नरसंहार करने वालों के साथ अडानी निभा रहे व्यापारिक रिश्ते

Update: 2019-05-25 13:23 GMT

उद्योगपति अडानी ऑस्ट्रेलिया की कमाई से ऐसे लोगों का करेंगे भला, जो मानवाधिकार हनन और नरसंहार के लिए हैं जिम्मेदार...

महेंद्र पाण्डेय, वरिष्ठ लेखक

जनज्वार। ऑस्ट्रेलिया में चुनाव संपन्न हो गए और आशा के विपरीत वर्तमान प्रधानमंत्री की सत्ता में वापसी हो गई। यह सरकार अडानी का भरपूर समर्थन करती रही है और तमाम पर्यावरण विशेषज्ञों और स्थानीय नागरिकों के विरोध के बाद भी इनकी कोयला खनन परियोजना का साथ देती रही है।

इस बार के चुनावों में तापमान वृद्धि और अडानी की कोयला खनन परियोजना बड़ा मुद्दा थे। तमाम पर्यावरण विशेषज्ञ आज भी इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं। इस बीच में ही यह खबर भी आ गयी कि अडानी की कंपनी म्यांमार में पोर्ट विकसित करने का ठेका ले चुकी है। अडानी की कंपनी ने म्यांमार के यांगून में कंटेनर पोर्ट विकसित करने का ठेका प्राप्त किया है।

कंटेनर पोर्ट जहां विकसित किया जाना है वह भूमि म्यानमार इकोनोमिक कोऑपरेशन नामक संस्था के पास है, जिसका स्वामित्व म्यांमार की फौज के पास है। यानी इस परियोजना का मुनाफा वहां की फ़ौज के पास पहुंचेगा। इस परियोजना के विरोध का कारण भी यही है।

वर्ष 2017 में संयुक्त राष्ट्र ने एक तीन सदस्यीय दल बनाया था, जिसे म्यांमार की फौज द्वारा किये जाने वाले मानवाधिकारों के उल्लंघन और नरसंहार के बारे में जांच कर रिपोर्ट प्रस्तुत करनी थी। म्यांमार की फौज ने रोहिंग्या लोगों के साथ जो अमानवीय व्यवहार किया था, इसी की पुष्टि करने के लिए यह रिपोर्ट बनायी गयी। वहां की फ़ौज ने संयुक्त राष्ट्र के किसी भी सदस्य को म्यांमार में प्रवेश नहीं करने दिया था। फिर इस दल के सदस्यों ने लगभग 875 विस्थापितों के साक्षात्कार के आधार पर 440 पृष्ठों की एक रिपोर्ट सितम्बर 2018 में प्रस्तुत किया। ये सभी विस्थापित फ़ौज द्वारा रोहिंग्या के शोषण और नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी भी थे।

इस रिपोर्ट के अनुसार म्यांमार की फ़ौज नरसंहार, ह्त्या, बिना कारण जेल में डालना, महिलाओं और बच्चियों से बलात्कार, बच्चों के शोषण और इनके गाँव में आगजनी के लिए दोषी है। रिपोर्ट में सभी देशों से अनुरोध किया गया है कि वे म्यानमार की फ़ौज के साथ किसी भी तरह के रिश्ते न रखें। इसके बाद भी अडानी की कंपनी इसी फ़ौज के साथ व्यापारिक रिश्ते बना रहे हैं।

ऑस्ट्रेलिया के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि अडानी की ऑस्ट्रेलिया में खनन परियोजना से जो लाभ होगा, उसे म्यांमार की परियोजना में लगाया जाएगा। इसका सीधा मतलब यह है कि अडानी ऑस्ट्रेलिया की कमाई से ऐसे लोगों का भला करेंगे जो मानवाधिकार हनन और नरसंहार के लिए जिम्मेदार हैं। जैसी कि उम्मीद थी, अडानी की कंपनी ने एक बयान जारी कर कहा है कि वे लोग ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका या फिर संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार से सम्बंधित किसी दिशा-निर्देश का उल्लंघन नहीं कर रहे हैं।

जब संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट ही कहती हो कि म्यांमार की सेना से किसी भी तरह के सम्बन्ध नहीं रखे जाएं, फिर संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार के दिशा निर्देशों का उल्लंघन कैसे नहीं हो रहा है, इसका जवाब तो केवल अडानी ही दे सकते हैं। यहाँ धुंआ रखने वाली बात है कि 50 वर्षों के इस परियोजना की लागत 29 करोड़ अमेरिकी डॉलर है और विदेशों में काम करने के लिए जितनी भी अनुमति चाहिए वह भारत सरकार इस परियोजना को दे चुकी है।

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