रामदेव का व्यापार और मोदी जी की राजनीति दोनों टिके हैं 'राष्ट्रवाद' पर और दोनों के 'राष्ट्रवाद' से कराह रहा देश
मोदी जी वर्ष 2014 में जब विदेशों से काला धन वापस लाकर सबके खाते में 15-15 लाख रुपये डाल रहे थे, तब इस ज्ञान की वकालत और प्रचार करने वालों में रामदेव सबसे आगे थे...
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
Ramdev and Modi ji, both are proponents of capitalism and pseudo-nationalism : हाल में ही सर्वोच्च न्यायालय से फटकार के बाद पतंजलि वाले रामदेव लगातार सुर्ख़ियों में बने हुए हैं। रामदेव उस पूंजीवाद की मिसाल हैं जो छद्म राष्ट्रवाद और बचपन की गरीबी की गाथा के नाम पर उपजता है। इस मामला में उनकी तुलना मोदी जी से की जा सकती है, क्योंकि मोदी जी भी बचपन की गरीबी और छद्म राष्ट्रवाद के साथ ही साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के पुरोधा रहे हैं। मोदी जी वर्ष 2014 में जब विदेशों से काला धन वापस लाकर सबके खाते में 15-15 लाख रुपये डाल रहे थे, तब इस ज्ञान की वकालत और प्रचार करने वालों में रामदेव सबसे आगे थे। इन दोनों में समानता तो देखिये – दोनों आज इस मसले पर खामोश नजर आते हैं।
मोदी जी की पूरी राजनीति निगेटिव विचारों पर आधारित है। उनके किसी भी भाषण को आप गौर से सुनिए, इसमें संसद में दिए गए भाषण भी शामिल है, भाषण का तीन-चौथाई से अधिक हिस्सा विपक्ष को, कांग्रेस को और नेहरु-गांधी परिवार से सम्बंधित अनर्गल प्रलाप में बीत जाता है। पिछले 10 वर्षों से यही प्रलाप निरंतर चला आ रहा है। अब तो इस प्रलाप में विपक्षी नेताओं का खानपान भी शामिल हो चला है।
मोदी जी के किसी भी भाषण से यदि विपक्ष को कोसने वाले हिस्से को निकाल दिया जाए, तो भाषणों में कुछ बचेगा ही नहीं। जरा सोचिये, एक ऐसा नेता जिसे एक विशालकाय बहुमत प्राप्त हो और जो पिछले दस वर्षों से देश का प्रधानमंत्री हो, उसके पास अपनी उपलब्धियां बताने को कुछ भी न हो तो जाहिर है निगेटिव प्रचार ही करना पड़ेगा।
यही हाल रामदेव का भी है। कभी योगगुरु के नाम पर चर्चित और विख्यात रहे रामदेव के पतंजलि उत्पाद शुरू से ही चर्चित थे, इसी बलबूते पर उन्होंने हरेक शहर के हरेक मोहल्ले में बड़े-बड़े सुपरस्टोर खोल डाले थे। बिना विज्ञापनों के भी पतंजलि के उत्पाद चर्चित थे और घरों तक पहुँचने लगे थे। इसके बाद भी यह रामदेव के निगेटिव मानसिकता का ही नमूना है कि पतंजलि उत्पादों के हरेक विज्ञापन दूसरे उत्पादों को कोसने पर ही केन्द्रित रहे। इसके बाद रामदेव पर पूंजीवाद हावी हो गया और फिर तो जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने वाले उत्पादों की झड़ी लगा दी। जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ में पूंजीवाद के प्रबल हिमायती मोदी जी ने रामदेव का खूब साथ दिया।
कोविड-19 की दवा के तौर पर प्रचारित “कोरोनिल” के प्रचार में तो मोदी जी ने अपने दो मंत्रियों, डॉ हर्षवर्धन और नितिन गडकरी को रामदेव के साथ खड़ा कर दिया था। इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे भ्रामक विज्ञापनों के लिए रामदेव के साथ ही केंद्र सरकार को भी फटकार लगाई है। इस फटकार के बाद भी पतंजलि के टूथपेस्ट के विज्ञापन जिसमें दूसरे सभी टूथपेस्टों को “झूठपेस्ट” कहा गया है, आज भी दिखाए जा रहे हैं। यही हाल मोदी जी का भी है – इलेक्टोरल बांड को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा असंवैधानिक करार दिए जाने के बाद भी मोदी जी उसे चुनावों के बाद फिर से लाने की घोषणा कर रहे हैं।
मोदी जी और रामदेव दोनों को कैमरे के सामने रहने और पोस्टरों पर छपने का शौक है। मोदी जी हरेक गली, मोहल्ले, दीवार, खम्भे पर लटके मिल जायेंगे, हरेक सरकारी विज्ञापन में छपे मिल जायेंगे और हरेक समाचार चैनलों के बुलेटिन में नजर आ जायेंगें। हाल-फिलहाल चुनावों के बीच में कैमरा वाले मित्रों के साथ केदारनाथ के पास कहीं ध्यानमग्न भी नजर आयेंगे – ऐसा हरेक संसदीय चुनाव के समय होता है। यही हाल रामदेव का भी है, पतंजलि के हरेक उत्पाद के प्रचार में एक ही चेहरा नजर आता है। रामदेव टीवी के कार्यक्रमों में भी खूब नजर आते हैं और पूरे देश के सामने, विशेषकर सुन्दर महिलाओं के सामने अपना पेट छाती तक खोल कर दिखाना नहीं भूलते।
रामदेव हरेक टीवी कार्यक्रम में कुश्ती के धोबी-पछाड़ का दांव दिखाकर अपना शक्ति-प्रदर्शन करना नहीं भूलते। मोदी जी भी ईडी, सीबीआई, एनआईए और पुलिस का दांव दिखाकर लगातार शक्ति प्रदर्शन करते रहते हैं। मोदी जी और रामदेव दोनों ही पूंजीवादी नायक हैं और दोनों को ही प्रश्न पूछने वाले पत्रकारों से हिंसक चिढ़ है। इन दोनों की ही मीडिया ने राष्ट्रवादी और नायक वाली छवि गढ़ी है। रामदेव का व्यापार राष्ट्रवाद के नाम पर तरक्की कर रहा है तो दूसरी तरफ मोदी जी की राजनीति ही राष्ट्रवाद पर टिकी है – दोनों के राष्ट्रवाद से जनता के साथ ही देश कराह रहा है।