कल हमें याद क्यों नहीं आए अली सरदार जाफरी

Update: 2017-08-02 09:01 GMT

अली सरदार जाफरी के पुण्यतिथि पर विशेष

जाफरी साहब की कोठी के नाम से मशहूर उनका पैतृक आवास देखभाल के अभाव मे धूल फांक रहा है जहाँ कभी नशिस्तों व मुशायरों की महफिलें सजती थी, आज वहां वीरानी पसरी हुई है...

बलरामपुर से फरीद आरजू की रिपोर्ट

मशहूर शायर, अदीब और स्वतन्त्रता सग्राम सेनानी अली सरदार जाफरी की कल 1 अगस्त को 17वीं पुण्यतिथि थी।

कल के ही दिन एक अगस्त वर्ष 2000 में जाफरी दुनिया को अलविदा कह गये। 'एशिया जाग उठा' और 'अमन का सितारा' समेत अनेक कृतियों से उर्दू साहित्य को समृद्ध बनाने वाले अली सरदार जाफरी का नाम उर्दू अदब के महानतम शायरों में शुमार किया जाता है।

उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले में जन्मे अली सरदार जाफरी ने साहित्य के सर्वोच्च पुरस्कार ज्ञानपीठ पाने वाले देश के तीसरी ऐसे अदीब है जिन्हें उर्दू साहित्य के लिए इस पुरस्कार से नवाजा जा है।

अली सरदार जाफरी ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों की यातनाएं झेलीं तो ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आवाज बुलंद करने पर जेल का सफर किया,आवाज लगाकर अखबार बेचा तो नजर बंद किये गये। अपने साहित्यिक सफर की शुरुआत शायरी से नहीं बल्कि कथा लेखन से किया था।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी अली सरदार जाफरी का जन्म 1 अगस्त 1913 को उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले के बलुहा मोहल्ले में हुआ था। जाफरी साहब की कोठी के नाम से मशहूर उनका पैतृक आवास देखभाल के आभाव मे धूल फांक रहा है। जहाँ कभी नशिस्तो व मुशायरो की महफिले सजती थी आज वहा वीरानी पसरी हुई है।

और तो और जाफरी जैसे महान शायर की कल पुण्यतिथी पर उनके अपने जिले बलरामपुर में भी कोई कार्यक्रम, जलसा या मुशायरा नहीं हुआ। किसी ने श्रद्धांजलि का एक प्रेस नोट तक नहीं भेजा और न हीं उनके जानने वालों ने सोशल मीडिया पर ही माहौल बनाया।

शुरुआत में उन पर जिगर मुरादाबादी, जोश मलीहाबादी और फिराक गोरखपुरी जैसे शायरों का प्रभाव पडा। जाफरी ने 1933 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और इसी दौरान वे कम्युनिस्ट विचारधारा के संपर्क में आए। उन्हें 1936 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से निष्कासित कर दिया गया। बाद में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की शिक्षा पूरी की।

जाफरी ने अपने लेखन का सफर 17 वर्ष की ही उम्र में शुरू किया। उनका लघु कथाओं का पहला संग्रह 'मंजिल' नाम से वर्ष 1938 में प्रकाशित हुआ। उनकी शायरी का पहला संग्रह 'परवाज' नाम से वर्ष 1944 में प्रकाशित हुआ। आप 'नया अदब' नाम के साहित्यिक जर्नल के सह-संपादक भी रहे।

जाफरी प्रगतिशील लेखक आंदोलन से जुड़े रहे। वे कई अन्य सामाजिक, राजनैतिक और साहित्यिक आंदोलनों से भी जुड़े रहे। प्रगतिशील उर्दू लेखकों का सम्मेलन आयोजित करने को लेकर उन्हें 1949 में भिवंडी में गिरफ्तार कर लिया गया। तीन महीने बाद ही उन्हें एक बार फिर गिरफ्तार किया गया।

जाफरी ने जलजला, धरती के लाल (1946) और परदेसी (1957) जैसी फिल्मों में गीत लेखन भी किया। वर्ष 1948 से 1978 के बीच उनका नई दुनिया को सलाम (1948) खून की लकीर, अमन का सितारा, एशिया जाग उठा, पत्थर की दीवार, एक ख्वाब और पैरहन-ए-शरार और लहू पुकारता है जैसे संग्रह प्रकाशित हुए।

इसके अलावा उन्होंने मेरा सफर जैसी प्रसिद्ध रचना का भी लेखन किया। उनका आखिरी संग्रह सरहद के नाम से प्रकाशित हुआ।

इसी संग्रह की प्रसिद्ध पंक्ति है ''गुफ्तगू बंद न हो बात से बात चले''।

जाफरी ने कबीर, मीर और गालिब के संग्रहों का संपादन भी किया। जाफरी ने दो डाक्यूमेंट्री फिल्में भी बनाईं। उन्होंने उर्दू के सात प्रसिद्ध शायरों के जीवन पर आधारित 'कहकशाँ' नामक धारावाहिक का भी निर्माण किया।

जाफरी को वर्ष 1998 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वे फिराक गोरखपुरी और कुर्तुल एन हैदर के साथ ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित होने वाले उर्दू के तीसरे साहित्यकार हैं। उन्हें वर्ष 1967 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। वे उत्तरप्रदेश सरकार के उर्दू अकादमी पुरस्कार और मध्यप्रदेश सरकार के इकबाल सम्मान से भी सम्मानित हुए। उनकी कई रचनाओं का भारतीय एवं विदेशी भाषाओं में अनुवाद हुआ।

अधिवक्ता संघ के पूर्व अध्यक्ष व सामाजिक कार्यकर्ता अनीसुल हसन रिजवी कहते है कि अली सरदार जाफरी एक ऐसा शख्स जो रईस घराने मे पैदा हुआ। मगर गरीबों और मजलूमों से हमददर्दी रखने वाले जाफरी साहब ऐशो आराम की जिन्दगी त्याग कर तहरीके आजादी से जुड गए। श्री रिजवी कहते है कि स्व०जाफरी न सिर्फ एक बेलौस वतन परस्त इंसान थे बल्कि उर्दू अदब का एक ऐसा रौशन सितारा जो दुनिया ए अदब के आसमान पर अपनी आबो ताब के साथ आज भी चमक रहा है,।मे उन पर नाज है।

महान शायर ,साहित्यकार व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अली सरदार जाफरी मुम्बई मे एक अगस्त 2000 को दुनिया को अलविदा कह गये।अपनी बेमिसाल शायरी से दुनिया मे बलरामपुर का नाम रौशन करने वाले जाफरी के एक रिश्तेदार कहते है कि दुनिया ने जाफरी को सिर आखों पर बिठाया लेकिन उन्हें जो सम्मान उनके पैतृक शहर मे मिलना चाहिए वह उन्हें नहीं मिला।

उनके कलाम की चन्द पंक्तियां  -

सुब्ह हर उजाले पे रात का गुमाँ क्यूँ है ,
जल रही है क्या धरती अर्श पे धुआँ क्यूँ है ,

ख़ंजरों की साज़िश पर कब तलक ये ख़ामोशी,
रूह क्यूँ है यख़-बस्ता नग़्मा बे-ज़बाँ क्यूँ है,

रास्ता नहीं चलते सिर्फ़ ख़ाक उड़ाते हैं ,
कारवाँ से भी आगे गर्द-ए-कारवाँ क्यूँ है ,

कुछ कमी नहीं लेकिन कोई कुछ तो बतलाओ ,
इश्क़ इस सितमगर का शौक़ का ज़ियाँ क्यूँ है,

हम तो घर से निकले थे जीतने को दिल सब का ,
तेग़ हाथ में क्यूँ है दोश पर कमाँ क्यूँ है ,

ये है बज़्म-ए-मय-नोशी इस में सब बराबर हैं ,
फिर हिसाब-ए-साक़ी में सूद क्यूँ ज़ियक्यूँ है ,

देन किस निगह की है किन लबों की बरकत है ,
तुम में 'जाफ़री' इतनी शोख़ी-ए-बयाँ क्यूँ

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