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500 वैज्ञानिकों ने मोदी सरकार को लिखा, बंद कराओ गोबर-गोमूत्र के 'औषधीय' गुणों का प्रचार
खुले में लकड़ी और पत्तियां जलाने पर प्रदूषण होता है, इसलिए लोगों पर 5000 रुपए जुर्माना लगाने का प्रावधान है, पर इन प्रावधानों को बनाने वाले हवन के धुएं से प्रदूषण रोकने की बातें करते हैं...
वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पांडेय की टिप्पणी
जनज्वार। पिछले महीने देश के 500 से अधिक वैज्ञानिकों ने एक पत्र के माध्यम से सरकार से अनुरोध किया था कि गाय के गोबर और मूत्र में कैंसर जैसे रोगों के इलाज खोजने वाले शोध योजनाओं को बंद कर देना चाहिए। पिछले महीने ही आयुष मंत्रालय, डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी और अनेक दूसरे केंद्रीय विभागों ने भावी शोधार्थियों से देसी गाय के गोबर, मूत्र और दूध के औषधीय गुणों को खोजने वाले शोध प्रस्तावना को भेजने का आह्वान किया था, इसी के बाद वैज्ञानिकों ने एकजुट होते हुए यह पत्र लिखा। हस्ताक्षर करने वालों में 576 वैज्ञानिक शामिल हैं। देश के लगभग सभी अनुसंधान संस्थानों और विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिक इसमें सम्मिलित हैं।
दरअसल आरएसएस-बीजेपी और दूसरे अतिवादी हिन्दू संगठनों का गाय एजेंडा किसी से छुपा नहीं है। पौराणिक कहानियों और ग्रंथों को पूरे विज्ञान का आधार मानने वाले इन लोगों की संख्या बहुत बड़ी है और देश का दुर्भाग्य यह है कि प्रधानमंत्री के साथ साथ दूसरे मंत्री भी इसी विचारधारा के हैं।
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अभी हाल में ही कोरोना वायरस का इलाज भी गोबर और गौ मूत्र में खोज लिया गया, विदेशी मीडिया तो ऐसे दावों को एक चुटकुले की तरह प्रकाशित करता है। कोरॉना वायरस ही नहीं, यहां तो कैंसर और एड्स जैसे रोगों का इलाज भी लोग गोबर में खोज लेते हैं। पिछले वर्ष ही स्वघोषित साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने बड़े जोर शोर से प्रचारित किया था कि उनका स्तन कैंसर केवल गोमूत्र के लेप से ठीक हो गया है, जिसका मजाक पूरी वैज्ञानिक बिरादरी ने उड़ाया था।
पत्र का प्रारूप तैयार करने में अग्रणी भूमिका निभाने वाले वैज्ञानिक और होमी भाभा सेंटर फॉर साइंस एजुकेशन के प्रोफेसर अंकित सुले जनज्वार से हुई बातचीत में कहते हैं, 'विज्ञान अनुसंधान इस समय बुरे आर्थिक दौर से गुजर रहा है। बजट जब पेश किया जाता है तब बहुत सारे आंकड़े प्रस्तुत किए जाते हैं, पर तथ्य तो यह है कि निर्धारित राशि अनुसंधान संस्थानों तक नहीं पहुंच रही है।'
इन सबसे दूर हमारे समाज को गाय के फायदे पता है और गावों में इसका उपयोग भी किया जाता है। गोबर से उपले बनाकर चूल्हा जलाया जाता है, गोबर से बायोगैस बनाई जाती है, गोबर से खाद बनती है। गोबर का लेप मिट्टी की दीवारों पर और फर्श पर चढ़ाया जाता है, जो फर्श और दीवारों को ठंडा रखता है। पत्र में वैज्ञानिकों ने लिखा है कि सरकार की यह योजना अवैज्ञानिक है, और जनता के टैक्स से जुटाई गई राशि को व्यर्थ करने के समतुल्य है।
गोबर—गोमूत्र के औषधीय गुणों का बखान बंद करने के लिए 500 से भी ज्यादा वैज्ञानिकों द्वारा मोदी सरकार को लिखी गयी अपील
इस कदम से देश में घर्म आधारित छद्म सोच को बढ़ावा मिलेगा और लोगों में अंधविश्वास पनपेगा। वैज्ञानिकों के अनुसार किसी विषय पर शोध योजनाओं को स्वीकृति देने से पहले इसकी गंभीर वैज्ञानिक विवेचना की जानी चाहिए। यह एक ऐसा विषय है जिसमें तथ्य नहीं है, यह विज्ञान नहीं है बस श्रद्धा है।
सरकार इससे पहले वर्ष 2017 में भी पंचगव्य के लाभ बताने के लिए शोध योजनाएं आमंत्रित कर चुकी है और अनेक जगह इसपर अनुसंधान किए जा रहे हैं। ऐसे अनुसंधानों का निष्कर्ष पहले से ही तय कर दिया जाता है, और हमारे देश में विज्ञान के नाम पर ऐसा मजाक बार बार किया जाता है।
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विरोधाभास तो देखिए, खुले में लकड़ी और पत्तियां जलाने पर प्रदूषण होता है, इसलिए लोगों पर 5000 रुपए जुर्माना लगाने का प्रावधान है, पर इन प्रावधानों को बनाने वाले हवन के धुएं से प्रदूषण रोकने की बातें करते हैं। घरों में भी जब घी का इस्तेमाल रसोई में किया जाता है तब चिमनी या एग्जॉस्ट को चालू कर दिया जाता है, पर हवन में घी हवा साफ करती है। यही वो वैज्ञानिक हैं जो गोबर को पवित्र मानते हैं, पर जब प्रदूषण अधिक होता है तब इसके जलाने पर पाबंदी लगा देते हैं।
इतना तो तय है कि वास्तविक वैज्ञानिक बस ऐसे ही पत्र लिखते रहेंगे और धर्म को आगे रखने वाले वैज्ञानिक और नेता, जो सरकार चला रहे हैं, वे विज्ञान को पीछे छोड़कर चमत्कार की दुकान सजाते रहेंगे। इससे पहले वैज्ञानिकों ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय को पत्र लिखा था और उस प्रस्ताव को वापस लेने की अपील की थी जिसमें दवाइयों, टूथपेस्टों और शैंपू में गोमूत्र, गोबर और दूध पर अनुसंधान के लिए पैसा खर्च करने की पेशकश की गई थी। वैज्ञानिकों ने इसे 'अवैज्ञानिक' बताया था। वैज्ञानिकों ने कहा था कि विज्ञान मंत्रालय की एक इकाई विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा जारी किए गए प्रस्तावों के लिए बुलावा पत्र "त्रुटिपूर्ण" है और यह भारतीय वैज्ञानिकों की प्रतिष्ठा की विश्वसनीयता को गंभीर रूप से कम कर देगा।