दांत का ज़ख़्म ऐसा है कि हमें कोई ज़ख़्मी भी नहीं मानता और हमदर्दी भी नहीं रखता...

मेरे ही दांत को नहीं मालूम मैं कितना अमनपसंद इन्सान हूँ और मैं किसी दमन के ख़िलाफ़ हूँ इससे मेरी अपनी सार्थकता पर भी संशय लगते हैं और मेरी पहुँच का भी अंदाज़ा लगता है...

Update: 2024-09-15 07:34 GMT

युवा कवि शशांक शेखर की कविता 'दांत बचाया जा सकता है !'

मिलनसार डॉक्टरों की दुकान चलती रहे

ऊपर वाला उन्हें लंबी उम्र से नवाज़े

मीठी रस घुली भाषा

नर्मदिली आखों के दर्पण से झांकती हुई

हथेलियों में आपका हाथ लेकर साँस भरकर

बस इतना कह दे आप ठीक हैं और क्या चाहिए

फिर जायदाद ले ले हमारी कोई दिक़्क़त नहीं

किसी पहर में एक नामाकूल से दिन

कहने को बारिश थी

हल्की धूप की पर्दा- दारी थी

नया नज़ला था और पुराना सायनस..

फिर अक़्लदाढ़ का बेअक़्ल हो जाना

और तेज़ दर्द की दस्तक हुई

ज़िंदगी भर अक़्ल ने परेशान किया

अब अक़्ल के दांत ने दिन दिखाए

ना जाने कितनी रत जगाये

दांत का एक सिरा मसूड़े में जा धमका

कोई अपनी ज़िंदगी से खुश नहीं है

और सीमाएँ लाँघने की फ़ितरत

ख़ैर...

मेरे ही दांत को नहीं मालूम मैं कितना

अमनपसंद इन्सान हूँ

और मैं किसी दमन के ख़िलाफ़ हूँ

इससे मेरी अपनी सार्थकता पर भी

संशय लगते हैं और मेरी पहुँच का भी

अंदाज़ा लगता है

कि मेरा अपना दांत मेरी नहीं सुनता

समाज की मैं क्या कहूँ

अरे भाई दांत तुम अपने रास्ते रहो

दूसरे मोहल्ले में जाकर क्यों नारे बुलंद करने

कोई अपने दायरे में मुतमइन नहीं

दर्द के रास्ते चलना भी वैसे एक जोखिम भरा काम है

लगता है हम मीलों चलकर आये जंगजू हैं

हम लहुलुहान हैं और हार नहीं मानते

लेकिन बर्दाश्त की सीमाएँ जब पार हुईं

जाना ही पड़ा डॉक्टर के यहाँ

फिर इलाज की शुरुआत

खट पिट की आवाज़

बीच बीच में खून के कुल्ले

पैने ख़ंजर नुमा उपकरण

हमारी नर्म चमड़ी के आर पार होते हैं

क्या ख़ाक सुन्न करते हैं ये इंजेक्शन ?

हमसे पूछिये!!

दांत का ज़ख़्म ऐसा है कि हमें कोई

ज़ख़्मी भी नहीं मानता और हमदर्दी भी नहीं रखता

टांग टूटने पर भी पड़ोसी तो आ ही जाते हैं देखने

टूटे हुए दांत पर कोई

मर्सिया नहीं गाता न फूल चढ़ाता है

बस इतना याद है डॉक्टर ने बोला

इस दांत को बचाया जा सकता है

और वो उसी में लगा है

फिर भरोसा और एक दर्द को मिटाने

के लिए नया दर्द दिया जा रहा है

जब ये लम्हा गुज़रा तो

उसने बोला कि ये रूई का फाया आप

अपने दांतों में दबाए रहें

और उसमे एक ठंडा मरहम भी है

जो दर्द को पी जाएगा

ये भी नहीं पूछ सका मैं कि कब तक?

माँ साथ में थी और जैसा कि

हर दर्द में माँ साथ होती ही है बेचारी

लंबा रास्ता था सो लौटते वक़्त

एक काग़ज़ पर मैंने लिखा

कि कब तक इसको यूँ दबाए रखना है ?

माँ ने पढ़ने की क़वायद की

और वो बोलीं

पास देखने वाला चश्मा घर रह गया। 

Tags:    

Similar News