40 लाख तो छोड़िए असम के 4 नागरिकों को भी सुप्रीम कोर्ट ने नहीं कहा घुसपैठिया
बड़बोले मंत्रियों और फसादी भाजपा नेताओं को छोड़ दें तो न सुप्रीम कोर्ट, न भारत सरकार की किसी और एजेंसी ने एनआरसी के मानदंडों पर अपनी नागरिकता साबित न कर पाने वालों को अवैध नागरिक कहा है, पर पूरे देश में हिंदूवादी ताकतें इसे सच की तरह प्रचारित कर 2019 के चुनावों में फसाद और हिंदू—मुसलमान की राजनीति का व्यापक जमीन तैयार करने में जुट गयी हैं
जनज्वार। भाजपा की केंद्र में बैठी सरकार देश के लिए है या सांप्रदायिकों के लिए इसका फर्क करना बहुत ही मुश्किल होता जा रहा है। हालत यह है एनआरसी मामले में जो फर्जी और सांप्रदायिक जुबान नेताओं की है, वही जुबान इनके मंत्री भी बोलने लगे हैं। हिंदूवादी संगठनों और उनके गुंडों की भाषा एनआरसी के मामले में बिल्कुल भाजपा मंत्रियों सी लगने लगी है।
नेशनल रजिस्टर आॅफ सिटिजन ( एनआरसी) की गिनती में असम के जो 40 लाख नागरिक अपनी नागरिकता नहीं साबित कर पाए, उनकी गिनती से 2 साल पहले ही केंद्रीय गृहराज्य मंत्री किरण रिजीजू ने कह दिया था कि देश में 2 करोड़ अवैध बंग्लादेशी हैं। यह बात कई बार केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह भी बोलते रहे हैं।
जबकि उन्हीं के मंत्रालय के जिस विभाग के पास इस जांच की जिम्मेदारी है यानी गृह मंत्रालय के
पूर्वोत्तर संयुक्त सचिव ने 30 जुलाई को साफ कहा कि जो लोग एनआरसी से बाहर हैं, अभी न तो भारतीय हैं, न गैरभारतीय।
सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में 2013—14 से एनआरसी जांच का यह सिलसिला चल रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि असम में एनआरसी की फाइनल रिपोर्ट जारी होने से पहले तक किसी पर कोई कार्रवाई न की जाए। अगली सुनवाई की तारीख 16 अगस्त देते हुए कोर्ट ने कहा कि सबको निष्पक्ष सुनवाई का मौका मिलना चाहिए।
दूसरी बात नेशनल रजिस्टर आॅफ सिटिजन की गिनती में आ पाना या नहीं आ पाना और उस आधार पर भारतीय नागरिक माना जाना एक मजाक जैसा बन गया है, क्योंकि उसमें जनता का तो छोड़िए 1980 से 1981 के बीच असम की मुख्यमंत्री रहीं सईदा अनोवरा तैमूर का ही नाम नहीं है। रिटायर्ड आर्मी आॅफिसर अजमल हक, पूर्व राष्ट्रपति के भतीजे फखरूद्दीन और यहां तक कि भाजपा विधायक दिलीप पाल की पत्नी अर्चना तक का नाम नहीं है।
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एनआरसी द्वारा 30 जुलाई को जारी आंकड़ों के अनुसार करीब 3.29 करोड़ लोगों ने अपनी नागरिकता साबित करने के कागजात जमा किए थे, उनमें से केवल 2.89 करोड़ लोग ही अपनी नगारिकता साबित कर पाए। नागरिकता साबित करने के लिए 16 कागजात जमा करने थे।
इस मामले में बंग्लादेश सरकार का कहना है, 'भारत में कोई बंग्लादेशी नहीं है। असम एनआरसी भारत का अंदरूनी मामला है, बंग्लादेश का इससे कुछ लेना-देना नहीं हैं।' तो सवाल ये है कि देश की वह कौन सी ताकतें हैं जो जांच एजेंसियों और सुप्रीम कोर्ट से अलग 40 लोगों के एनसीआर पूरा न हो पाने को घुसपैठिया बोल हिंदू जमातों के बीच नफरत प्रचारित कर रही हैं। बता रही हैं कि जब वे मुसलमान वहां से बेदखल कर दिए जाएंगे फिर वहां की जमीन हिंदुओं की हो जाएगी।
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असम के प्रमुख असमिया दैनिक 'असोमिया प्रतिदिन' के दिल्ली प्रमुख और वरिष्ठ पत्रकार आशीष गुप्ता कहते हैं, 'राजनीतिक स्तर पर इसका फायदा जिनको उठाना है, वही लोग झूठा प्रचार कर रहे हैं, लेकिन अभी तक एनआरसी के मानदंडों पर खुद को नागरिक साबित नहीं कर पाए एक नागरिक को भी सुप्रीम कोर्ट या सरकार ने अवैध नागरिक या घुसपैठिया नहीं कहा है। फिर इस बहस का क्या मतलब कि कितने प्रतिशत घुसपैठिया हैं या नहीं हैं।'
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आशीष गुप्ता की बात इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि एनआरसी के आंकड़े आने के अगले दिन ही केंद्रीय चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि 40 लाख लोगों में से किसी एक का भी वोटिंग अधिकार पर संकट नहीं है। सभी पहले की तरह ही अपने मतों का प्रयोग कर सकेंगे। जाहिर है भारतीय नागरिक होने का इससे बड़ा कोई प्रमाण नहीं है।
सवाल ये है कि एनआरसी को लेकर भ्रम की स्थिति बनी कैसे, क्यों प्रचारित होने लगा कि 40 लोग भारत के अवैध नागरिक हैं। जाहिर है यह मीडिया के जरिए ही फैला है। जैसा कि अन्य मामलों में मीडिया की भूमिका लोकतंत्र की बजाय 'सरकार के चौथे स्तंभ' की बन गयी है, इस मामले में सरकार और भाजपा में बैठे फर्जी दावा करने वालों के मुकाबले मीडिया 40 लाख लोगों के मामले मेें ज्यादा चहकहर अवैध—घुसपैठिया कहकर दुष्प्रचार कर रही है।