आंदोलनों के लिहाज से शून्य रहा 2017

Update: 2017-12-31 16:13 GMT

पूरा साल चुनावी गुणा गणित में बीत गया। नोटबन्दी का असर, जीएसटी की दोहरी मार के बीच बांटो और राज करो कि नीति हावी रही पर कोई बड़ा आंदोलन नहीं हुआ। आंदोलन के लिए जानी जाने वाली पार्टियों को सालोंभर सांप सूंघे रहा...

वीरेंदर भाटिया

फ़ोन भर गया है नए साल के संदेशों से। सब ही कामना से भरे हैं कि नया साल शुभ हो। शुभ की कामना की ही जानी चाहिए, क्योंकि अंधकार में डूबे व्यक्ति समाज और देश को इन संदेशों से थोड़ी राहत मिलती है।

सवाल यह है कि अगले साल में आप क्या लेकर जा रहे हैं जिससे आपका साल शुभ हो जाये। अर्थ दशा के आधार पर क्या, सामाजिक स्थिति के स्तर पर क्या, आंदोलन के स्तर पर क्या, राजनीतिक शुचिता के तौर पर क्या जिससे अगले साल कुछ अच्छा मिले।

अर्थदशा का हाल किसी से छिपा नहीं है। नोटबन्दी के बाद gst लाने  की जिद ने हमें जिस हाल में पहुंचाया वह किसी से छिपा नहीं। नोटबन्दी पर लगातार ये प्रेडिक्शन आते रहे कि जीडीपी गिर रही है। रोजगार पैदा करने वाली इकोनॉमी एकदम से रोजगार खाने वाली इकॉनमी में बदल गयी है औऱ 2017 में यही होता रहा।

आप 2016 के अंत मे भी इन्हीं शुभकामनाओं से भरे थे कि 2017 अच्छा आये, लेकिन अर्थदशा के स्तर पर सरकार ने जो कांटे बोए हैं उसकी फसल काटने का साल 2017 था। आप बेहतर जानते थे सरकार जी कि बेहाल अर्थदशा में gst लागू करने से दोहरी मार पड़ेगी इकॉनमी पर लेकिन आप को ना जाने क्या मैडल मिलने थे जिद्दी बने रहने से।

अब हालात ये हैं कि कमजोर व्यापारिक हालात में टैक्स का जो जुगाड़ स्टेट खुद करते थे अब उसकी जिम्मेदारी भी आपने ले ली। पेट्रोल के दाम हमेशा नीचे नहीं रहेंगे। आप पेट्रोल को gst के दायरे में नहीं ला रहे, यही डर आपकी पूरी स्थिति को साफ बयां कर रहा है। gst से टैक्स कलेक्शन घटे हैं। राज्यों का हिस्सा गुणात्मक रूप से घटेगा।

पिछले साल सरकारी कर्मचारी मजे में रहे। व्यापारी परेशान रहे। लेकिन इस साल कुछ राज्यो में वेतन देने के पैसे जितना पैसा भी नहीं बचेगा। देश की इकॉनमी के बाद अब राज्यों का ढांचा हिलने वाला है।

ऐसे में विकास की परियोजनाओं का क्या होगा। ppp में और भी बहुत कुछ जाएगा औऱ आप बड़ी लूट के लिए जेब ढीली करते जाइये। नए साल की शुभकामनाएं इस क्षेत्र में मैं नहीं दे सकता क्योंकि जनता पर औऱ भार पड़ना तय है और अर्थव्यवस्था अभी आपकी कमाई बढ़ाने वाली स्थिति में नहीं है।

सामाजिक सौहार्द्र के लिए कुछ उम्मीद अनमने मन से कर सकते हैं क्योंकि इस साल चुनाव नहीं है। एक दो राज्यों में चुनाव है इसलिए कुटिल राजनेता सामाजिक सौहार्द्र नहीं बिगाड़ेंगे, ऐसी उम्मीद करनी चाहिए। 2017 में नफरत की बड़ी फसल बोई गयी। 2018 में वह फसल खराब हो जाये ऐसी याचना कीजिये अपने अपने ईश्वरों से। लेकिन कुटिल संगठन 2019 के लिए भर-जहर तैयार हैं।

आंदोलन के क्षेत्र मे शून्य रहा 2017। मोदी काल की यह सफलता है कि वह आंदोलन को कुचल देने की नीति के साथ अजेय बना रहा है। 2017 में किसान सड़कों पर उतरते रहे लेकिन कोई मजबूत नेता उन्हें नहीं मिला। गुजरात के तमाम आन्दोलनो के बाद bjp फिर आ गयी। जिससे आन्दोलन कारी हतोत्साहित हुए।

अर्थदशा, बेरोजगारी औऱ ppp पर बड़े आंदोलन की जरूरत है, लेकिन 2018 में ऐसी कोई उम्मीद नजर नहीं आती। अन्ना मार्च में धरने पर बैठेंगे। पिछली बार वे आरएसएस का मोहरा साबित हुए, इस बार भी bjp इसे कैश कराएगी यह तय है क्योंकि bjp उन्हीं आन्दोलनों को स्पेस देती है जिसका उसे फायदा हो।

राजनीतिक शुचिता एक बड़ा आन्दोलन था जिसकी चिंगारी अन्ना आंदोलन से ही निकली। 2014 से 2017 तक राजनीतिक शुचिता का जिस तरह से ब्लात्कार हुआ है वह सोचनीय है औऱ कोई सुर इसके विरोध में ना उठना औऱ भी सोचनीय है।

सरकार बनाने की हर तिकड़म में किससे हाथ मिलाना है क्या कहना है कैसे चरित्र हनन करना है ये तीन सालों में अतिरेक के साथ हुआ है। 2018 में इस स्तर पर वैसी गन्दगी देखने को नहीं मिलेगी ऐसी उम्मीद करें क्योंकि 2018 चुनाव वर्ष नहीं है। बड़े राज्यों में सिर्फ राजस्थान में चुनाव हैं।

2019 में आम चुनाव है। सरकर का खजाना खाली है औऱ विकास की तमाम घोषणाएं नक्कारखाने की तूती साबित हो रही हैं। बिना पैसे सरकार विकास नहीं दे सकती औऱ टैक्स के लिए सरकार धक्का नहीं कर सकती। क्योंकि कारोबार बढ़ेगा तभी तो टैक्स आएगा।

ऐसे में साल 2018 आपका शुभ हो ऐसी कामना करता हूँ, बावजूद इसके कि 2017 से 2018 में प्रवेश करते हुए हम सिर्फ अंधकार साथ ले जा रहे हैं।

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