ऑटोमोबाइल क्षेत्र से आ रही खबरें देश के लिए अच्छी नहीं

Update: 2019-06-12 12:48 GMT

बाजार में खरीददार न होने की वजह से पिछले दो वर्षों के दौरान देश में यात्री वाहन, दोपहिया वाहन व कामर्सियल वाहनों की बिक्री करने वाले 300 डीलरों की दुकानें बंद हो चुकी हैं, जिसके कारण 3 हजार लोग अपने रोजगार से हाथ धो बैठे हैं। अकेले मुम्बई में 26, पूना में 21 व दिल्ली राजधानी क्षेत्र के 10 शोरुम पर ताले लग चुके हैं....

मुनीष कुमार, स्वतंत्र पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता

ऑटोमोबाइल सेक्टर से आने वाली खबरें देश के लिए अच्छी नहीं हैं। देश की सबसे बड़ी कार निर्माता कम्पनी मारुती सुजूकी ने आगामी 23 जून से 30 जून तक अपना उत्पादन बंद रखने की घोषणा की है। टाटा मोटर्स, होंडा कार इंडिया, होंडा मोटर साइकिल एंड स्कूटर इंडिया समेत देश के कई वाहन निर्माता बाजार में मांग न होने के कारण विगत मई व जूून में अपना उत्पादन कई दिनों के लिए ठप कर चुके हैं तथा भविष्य में पुनः उत्पादन ठप करने की बात कर रहे हैं।

इकॉनॉमिक टाइम्स के अनुसार पिछले जनवरी से लेकर मई माह तक यात्री वाहनों की बिक्री में पिछले वर्ष के मुकाबले में 8.9 प्रतिशत व दो पहिया वाहनों की बिक्री में 11.3 प्रतिशत की कमी दर्ज की गयी है। 35 हजार करोड़ रुपए मूल्य के 5 लाख यात्री वाहन व 17500 करोड़ रुपए के 30 लाख दो पहिया वाहन, खरीददारों के इंतजार में बाजार की धूल फांक रहे हैं। सरकार द्वारा इनकी बिक्री बढ़ाने के लिए की गयी ब्याज दरों में कटौती भी ग्राहकों को आकर्षित नहीं कर पा रही है।

सोसायटी आफ इंडियन आटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर के अनुसार मई 2019 में मई 2018 के मुकाबले यात्री वाहनों की बिक्री में पिछले 18 वर्षों की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गयी है। मई 2018 में 301238 यात्री वाहनों की बिक्री हुयी थी, जोकि मई 2019 में 20.55 प्रतिशत घटकर 239347 रह गई। वहीं कॉमर्शियल वाहनों में 10.02 प्रतिशत, तिपहिया में 5.76 की कमी दर्ज की गयी। दो पहिया वाहनों की बिक्री पिछली मई 2018 में 1850698 के मुकाबले 8.62 प्रतिशत घटकर 1726206 ही रह गयी है।

विगत मई माह में वाहनों के निर्यात की वृद्धी दर भी नकारात्मक दर्ज की गयी है। बाजार में खरीददार न होने की वजह से पिछले दो वर्षों के दौरान देश में यात्री वाहन, दोपहिया वाहन व कामर्सियल वाहनों की बिक्री करने वाले 300 डीलरों की दुकानें बंद हो चुकी हैं, जिसके कारण 3 हजार लोग अपने रोजगार से हाथ धो बैठे हैं। अकेले मुम्बई में 26, पूना में 21 व दिल्ली राजधानी क्षेत्र के 10 शो रुम पर ताले लग चुके हैं।

निशान के 38, हुंडई के 23 व मारुती सुजूकी समेत होंडा, टाटा व महिन्द्रा के एक-एक दर्जन शोरूम का शटर गिर चुका है। जानकारों के मुताबिक देश के 15 हजार खुदरा अधिकृत डीलरों में मात्र 30 प्रतिशत ही फायदे में चल रहे हैं और आने वाले समय में यदि स्थिति नहीं संभली तो यह संख्या और भी अधिक बढ़ जाएगी।

सरकार ने आटोमोबाइल सेक्टर की मंदी को देखते हुए वही पुराने घिसे पिटे नुस्खे- ब्याज दरों में कमी को आजमाया है। मंदी को दूर करने के लिए सरकार पर जीएसटी की दरों में कटौती का दबाब भी कार उत्पादकों द्वारा बनाया जा रहा है। बिक्री बढ़ाने के लिए कार को लीज पर देने की योजनाएं भी कार निर्माता कम्पनियां बना रही हैं।

उम्मीद की जा रही है कि भविष्य में हाई ब्रिड वाहनों (सौर ऊर्जा व बैटरी से चले वाले वाहन) के निर्माण से इसमें पुनः गति आ सकती है। सरकार ने देश में 2023 तक सभी तिपहिया वाहन व 2025 तक 150 सीसी क्षमता वाले दुपहिया वाहन बैटरी से चलने वाले अनिवार्य किए जाने की बात कही है।

आटोमोबाइल सेक्टर का देश के सकल घरेलू उत्पाद में 7 प्रतिशत से भी अधिक का योगदान है। प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रुप से देश के 3 करोड़ से भी अधिक लोगों को इससे रोजगार मिला हुआ है। आटोमाइल उद्योग के साथ टायर, पेंट, लाईट, शीशा, एशेसिरिज, कल-पुर्जे समेत कई अन्य उद्योग भी जुड़े हुए हैं। आटोमोबाइल उद्योग की मंदी यदि लम्बी खिंचती है तो इसका असर इससे जुड़े अन्य उद्योगों पर भी पड़ना लाजमी है।

बाजार में मांग न होने पर मजदूर-कर्मचारियों को बड़ी संख्या में छंटनी का सामना करना पड़ेगा। यह एक ऐसा चैन रियेक्शन हो सकता है जिससे आटोमोबाइल के साथ दूसरे उद्योग भी मंदी के संकट में फंस सकते हैं और दूसरे उत्पादों की मांग भी बाजार में घट सकती है।

वाहन के उत्पादन कम होने का दूसरा बड़ा फर्क सरकार के कर संग्रह पर भी पड़ेगा। वाहनों की बिक्री में गिरावट तथा जीएसटी की दरें कम किए जाने से सरकारी खजाने में जमा होने वाले टैक्सों में भी कमी आएगी। कम्पनियों का मुनाफा कम होने पर आयकर व कोरपोरेट कर संग्रह पर भी नकारात्मक असर पड़ेगा। इस सबके भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव से इंकार नहीं किया जा सकता।

सरकार द्वारा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की 7 प्रतिशत से अधिक की वार्षिक वृद्धि दर प्राप्त करने का लगाया गया अनुमान भी गलत साबित हो रहा है। अर्थशास्त्री अरबिंद सुब्रहमण्यम ने देश की जीडीपी वृद्धि दर को 5 प्रतिशत से भी कम रहने की बात कही है।

उद्योगों में आने वाली मंदी एक ऐसा दुष्चक्र है जिसे देश व दुनिया की पूंजीवादी सरकारें चाहकर भी नहीं रोक सकतीं। इसका बड़ा कारण है समाज में उत्पादन जनता की जरूरतों को ध्यान में रखकर नहीं बल्कि पूंजीपति वर्ग द्वारा मुनाफा कमाने के लिए किया जाता है। हमारे देश में यातायात की व्यवस्था व आटोमोबाइल उद्योग का माडल बनाते समय सरकारों के सामने जनता को सस्ता, सुलभ व आरामदायक यातायात उपलब्ध कराना नहीं था बल्कि सरकार ने अपनी योजनाएं पूंजीपति वर्ग के मुनाफे को ध्यान में रखकर तैयार कीं।

1991 में लागू की गयी नई आर्थिक नीति के बाद से आटोमोबाइल उद्योग के उत्पादन में भारी वृद्धि हुयी है। देश को दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने व सकल घरेलू उत्पाद की दर डबल डिजिट में पहुंचाने की होड़ में लोगो को कर्ज देकर कार दोपहिया व अन्य वाहन खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया गया।

मुनाफे की अंधी हवस में सरकारों ने (चाहे वह कांग्रेस की रही हो या भाजपा की है) सार्वजनिक यातायात (रेल व बस) को गांव-गांव, घर-घर पहुचाने के सवाल को अनदेखा कर दिया। बड़ी मात्रा में कारों व दोपहिया वाहनों के इस्तेमाल से उत्पन्न होने वाली कार्बन डाई आक्साइड द्वारा पर्यावरण को हो रहे नुकसान को भी भुला दिया गया। भारी मुनाफा देखकर देश व विदेश के पूंजीपतियों की आंखें चैंधियाने लगीं और इस क्षेत्र में भारी निवेश किया गया।

सार्वजनिक वाहन बस, जिसकी संख्या 1951 में कुल वाहनों का 11.1 प्रतिशत व 1971 में 3 प्रतिशत थीं। कम्युनिटी डाटा डाट गाव डाट इन के अनुसार 2015 में देश की सड़कों पर चलने वाली बसों की संख्या मात्र 1 प्रतिशत रह गयी।

कुल मिलाकर इस संकट का हल देश की सरकारों व पूंजीपतियों के पास नहीं है। इस संकट को हल करने के लिए जरुरी है कि देश में चल रहे विकास के माॅडल को बदलकर एक नया माॅडल बनाया जाए। जिसके मूल में मुनाफाखोरी नहीं बल्कि जनता को सस्ता, सुलभ, आरामदायक यातायात तथा जनता का रोजगार हो। सार्वजनिक यातायात के रुप में देश में रेल लाईनों का विकास किया गया है परन्तु यह विकास अभी भी बेहद सीमित है तथा जनता की जरुरतों के सामने बेहद बौना है।

देश के सभी गांवों-कस्बों को रेल मार्ग से जोड़ें जाने तथा कारों के मुकाबले बसों को बढ़ावा दिये जाने से ही इस तरह के संकटों को दूर किया जा सकता है। देश में मोदी के मुकाबले यदि वास्तविक समाजवादियों की सरकार होती तो वह पहला काम यह करती कि देश के सभी कार उद्योगों का राष्ट्रीयकरण कर देती तथा इन्हें बसों व रेल कोच बनाने के कारखाने में तब्दील कर देती।

(मुनीष कुमार समाजवादी लोक मंच के सह संयोजक हैं।)

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