30 साल भारतीय सेना में रहे अजमल साबित करें वह नहीं हैं बांग्लादेशी

Update: 2017-10-01 22:31 GMT

30 साल सेना में नौकरी के बाद अजमल हक साबित अब साबित करेंगे कि वह बांग्लादेशी नहीं भारतीय नागरिक हैं...

जनज्वार। मोहम्मद अजमल हक को भारतीय नागरिक साबित करने का आदेश असम की गुवाहाटी पुलिस ने दिया है। अजमल हक पिछले साल जूनियर कमीशन आॅफिसर (जेसीओ) के पद से भारतीय सेना से रिटायर हुए हैं। पुलिस ने बांग्लादेश के अवैध अप्रवासियों के खिलाफ की जा रही कार्रवाई के तहत उन्हें यह आदेश दिया है कि वे खुद को भारतीय साबित करें।

मोहम्मद अजमल हक ने मीडिया को बताया कि उन्हें विदेशी मामलों के ट्रिब्यूनल ने नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। उनको यह नोटिस 6 जुलाई को भेजा गया था जिसका जवाब उन्हें 11 सितंबर को ही देना था लेकिन वह नहीं दे पाए क्योंकि नोटिस उनके गांव गया था और अब उन्हें 13 अक्तूबर को अपने को भारतीय नागरिक साबित करने वाले दस्तावेजों को ट्रिब्यूनल में जमा करना है। ऐसा न करने पर पुलिस उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करेगी।

सरकार के इस रवैये से बेहद दुखित अजमल हक कहते हैं, 'मुझे नोटिस की जानकारी से सदमा लगा है। मैं गुवाहाटी में शांतिपूर्वक जीवन जी रहा था और अब ट्रिब्यूनल की वजह से बेवजह की माथापच्ची हो रही है। क्या ट्रिब्यूनल को 30 साल देश की सेवा कर चुके अपने ही सैनिक पर इतना कम भरोसा है।

असम सरकार ने अवैध शरणार्थियों के खिलाफ व्यापक कार्रवाई के लिए 100 ट्रिब्यूनल बना रखे हैं। उन्हीं में से एक ने अजमल हक को नोटिस जारी किया है। नोटिस के मुताबिक अजमल को साबित करना है कि वह 25 मार्च, 1971 में बांग्लादेश से भारत भागकर आए अवैध शरणार्थियों में शामिल नहीं थे।

गौरतलब है कि 25 मार्च, 1971 को पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान जिसे अब बंग्लादेश कहते हैं वहां आॅपरेशन सर्चलाइट चलाया था जिसके बाद हजारों बांग्लादेशियों ने भारत में शरण ली थी। पूर्वोत्तर के राज्यों में भारत सरकार इन दिनों उन्हीं शरणार्थियों में से वैध और अवैध की छंटनी कर रही है। अजमल हक को यह नोटिस भी इसी कार्रवाई के तहत जारी किया गया है।

गौरतलब है कि अजमल हक की 1986 में बतौर तकनीशियन सेना में भर्ती हुई थी। पंजाब और अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों सहित देश के विभिन्न हिस्सों में उन्होंने अपनी सेवाएं दी थीं।

खुद को भारतीय साबित करने का यह मुद्दा अजमल हक के परिवार में पहली बार नहीं उठा है। इससे पहले उनकी पत्नी मुमताज बेगम को भी अपनी नागरिकता साबित करने के लिए 2012 में एक ट्रिब्यूनल ने बुलाया था। चूंकि उनके पास सभी आवश्यक दस्तावेज थे, इसलिए मुमताज भारतीय नागरिक साबित हो पाईं।

आहत अजमल हक बहुत दुखी मन से कहते हैं कि उनका परिवार मूल रूप से असमिया है। इसे प्रमाणित करने के लिए यह काफी है कि उनके पिता का नाम 1966 के मतदाताओं की सूची में है। इतना ही नहीं उनकी मां का नाम 1951 में नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरसी) में सूचीबद्ध है।

हालांकि भारतीय न्यायपालिका पर भरोसा कायम करते हुए हक कहते हैं, "मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि मुझे न्याय मिलेगा। लेकिन जब मेरी बेटी मुझसे सवाल करती है कि यह कैसा देश है जहां इतने सालों तक सेवा का फल कुछ इस तरह मिलता है, तो मुझे बहुत तकलीफ होती है। गौरतलब है कि अजमल हक के बेटे फिलहाल देहरादून के प्रतिष्ठित राष्ट्रीय भारतीय सैन्य महाविद्यालय में पढ़ते हैं, वहीं बेटी गुवाहाटी के सेना पब्लिक स्कूल में हैं।

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