एक मौका आता है जब कोई रोग ज्यादा फैल जाता है और आप जितने मरने वालों की गिनती बर्दाश्त कर पाने के आदती होते हैं, उससे ज्यादा आंकड़ा आपके सामने आ जाता है, चमकी के मामले में भी यही हुआ है, कुछ ज्यादा नहीं...
अभिषेक आज़ाद की टिप्पणी
मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार से 150 से ज्यादा बच्चों की मौत विकास और सुशासन के सभी दावों की पोल खोलती है। हर साल मानसून से ठीक पहले इस बीमारी का प्रकोप होता है। 2014 में, इस बीमारी से 150 से अधिक बच्चों की मौत हुयी थी। फिर भी, सरकार ने इस बीमारी से निपटने का कोई पुख्ता इंतज़ाम नहीं किया।
बिहार के 44% बच्चे कुपोषित हैं। ये बच्चे आसानी से चमकी बुखार की चपेट में आ जाते है। 150 से ज्यादा बच्चों की मौत स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ-साथ भुखमरी और कुपोषण की स्थिति पर भी सवाल खड़े करती है। विकास के तमाम दावों के बावजूद भुखमरी सूचकांक में भारत 55 से फिसलकर 103 वें स्थान पर पहुंच गया है। अगर बच्चों को पौष्टिक भोजन मिलता, उनका टीकाकरण होता और सही इलाज़ मिलता तो 150 से ज्यादा मासूमों की जान बच सकती थी।
बच्चों की जान बचाने में आयुष्मान भारत योजना भी मददगार नहीं साबित हुयी। आयुष्मान भारत को दुनिया की सबसे बड़ी योजना कहा जा रहा था। इसके प्रचार-प्रसार पर करोड़ो रूपये खर्च किये जा चुके है। लेकिन, जमीनी हकीकत कुछ और बयां कर रही है।
केंद्र सरकार चिकित्सा सुविधाओं को बेहतर बनाने के बजाय लगातार स्वास्थ्य बजट में कटौती कर रही है। नये अस्पताल खोलने के बजाय सरकारी अस्पतालों का निजीकरण कर रही है। सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र को मजबूत करने के बजाय बीमा स्कीम चला रही है। भुखमरी और कुपोषण की समस्या खत्म होने के बजाय भयावह होती जा रही है। वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत की स्थिति नेपाल और बांग्लादेश से भी बुरी हो गयी है। भारत 119 देशों की सूची में 103 वें स्थान पर आता है।
मुजफ्फरपुर में 150 से ज्यादा बच्चों की मौत के पीछे असली वजह कुपोषण, चिकित्सा सुविधाओं का अभाव और सरकार की संवेदनहीनता हैं। सरकारी नीतियों की वजह से कुपोषण बढ़ रहा है। सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र कमजोर हो रहा है। सरकार बच्चों की जान के प्रति असंवेदनशील है और जन स्वास्थ्य के मुद्दे को गम्भीरता से नहीं ले रही। सरकार के मंत्री प्रेस कॉन्फ्रेंस में सो रहे हैं। जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग कुछ करने की बजाय बारिश से उम्मीद लगाये बैठे हैं।
बच्चों की मौत का सिलसिला लगातार २० दिनों से जारी है। 150 से ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है। अस्पताल में डॉक्टर, बेड, दवाई सभी जरूरी चीज़ों की कमी है। अस्पताल में पर्याप्त ग्लूकोज़ न होने के कारण बच्चों को निर्धारित मात्रा से कम ग्लूकोज़ चढ़ाया जा रहा है।
केंद्र और राज्य दोनों में भाजपा-जदयू गठबंधन की सरकार है। इस डबल इंजन सरकार का रवैया पूरी तरह से संवेदनहीन और गैर-ज़िम्मेरदाराना है। डॉक्टरों की कोई टीम नहीं भेजी गयी, बेडों की संख्या नहीं बढ़ायी गयी और दवाइयों की आपूर्ति सुनिश्चित नहीं की गयी। सरकार ने बच्चों की जान बचाने के लिए कुछ भी नहीं किया।
इन मासूम बच्चों की मौत से पूरा देश को गहरा सदमा लगा है, पूरा देश शोक में डूबा है, लेकिन सरकार में बैठे लोगों पर कोई इसका कोई असर नहीं दिख रहा। सत्तारूढ़ दल के लोग बच्चों की मौत पर दुखी होने और उनका इलाज सुनिश्चित करने की बजाय संसद में 'जय श्री राम' के नारे लगा रहे हैं, एक राष्ट्र एक चुनाव के नाम पर घटक दलों की बैठक कर रहे है, जोड़-तोड़ और चुनाव जीतने की तैयारी में व्यस्त हैं।
पर यह सदमा जैसा इसलिए लग रहा है कि इसको मीडिया और सोशल मीडिया पर हाइप मिली, लेकिन जिस राज्य में 40 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं, वहां महामारियों का दायरा निश्चित तौर पर चमकी से बहुत बड़ा होगा। ऐसे में जरूरी यह है कि 'सबको स्वास्थ्य, सबको समुचित इलाज' के बुनियादी मांग के साथ आंदोलन हों, जो चमकी के गुस्से और भर्त्सना के बीच अटक कर न रह जाएं।
(अभिषेक आज़ाद दिल्ली विश्वविद्यालय में दर्शन विभाग के शोधछात्र हैं।)