, चाहे उसमें लक्षण नहीं भी हों।”

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वैज्ञानिकों ने सरकार से आग्रह किया है, “हम देश की जनता से अपील करते हैं कि वह सहयोग करें और इन आवश्यक सेवा प्रदाताओं के प्रति संवेदनशील रहें। हिंसा और अत्यधिक शक्ति प्रयोग से बचाना चाहिए और ऐसे समय में जब लोग अपरिचित और अभूतपूर्व परिस्थितियों से अभ्यस्त होने का प्रयास कर रहे हैं, तो एक संवेदनशील रवैया अपनाना चाहिए।”

वैज्ञानिकों ने कहा है, “हम स्थानीय अधिकारियों से अनुरोध करते हैं कि वह विभिन्न प्रान्तों और जिलों में स्थानीय टास्कफ़ोर्स बनाएं जिससे आवश्यक सेवाओं की सुचारू आपूर्ति श्रृंखला पाइपलाइन सुनिश्चित हो सके, विशेषकर समाज के निर्धन वर्ग और फंसे हुए प्रवासी कामगारों के लिए।”

सी के साथ इन वैज्ञानिकों ने यह भी कहा है कि “हम सिफारिश करते हैं कि एक राष्ट्रीय आपदा जोखिम प्रबंधन योजना बनाई जाए और प्रत्येक प्रांत में उसे कार्यान्वित किया जाए जिससे कोरोनावायरस का परीक्षण हो सके और अधिक मरीजों को समायोजित किया जा सके। हम सिफारिश करते हैं कि परीक्षण सुविधाओं को बढ़ाया जाए जिससे देश के हरेक क्षेत्र में वायरस का पता लगाया जा सके। आदर्श स्थिति में तो देश का कोई भी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र वायरस परीक्षण केंद्र से 100 मीटर से अधिक दूर नहीं होना चाहिए। बड़े पैमाने पर जल आपूर्ति और सीवरेज सिस्टम की देखरेख में अधिकतम सावधानी होनी चाहिए।”

वैज्ञानिक कहते हैं, “ऐसे समय जब सरकारी और व्यक्तिगत निर्णय और कार्यवाहियां सुस्थापित वैज्ञानिक मानकों, संलेखों, तर्क और विवेक पर आधारित होना चाहिए, हम आम जनता से आग्रह करते हैं कि वह चमत्कारी इलाज, धोखेबाजी या मिथकों जैसे छद्म वैज्ञानिक घोषणाओं से प्रभावित न हों।”

“हम स्कूल और शिक्षण संस्थाओं को प्रेरित करते हैं कि जितना संभव हो वह अपने विद्यार्थियों को ऑनलाइन या किन्ही अन्य अभिनव तरीकों द्वारा शैक्षिक और बौद्धिक गतिविधियों में व्यस्त रखें।”

मोदी सरकार से वैज्ञानिकों ने आग्रह किया है, “इस लॉकडाउन के समय हम सरकार से निवेदन करते हैं कि उन शोधप्रयोगशालाओं को चलने दें जो इस रोग के इलाज या इसके प्रबंधन के कार्य में जुटीं हैं। हम सरकार से आग्रह करते हैं कि आम सामाजिक जागरूकता फैलाने के लिए वैज्ञानिक समुदाय में जो संसाधन और कौशल उपलब्ध हैं, उसका लाभ उठाया जाए।”

वो कहते हैं, “इस गंभीर मानवीय संकट की स्थिति के समय हम सबसे आग्रह करते हैं, तर्कसंगत और सूझबूझ योजना और कार्यवाई हो, सभी साझेदारों के बीच सहयोग हो और इन सबसे ऊपर एक दूसरे से परस्पर व्यवहार में सहानुभूति और मानवता बनी रहे।”

वैज्ञानिकों के इस पूरे वक्तव्य में लगभग सभी बिन्दुओं को शामिल कर लिया गया है, पर आवश्यक है कि अब ऐसी आपदाओं में लैंगिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर भी ध्यान दिया जाए। विश्व स्वास्थ्य संगठन लम्बे समय से सभी देशों से कहता आ रहा है कि इसी महामारी या आपदा के आंकड़ों का पृथक्करण लैंगिक, आयु वर्ग और विकलांगता के आधार पर किया जाए।

हिला स्वास्थ्य कर्मियों के जो सुरक्षा उपकरण होते हैं, वे पुरुषों के हिसाब से खरीदे जाते हैं, महिला कर्मी इन्हें पहनती तो हैं पर ये उनके नाप के नहीं होते। ये सभी बहुत बुनियादी मुद्दे हैं जिनपर ध्यान देने के आवश्यकता है।

सी तरह दुनियाभर में वैज्ञानिक या उजागर कर रहे हैं कि यदि इस तरह का लॉकडाउन संभव है तो फिर इसके आधार पर प्रदूषण नियंत्रण, तापमान बृद्धि और गरीबी उन्मूलन जैसी योजनायें भविष्य में बनाई जा सकती हैं। इन सब समस्याओं से आबादी लगातार ग्रस्त रहती है और किसी भी वायरस संक्रमण की तुलना में अधिक मरती है।

न वैज्ञानिकों ने अपने वक्तव्य में महामारी के लिए आपदा प्रबंधन की बात तो की है, पर यह सुझाव अवश्य दिया जाना चाहिए था कि प्रदूषण और गरीबी उन्मूलन को भी सरकारें इसी तरह युद्ध स्तर पर लें। एक और महत्वपूर्ण मुद्दा, जिसे वक्तव्य में शामिल नहीं किया गया है, कोई जरूरी नहीं कि हम भी वही सारे शब्द उपयोग में लायें, जिसका उपयोग दुनिया करती है।

कोरोना वायरस के कहर ने पूरी दुनिया में सोशल डिस्टेंसिंग को सबसे प्रचलित शब्द बना दिया है। दिल्ली स्थित एम्स के डॉ प्रसून चटर्जी के अनुसार इसे फिजिकल डिस्टेंसिंग कहना अच्छा है, क्योंकि समाज से आप दूरी नहीं बना सकते।

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